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वक्ता और श्रोता

वक्ता और श्रोता

कल नव वर्ष के शाम एक भाषण सुनने गया | दो घण्टे, एकसूत्रता का अभाव, विचारों का आढा तेढा उछल कूद | मेरे लिये बहुत सुखद अनुभव नहीं था | उसी अनुभव का परिणाम यह नोट है |
भाषण कैसे हो ? क्या गीता इस विषय मे कुछ सूचित करती है ? प्रत्यक्ष नहीं तो भी १४वे व १७वे अध्यायों से इस विषय मे हम कुछ निष्कर्ष निकाल सकते हैं | एक भाषण सुनकर आप किस मनोSवस्था मे भाषण स्थल से बाहर निकलते हैं इसे देखिये |
१. हाल से निकलते समय मन मे कोई विचार रहा नहीं | याने भाषण के शब्द एक कान से प्रवेश कर दूसरे कान से निकल गये | ना उस वक्ता ना उसका भाषण चर्चा करने योग्य है |
२. वक्ता की प्रशंसा करते हुए आप भाषण स्थल छोडते हैं | उसकी भाषण शैली, शब्द भण्डार, स्मृती से तत्क्षण निकालकर उसने जो उपमा, वचन एवम् कविताओं के प्रयोग किये , आदि आदि विषयों पर वक्ता का गुणगान करते हुए भाषण स्थल से निकले तो यह समझना होगा की उसका भाषण स्व – प्रशंसा के लिये, अपनी मेधा प्रदर्शन के लिये एक चेष्टा रही | उसमे विचार से कई गुना बढकर 'स्व' बसा हुआ है | आप उसके रसिक (Fan) बन जाने की शक्यता प्रबल है | उसके चित्र आपके पर्स मे और दीवारों पर स्थान पाने की शक्यता अधिक है | उसके पुस्तक आपकी अलमीरा मे बस जाने की शक्यता बढ जाती है | अन्य जन भले आप को एक श्रद्धालु समझें, एक जिज्ञासु या ज्ञानी समझें परन्तु आप जब बोलते हैं तो उसमे विचार से अधिक उसके बारे मे ही विषय होता है | जैसे “पता है ? वे UN मे बोले”; “दुनिया भर से उन्हें शिष्य प्राप्त हैं”; “अब वे यूरोप का प्रवास कर रहें हैं | वहां के हर नगर मे उनका भाषण होने वाला है”; “उन्होंने क्या कहा?” यह प्रश्न पूछा गया तो भाषण मे विषय क्या रहा यह तो नहीं पर “जानते हो ! वे कितना उत्तम भाषण देते हैं ! एक बार तुमको भी उनका भाषण सुना देंगे” यही उत्तर रहेगा | याने एक तरह से आप उनका विज्ञापन एजेन्ट बन जाते हैं | ऐसे वक्ता एवम् उनके भाषण से आप का किसी भी प्रकार भला होगा नहीं यह मात्र निश्चित |
३. एक विचार से घिरे हुए स्थिती मे आप भाषण स्थल छोडते हो | वह विचार आपके साथ कुछ क्षण, कुछ घण्टे या कुछ दिन तक भी रहता है | वह विचार तुम्हे चिन्तन मे डुबाता है | आपको सुनने, पढने और चर्चा करने प्रेरित करता है | आप जब तक एक निर्णय अथवा संकल्प तक पहुंचते नहीं तब तक यह चलते रहता है चाहे आप किसी भी काम मे क्यों न हो | इस विचार से आपके जीवन को एक नयी दिशा प्राप्त हो जाने की अधिक शक्यता है | वह वक्ता आपके स्मरण मे रहेगा ही ऐसा नहीं | भविष्य मे आपका उसके साथ संबन्ध रहेगा ऐसा भी नहीं | यदी रहा तो केवल विचार विमर्श के लिये मात्र | उक्त संबन्ध मे व्यक्ति पूजा, चाप्लूसी या अनावश्यक प्रशंसा नहीं रहेंगे | आप उस विषय मे बोलें तो विचार के रूप ही बोलेंगे ना की Quote (सही शब्द उल्लेख ??) के रूप मे |
४. भाषण सुनकर आप विचारहीन हो जाते हो | परन्तु यह अवस्था क्र १ मे सुझायी अवस्था से भिन्न है | आप मौन हो जाते हैं | उन्मत्त या होश खोये जैसी स्थिती को प्राप्त हो जाते हैं | उस स्थिती मे वक्ता, भाषण, या वह स्थल आपके मन मे रहता नहीं | In fact, कुछ क्षणों के लिये ही सही, आप स्तब्ध होकर अपना स्थान पर जमे रह जाते हैं | भाषण से ही नहीं एक शब्द से भी, किसी महान के सान्निध्य मे उसकी मौन दृष्टी से भी, क्षण भर के उसके स्पर्श से भी यह स्थिती संभव है | यह स्थिती तो स्वानुभूति है | इसका विवरण या विश्लेषण असंभव है | यह अनुभव आपको ही बदल देता है | सही कहें तो अब तक “आप” के बारे मे जो आप की गृहित धारणा रही वह मिट जाती है | और जो सच्चा आप है वह प्रकट होता है |
इस अवस्था का उत्कृष्ट वर्णन गीता मे दूसरे अध्याय का श्लोक २९ मे किया गया है |
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेनमाश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः |
आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ||
एक सावधानी : इस विषय का उपयोग वक्ताओं को अङ्क देने के लिये ना करना | अहङ्कार को पोषण मिलता है | हां | अपनी प्राथमिकता चुनने के लिये उपयोग कर सकते हो |

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