Skip to main content

गीता की कुछ शब्दावली - 9

गीता की कुछ शब्दावली - 9

योगः कर्मसु कौशलम् (अध्याय 2 - श्लोक 50)
யோகஹ கர்மஸு கௌஷலம் (அத்யாயம் 2 - ஸ்லோகம் 50)
Yogah Karmasu Kaushalam (Chapter 2 - Shlokam 50)

अर्थ :  कुशलता से किये जाने वाले कर्म ही योग है |

श्री कृष्ण द्वारा गीता मे योग इस शब्द का दूसरा विश्लेषण है यह | योग याने जुडना , ऐक्य होना | आत्मा का परमात्मा मे ऐक्य | इस प्रकार के अलौकिक प्रयत्न मनुष्य मे लौकिक कार्यों से, इह लोक के कर्तव्यों से हटने की इच्छा बढाता है | अर्जुन भी यही करना चाहता था | युद्ध क्षेत्र से हटकर आरण्य चले जाने की बात किया | भिक्षा पाकर जी लूंगा ऐसा कह रहा था | "वह इस संसार मे रहे, इस लोक मे उसे प्राप्त कर्मों मे लगे रहे, परन्तु एक योगी की मानसिकता के साथ" | यह बात उसे समझाने के प्रयास मे लगे श्री कृष्ण | उनका यह प्रयास ही है श्रीमद्भगवद्गीता |

प्रत्येक मनुष्य क्षमता की बात करता हुआ दिखता है | क्षमता की अपेक्षा करता दिखता है | यजमान अपने नौकरों से क्षमता की अपेक्षा करता है | संस्थाओं के निर्वहन करने वाले उस संस्था मे कार्यरत सभी व्यक्तियों की कार्य क्षमता को बढाने के कई योजनायें बनाते हैं | नागरिक अपने सरकार और उसके संस्था सक्षम हो यह अपेक्षा करते हैं | ग्राहक अपने द्वारा खरीदी गयी हर वस्तु अधिकाधिक क्षमतायुक्त हो ऐसी अपेक्षा करते हैं |

कुशलता पूर्वक, पूर्ण क्षमता के साथ किया गया कर्म योग है | सभी कर्म?  योग्य, अयोग्य, अच्छा बुरा सभी कर्म??

कुशलता और क्षमता जागृत प्रयत्न से, प्रशिक्षण से बढते हैं | परन्तु कार्य करते समय कर्ता जागृत रहा तो योग संभव नहीं | अन्य शब्दों मे कहें तो कर्ता भाव जागृत रहते तक, "मैं कर रहा हूं" यह होश रहते तक योग संभव नहीं | योग याने जुडना | ऐक्य हो जाना | कर्ता लुप्त हो जाता है | कर्म के रूप मे प्रकट होता है | इसी स्थिती मे अधिकाधिक कुशलता संभव है | इस स्थिती मे कर्म होता है, कर्ता के अभाव मे | संगीत, कला, साहित्य आदि क्षेत्र मे अद्भुत दैवी कृती इसी स्थिती मे प्रकट हुए | साधारण कर्मों के विषय मे भी यह सत्य है | सायकिल चालक मे जब तक सायकिल चलाने की कृती का होश रहता है तब् तक उसका चलाना अकुशल रहता है | कृती से कर्ता जब हट जाता है, याने चालक चलाने की कृती से बाहर निकल जाता है तो उसका चलाना कुशल्तायुक्त हो जाता है | घर मे खाना पकाने वाली मा जब पकाना यह कर्म से हट जाती है और आनन्द पूर्ण मन:स्थिती मे रहती है तो पकाया गया पक्वान्न उत्तम रुची से युक्त होता है | "मैं कर्ता हूं " यह भाव का लोप हो जाना चाहिये | इस स्थिती मे अयोग्य कर्म, कुकर्म असंभव है |

संसार के अप्रतीम भाषण, प्रभावी भाषण उन्हीं क्षणों मे प्रकट हुए जब भाषण कर्ता अपने आप को खोकर एक विशेष अवस्था मे रहा | कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद अर्जुन और उसके भाई शान्तचित्त अवस्था मे थे उस समय उन्होंने श्री कृष्ण से गीता पुनः एक बार दोहराने का अनुरोध किया | श्री कृष्ण ने उत्तर मे कहा की "मैं उस समय एक विशेष मनोsवस्था मे था और गीता मुझसे प्रकट हुई  आज मैं यदी चाहूं तो भी मुझसे पुनः एक बार गीता बताना नहीं होगा |"

यही कारण है की किसी भी उद्योग मे रहते हुए भी व्यक्ति दैवी स्थिती को प्राप्त हुआ है | उस उद्योग के अनुरूप कर्मों मे रहते हुए भी साधू बना है | कबीर दास बुनकर था, नामदेव दर्जी | गोरा कुंभार था तो रविदास चमार | संसार मे ऐसा कोई कर्म नहीं जो दैवी नहीं | प्रत्येक कर्म, कुशल्तापूर्ण कर्म दैवी है | योग है |

Comments

Popular posts from this blog

ஜ, ஷ, ஸ, ஹ, க்ஷ, ஸ்ரீ ....

