Skip to main content

गीता की कुछ शब्दावली - २००


गीता की कुछ शब्दावली - २००


ऊर्ध्व मूलं अधः शाखम् अश्वत्थम् प्राहुरव्ययम् ..  (अध्याय १५ - श्लोक १)
ஊர்த்வ மூலம் அதஹ ஶாகம் அஶ்வத்தம் ப்ராஹுரவ்யயம் ..  (அத்யாயம் 15 - ஶ்லோகம் 1)
Oordhva Moolam Adhah Shakkham Aswattham Praahuravyayam ..  (Chapter 15 - Shlokam 1)

अर्थ :  इस संसार को 'मूल या जड़ ऊपर और शाखायें नीचे' , ऐसा उल्टा अश्वत्थ वृक्ष और अव्यय मानते हैं ।

सृष्टि में स्थावर - जङ्गम दो प्रकार के जीव हैं ।  एक ही स्थान पर स्थिर रहने वाले स्थावर ।  वृक्ष , पौधे आदि ।  और स्थान से स्थान विचरने वाले जङ्गम जीव ।  अन्य सभी जीव ।

तीन प्रकार के जीव ।  इन्द्रिय , मन , चिन्तन शक्ति युक्त बुद्धि , अनुभवों को संग्रह करने वाला चित्त आदि के साथ मनुष्य जीव ।  दूसरा प्रकार प्राणी और पक्षी ।  इन्द्रिय हैं , बुद्धि नहीं ।  (अपनी आवश्यकताओं को ढूंढ प्राप्त करने की अल्प या सीमित बुद्धि है ।  आंग्ल भाषा में उसे basic instinct कहते हैं ।  चिन्तन और अवलोकन कर सही - गलत का निर्णय करने की क्षमता बुद्धि है ।  वह केवल मनुष्य को ही प्राप्त है ।)  तीसरे प्रकार के जीव हैं वृक्ष , पौधे , लता , घास , कांटे आदि ।  इस प्रकार के न इन्द्रिय हैं , न बुद्धि ।  अपने आवश्यकताएं प्राप्त करने की न्यूनतम बुद्धि है ।  (हो सकता है की उन्हें इन्द्रिय न होने का हमारा समझ ही नादानी हो ।  क्या वे देखते हैं , सुनते हैं , स्पर्श का अनुभव करते हैं , भावनाओं का अनुभव करते हैं ??  आज की तिथि में हमें इस विषय में जानकारी नहीं ।)

हिन्दू धर्म में वृक्ष महत्त्व पूर्ण हैं ।  अपने पूर्वज कई शताब्दी पूर्व ही यह जान लिए थे की वृक्ष को जीव है ।  नभ स्पर्शी विशाल वृक्ष तपस में लीन ऋषि गण माने जाते हैं ।  वृक्षों को काटना महा पाप माना जाता है ।  निजी आवश्यकता के लिए यदि एक वृक्ष काटा जाय तो दस वृक्ष रोपे जानी चाहिए ऐसा निर्देश है शास्त्रों में ।  क्यों !  शाम सूर्यास्त के पश्चात वृक्षों से पत्ती या पुष्प लेने की भी मनाई है ।  ऐसी मान्यता है की वृक्ष निद्रा में रहते हैं ।  एक वृक्ष को पालना एक पुत्र को जन्म देकर पालने के समान पुण्य कर्म समझा जाता है ।

