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गीता की कुछ शब्दावली - १०

गीता की कुछ शब्दावली - १०

स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते,  स्थितधीर्मुनिरुच्यते, तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता,  (अध्याय २ - श्लोक ५५, ५६, ५७, ५८, ६१, ६८,)
ஸ்திதப்ரக்ஞஸ்ததோச்யதே, ஸ்திததீர்முனிருச்யதே, தஸ்ய ப்ரக்ஞாப்ரதிஷ்டிதா, (அத்யாயம் 2 - ஸ்லோகம் 55, 56, 57, 58, 61, 68.)
Sthitapragyasthadochyate, Sthitadheermuniruchyate, Tasya Pragyaa Pratishthitaa.. (Chapter 2 - Shlokam 55, 56, 57, 58,61, 68)

अर्थ : वह स्थितप्रज्ञ है ऐसा कहा जाता है |  मुनि उसे स्थिरबुध्दि वाला ऐसा कहते हैं | उसकी प्रज्ञा स्थिर है |

इन शब्दावली मे स्थित / प्रतिष्ठिता यह प्रधान शब्द है | स्थिर, जड पकड कर, जम कर यह अर्थ है | अच्छे संसारी जीवन के लिये स्थिरता अनिवार्य है | स्थिर बचपन भविष्य मे सम चित्त वाला व्यक्तित्व पाने मे सहायक है | जिसका बचपन स्थिर रहा हो उसे भाग्यशाली कह सकते हैं | एक बच्चे को आशङ्का और अडचनों के बिना भोजन, शिक्षण एवम् सुरक्षा मिलें यह उसका मूल अधिकार है | स्थिर मित्रता भी एक महत्वपूर्ण अंश है बचपन का | पिता की नौकरी क्षेत्र मे होने वाले परिवर्तन के कारण एक नगर से दूसरा, एक विद्यालय से दूसरा, नया वातावरण, ऐसा अक्सर बदल अनुभव करने वाला अनेकदा मित्रहीन जीवन जीता है | यह तो साधारण अस्थिरता है | नैसर्गिक विपदा, युद्ध, दङ्गे, विकास प्रकल्प या अन्य आतङ्की संभव आदि कारणों से उत्पन्न अस्थिरता मे फंसे बच्चों की स्थिती अधिक भयावह और दु:ख दायी है | दीर्घ काल तक स्नेह पूर्ण व्यवहार से ही ऐसे बच्चों की सहज स्थिती लौटती है |

"A rolling stone gathers no moss" "पत्थर जो स्थानान्तरित होते रहता है उसमे गन्दगी जमती नहीं" यह आङ्ग्ल भाषा मे एक कहावत है | यह बात सन्यासी के लिया सत्य है गृहस्थ के लिये नहीं | गृहस्थ यह शब्द मे ही 'स्थ' है याने स्थिरता निहित है | यह सत्य है की एक ही घर मे कई वर्ष रहने से कूडा कचरा कबडा जमता है | पर थोडी सी जागरुकता और थोडीसी व्यवस्था से उस समस्या का हल हो सकता है | गृहस्थ के लिये स्थिरता अवश्य है यह मात्र सत्य है |

परन्तु यहां चर्चित विषय है बुद्धि की स्थिरता | रावण ने अपने घोर तपस्या मे तीव्र वैराग्य दर्शाया | उच्च कोटी की स्थिरता दिखाया | वीणा पर अपने संगीत से पत्थर पिघल जाये ऐसी एकाग्रता दर्शायी | परन्तु शूर्पनखा के मुख से सीता का सौन्दर्य का वर्णन सुना तो उसकी बुद्धि कामवश अस्थिर हुई | सीता का हरण कर लङ्का मे अपना बन्दी बनाया | उसकी बुद्धी मे उत्पन्न यह अस्थिरता, यह चञ्चलता उसके विनाश का बीज बनी |

