ॐ गीता की कुछ शब्दावली १५५ सर्व भूत हिते ... (अध्याय १२ - श्लोक ४) ஸர்வ பூத ஹிதே ... (அத்யாயம் 12 - ஶ்லோகம் 4) Sarva Bhoota Hite ... (Chapter 12 - Shloka 4) अर्थ: सर्व जीवों के हित में... सभी जीवों का हित चाहना.. सभी जीवों का हित में प्रयास करना.. सभी में ब्रह्म को देखने इच्छुक ब्रह्म उपासक के लिये यह परमावश्यक गुण है, ऐसा श्री कृष्ण कह रहे हैं । सर्वं खल्विदं ब्रह्म ... सभी में ब्रह्म स्थित है.. अहं ब्रह्मास्मि.. मैं ब्रह्म हुँ । तत् त्वम् असि.. तुम ब्रह्म हो । इसकी अनुभूति कर रहे ब्रह्म ज्ञानी एवं इस दिशा में प्रयास कर रहे मुमुक्षु सहज ही सभी जीवों का हितैषी ही हो सकता है । स्वयं को अन्यों से भिन्न देखने वाला ही अन्य जीवों का अहित सोच सकता है । अन्य जीवो पर हिंसा कर सकता है । हित का ही अन्य रूप प्रेम है । सुख का विरोधी वाचक शब्द है दु : ख । हर्श का विरोधी वाचक शब्द है शोक । परन्तु आनन्द शब्द का कोई विरोधी वाचक शब्द है नहीं । सुख, हर्श, शोक जैसे स्थितियाँ हम प्राप्त कर सकते हैं । उन स्थितियों से हम बाहर निकल सकते हैं । आनन्द यह परमात्मा की स्तिति है । वह नित्य है । अपना आधारभूत स्थि
निरामय - श्रीमद् भगवद् गीता
राम गोपाल रत्नम्