हिन्दू जीवन में वृक्ष कैसे अभिन्न अंग बने हैं इसकी अनुभूति हमें विदेश यात्रा में , वह भी पाश्चात्य देशों की यात्रा में मिलती है ।  दक्षिण आफ्रिका में तीन प्रमुख समाज रहता है ।  उस देश के मूल निवासी ।  काले ।  उनकी बस्तियाँ वृक्ष हीन , सूखा रूखा रहता है ।  दूसरा समाज है गोरों का , जो ५०० वर्ष पूर्व यूरोप से आकर यहाँ बसे ।  इनकी बस्तियों में निष्पुष्प , निर्बीज , अलंकार वृक्ष और पौधे रहते हैं ।  (पुष्प कीड़ों को निमंत्रण देते हैं ।  फल पक्षियों को निमन्त्रण देते हैं ।  और आँगन को गंदा करते हैं ।  ऐसी मान्यता और कीट पक्षी के प्रति उनके मन में जो द्वेष है उसी कारण गोरों की बस्ती में ऐसे वृक्ष हैं ।)  तीसरा समाज है १७० वर्ष पूर्व भारत से लाये गए बन्धुआ मजदूर रुपी हिन्दू समाज ।  इनकी बस्तियों में आम , केला , नीम , जास्वन्त ,अरोळ , तुलसी , ध्रुवांकुर आदि वृक्ष , पौधे साथ ही रहते हैं ।  हिन्दू के जीवन में जन्म के समय आवश्यक पालना से मृत्यु के पश्चात दहन के लिए आवश्यक लकड़ी तक वृक्ष अविभाज्य अंग हैं ।

वृक्ष , पौधे सभी जीव हैं ।  परन्तु कुछ वृक्ष भगवत्स्वरूप ही माने जाते हैं और पूजे जाते हैं ।  अश्वत्थ वृक्ष ब्रह्मा , विष्णु और महेश तीनों का स्वरुप माना जाता है ।  अश्वत्थ प्रदक्षिण / परिक्रमा पुण्य कर्म माना जाता है ।

वट वृक्ष मांगल्य सौभाग्य के लिए पूजा जाता है ।  कुल वृद्धि के हेतु सन्तान प्राप्ति के लिए पूजा जाता है ।

नीम का वृक्ष अम्बा देवी का स्वरुप माना जाता है और पूजा जाता है ।

तुलसी साक्षात श्री महालक्ष्मी के स्वरुप मानी जाती है ।  प्रत्येक हिन्दू घर के आँगन तुलसी से अलङ्कृत है ।  कोटि कोटि हिन्दू घरों में तुलसी प्रति दिन पूजी जाती है ।

हिन्दुओं के प्रत्येक देवालय में एक स्थल वृक्ष होता है ।  देव गर्भगृह में देव प्रतिमा पूजी जाती है ।  उतनी ही श्रद्धा से मन्दिर का स्थल वृक्ष भी पूजा जाता है ।

यूरोप में पगान कहे जाकर ख्रिस्ती राज्य और ख्रिस्ती चर्च द्वारा आतंकित , पीड़ित समाज के लिए , ख्रिस्ती सम्प्रदाय के पूर्व यूरोप में प्रचलित सम्प्रदाय के अनुयायी के लिए वृक्ष पूजनीय हैं ।  इस संसार में दो ही ऐसे सम्प्रदाय हैं जो अल्लाह और येशू के अलावा और किसी को , अन्य किसी को नहीं पूजने का तामसी हठ धरते हैं ।  एक वृक्ष-हीन , सूखा - रूखा रेगिस्तान में है ।  और दूसरा वृक्षों का नाश और निसर्ग का शोषण कर इस भूमि को रेगिस्तान बनाने के आसुरी प्रयत्न का प्रेरक है ।

यहाँ इस शब्दावली में श्री कृष्ण इस संसार को एक वृक्ष के रूप में , अश्वत्थ वृक्ष के रूप में , उलटा वृक्ष के रूप में वर्णन कर रहे हैं ।  इस अश्वत्थ वृक्ष को अव्यय या अजर अविनाशी कह रहे रहे हैं ।  ना ।  स्वयं न कहकर , 'ऐसा सभी का कहना है'  इन शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं ।  वृक्ष अपने जड़ मूल पर आश्रित है ।  उसी प्रकार संसार भी श्री परमात्मन पर आश्रित है ।  सभी जीव अपने लिए आवश्यक सभी सार तत्त्व को जड़ से प्राप्त करते हैं ।  वृक्ष के लिए मूल जैसे , संसार के लिए श्री परमात्मन ही मूल हैं ।  भगवान ऊपर है इस आस्था के कारण जड़ ऊपर दर्शाया गया है ।  वृक्ष में पत्ते , शाखा , पुष्प आदि नित्य परिवर्तन में हैं ।  नाश की ओर हैं ।  परन्तु जड़ स्थिर है ।  उसी प्रकार , संसार परिवर्तन शील है ।  नश्वर है ।  श्री परमात्मन नित्य है ।