कंस वैसे बुरा राजा नहीं था | अपने बहन के लिये प्यार भरा भाई था | बहन देवकी का वासुदेव के साथ विवाह रचाया और नव विवाहित दम्पती को रथ मे बिठाकर स्वयम् अपने हाथों रथ चलाया | उस समय एक अशरीरी के शब्दों ने उसे यह सूचित किया की यही देवकी का पुत्र उसका काल बनने वाला है | उसकी बुद्धी तत्क्षण भयवश अस्थिर हुई | प्यार भरा एक भाई अपने प्यारी बहन के लिये आतङ्की बन गया | उसको और उसके पति वासुदेव को काराग्रह मे बन्दी बनाया | उनके के ६ बच्चों का काल बन गया कंस |

राजा परीक्षित धर्म का जानकार था | प्रजा का पालन पुत्रवत करता था | एक समय वन मे राह भटक गया | तृष्णा सी पीडित राजा परीक्षित जल के खोज मे भटकते भटकते एक आश्रम और उसमे ध्यानावस्था मे एक ऋषी को देखा | आवाज देकर उस ऋषी को बुलाया परन्तु ऋषी ने आंखे खोला नहीं | क्षण भर के लिये राजा परीक्षित की बुद्धी क्रोधवश अस्थिर हुई | एक मृत सर्प को उस ऋषी के गले पहनाकर लौट गया | क्षण भर के लिये राजा की बुद्धी मे उत्पन्न अस्थिरता की बहुत बडी कीमत चुकानी पडी उसे |

ये सब् तो कोटी के उदाहरण हैं | हम जैसे साधारण मनुष्य स्वयम् मे और अपने चारों ओर अस्थिर बुद्धी का अनुभव दैनन्दिन (क्षण प्रति क्षण कहें??) करते हैं | उसके कारणवश निश्चय करने मे असमर्थ बन, उल्झन मे डूबकर, कष्ट और दु:ख का अनुभव करते हुए लगभग पूर्ण जीवन बिता देते हैं | हमारी अवस्था उस कैदी के समान है जिसे अपना दण्ड स्वयम् चुनने का अधिकार दिया गया | चबाकर ५० प्याज खाये या चाबुक के ५० मार खाये | वह तो एक निश्चित निर्णय लेने मे असमर्थ | लिया भी तो उससे उत्पन्न पीडा सहने मे असमर्थ | अन्त मे उसे दोनो दण्ड भुगतना पडा | ५० प्याज भी खाया | ५० चाबुक प्रहार भी | हम मे से कुछ ही ऐसे हैं जो जीवन के अनुभव से सीखने की तय्यारी रखते हैं | स्थिर बुद्धी विकसित करने के निश्चित प्रयोग और अभ्यास करते हैं | श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय २ मे श्लोक ५५ से श्लोक ७२ तक स्थित प्रज्ञ के लक्षण बताये गये हैं | आचार्य श्री विनोबा भावे द्वारा लिखित "स्थितप्रज्ञ दर्शन" यह पुस्तक मे इन्हीं श्लोकों का विस्तृत विश्लेषण है | (सर्वोदय प्रकाशन का यह पुस्तक प्रत्येक रेल स्टेशन मे उपलब्ध है |)

अस्थिर बुद्धी के विषय मे अनेकानेक बातें कही जा सकती है | बहुत आसानी से यह बात हमें समझ भी जाता है | क्यों की हम दैनन्दिन अनेक बार अस्थिर बुद्धी का प्रदर्शन करते हैं और अपने चारों ओर देखते हैं | किन्तु स्थिर बुद्धी को पहचानना, स्थिर बुद्धी प्राप्त करने की इच्छा करना और उस दिशा मे सतत अभ्यास करना ये उद्योग कठिन है और दुर्लभ भी | अपने इतिहास मे स्थिर बुद्धी के कई उदाहरण हैं श्री गुरु गोबिन्द जैसे | समीप काल का ज्वलन्त उदाहरण है श्री रमण महर्षी का | स्थित प्रज्ञ रहे वे | जिस कमरे मे वायू न हो ऐसे कमरे मे जलते दीपक की ज्योती के समान स्थिरता को प्राप्ते थी उनकी बुद्धी |

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