ॐ ஜ , ஷ , ஸ , ஹ , ஶ , க்ஷ , ஸ்ரீ என்ற எழுத்துக்களை வடமொழி எழுத்துக்கள் என்கிறான் ஒருவன். ஸம்ஸ்க்ருத எழுத்து என்கிறான் ஒருவன் . மூடர்கள் .  அறியாமையில் பேசுகின்றனர் . தவறான நோக்கத்துடன், நம்முள் பேதத்தை ஏற்படுத்திட எவனோ புதைத்துச் சென்ற விஷத்தை , அது விஷம் என்று கூட அறியாமல் பேசுகின்றனர் . வட என்பது திஶை . திஶைக்கு மொழி கிடையாது . (இசைக்கும் மொழி கிடையாது . கவிதைக்குதான் மொழி . தமிழிசை மன்றம் என்பதெல்லாம் அபத்தம் .) தமிழகத்திற்கு வடக்கில் பாரத தேஶத்தின் அத்தனை ப்ராந்தங்களும் (கேரளம் தவிர்த்து) உள்ளன . தெலுங்கு , மராடீ , போஜ்புரி , குஜராதீ ... அனைத்து மொழிகளும் வட திஶையில் பேசப்படும் மொழிகள் .  இவை எல்லாம் வடமொழிகள் . (கன்யாகுமரி ஆளுக்கு சென்னை பாஷை கூட வடமொழிதான்) . இந்த எல்லா மொழிகளிலும் இந்த ஶப்தங்களுக்கு எழுத்துக்கள் உண்டு .   தெலுங்கில் జ  , స  , హ .. . என்றும் ,   கன்னடத்தில்   ಜ , ಸ , ಹ , ಕ್ಷ .. என்றும் , மராடீயில் . ज , स , ह , श , क्ष,.. என்றும் குஜராதியில்     જ , સ , હા , ક્ષ  , என்றும் ,   ப...

கீதையில் சில சொற்றொடர்கள் - 31

ॐ கீதையில் சில சொற்றொடர்கள் - 31 चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुण कर्म विभागशः  ... (अध्याय ४ - श्लोक १३) சாதுர்வர்ண்யம் மயா ஸ்ருஷ்டம் குண கர்ம விபாகஶஹ்  ...  (அத்யாயம் 4 - ஶ்லோகம் 13) Chatur VarNyam Mayaa Srushtam GuNa Karma Vibhaagashah ... (Chapter 4 - Shlokam 13) அர்தம் :   சாதுர் வர்ண்யம் மயா ஸ்ருஷ்டம்... குண கர்ம விபாகஶ :   குணம் மற்றும் கர்மங்களின் அடிப்படையில் நான்கு வர்ணங்கள் என்னலே படைக்கப் பட்டது. சாதுர் வர்ண்யம் மயா ஸ்ருஷ்டம்... குண கர்ம விபாகஶ :  சதுர் வர்ணங்களை, நான்கு வர்ணங்களை நான்தான் ஸ்ருஷ்டித்தேன், என்கிறார் ஸ்ரீ க்ருஷ்ணன்.  இதில் என்ன ஆஶ்சர்யம் ??  ப்ரக்ருதியில் உள்ள அனைத்துமே அவர் படைத்தவை என்னும்போது, சதுர் வர்ணங்களையும் அவர்தானே படைத்திருக்க வேண்டும் ??  கீதையின் இந்த வாக்யம் நாஸ்திகவாதிகள், கம்யூனிஸ்ட்கள், கடவுள் மறுப்பு இயக்கத்தினர் என்று கடவுளை ஏற்காதவர்களையும் நெளிய வைக்கிறது.  கடவுளே படைத்திருக்கிறார் என்றால் அதை அழித்தொழிக்க முடியாது என்று கருதுகிறார்களா ??  இவர்கள் அனைவரும் ஜாதி அம...

पतञ्जलि योग सूत्र - १

ॐ पतञ्जलि योग सूत्र (अष्टाङ्ग योग) [ ट्विटर पर मेरे लिखे नोट ] {- १ -}: पतञ्जलि योग सूत्र मे ४ पाद हैं | ४ पाद मिलाकर १ पूर्ण होता है | समाधि पाद, साधन पाद, विभूति पाद एवम् कैवल्य पाद | {- २ -}: पतञ्जलि योग सूत्र मे १९५ सूत्र हैं | ये श्लोक रूप मे न होकर सूत्र रूप मे हैं | {- ३ -}: पतन्जलि योग सूत्र -- समाधि पाद मे ५१, साधन पाद मे ५५, विभूति पाद मे ५५ और कैवल्य पाद मे ३४ सूत्र हैं | एकुण १९५ सूत्र | {- ४ -}: श्री पतञ्जलि योग के ८ अङ्ग बताते हैं | यम, नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि योग के ८ अङ्ग हैं | {- ५ -}: यम नियमासन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समधयो(s)ष्टावङ्गानि - {साधन पाद - २९} {- ६ -}: पहली बात यह है की यह "योगा " नहीं , "योग " है | अङ्ग्रेजी चष्मा को हटा लें | अपने विषयों को अपने ही आंखों से देखें | योगा नहीं योग | {- ७ -}: महर्षी पतञ्जलि की विशेषता - एक सूत्र कहते और उसमे प्रयोग किया गया प्रत्येक शब्द को एकेक सूत्र मे समझाते | {- ८ -}: योगश्चित्त वृत्ति निरोधः - चित्त की वृत्तियां रुक ...