अश्वत्थ वृक्ष रुपी संसार को 'अव्यय' कह रहे हैं ।  संसार तो नित्य विनाशी है ।  परिवर्तन युक्त है ।  परन्तु मनुष्य की अल्प दृष्टी में अव्यय जैसे , नित्य निरन्तर जैसा दिखता है ।  इसीलिए मनुष्य उसे अव्यय कह रहा है ।  संसार रुपी पत्ती , शाखा , पुष्प आदि के आकर्षण में न फंसकर श्री परमात्मा रुपी जड़ की ओर ध्यान रहें ।  अगली शब्दावली में श्री कृष्ण वैराग्य नामक शस्त्र से दृढ़ता पूर्वक इस वृक्ष काट देने का सुझाव दे रहे हैं ।  अगली शब्दावली पढ़ें ।

Comments

Popular posts from this blog

ஜ, ஷ, ஸ, ஹ, க்ஷ, ஸ்ரீ ....

ॐ ஜ , ஷ , ஸ , ஹ , ஶ , க்ஷ , ஸ்ரீ என்ற எழுத்துக்களை வடமொழி எழுத்துக்கள் என்கிறான் ஒருவன். ஸம்ஸ்க்ருத எழுத்து என்கிறான் ஒருவன் . மூடர்கள் .  அறியாமையில் பேசுகின்றனர் . தவறான நோக்கத்துடன், நம்முள் பேதத்தை ஏற்படுத்திட எவனோ புதைத்துச் சென்ற விஷத்தை , அது விஷம் என்று கூட அறியாமல் பேசுகின்றனர் . வட என்பது திஶை . திஶைக்கு மொழி கிடையாது . (இசைக்கும் மொழி கிடையாது . கவிதைக்குதான் மொழி . தமிழிசை மன்றம் என்பதெல்லாம் அபத்தம் .) தமிழகத்திற்கு வடக்கில் பாரத தேஶத்தின் அத்தனை ப்ராந்தங்களும் (கேரளம் தவிர்த்து) உள்ளன . தெலுங்கு , மராடீ , போஜ்புரி , குஜராதீ ... அனைத்து மொழிகளும் வட திஶையில் பேசப்படும் மொழிகள் .  இவை எல்லாம் வடமொழிகள் . (கன்யாகுமரி ஆளுக்கு சென்னை பாஷை கூட வடமொழிதான்) . இந்த எல்லா மொழிகளிலும் இந்த ஶப்தங்களுக்கு எழுத்துக்கள் உண்டு .   தெலுங்கில் జ  , స  , హ .. . என்றும் ,   கன்னடத்தில்   ಜ , ಸ , ಹ , ಕ್ಷ .. என்றும் , மராடீயில் . ज , स , ह , श , क्ष,.. என்றும் குஜராதியில்     જ , સ , હા , ક્ષ  , என்றும் ,   ப...

கீதையில் சில சொற்றொடர்கள் - 31

ॐ கீதையில் சில சொற்றொடர்கள் - 31 चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुण कर्म विभागशः  ... (अध्याय ४ - श्लोक १३) சாதுர்வர்ண்யம் மயா ஸ்ருஷ்டம் குண கர்ம விபாகஶஹ்  ...  (அத்யாயம் 4 - ஶ்லோகம் 13) Chatur VarNyam Mayaa Srushtam GuNa Karma Vibhaagashah ... (Chapter 4 - Shlokam 13) அர்தம் :   சாதுர் வர்ண்யம் மயா ஸ்ருஷ்டம்... குண கர்ம விபாகஶ :   குணம் மற்றும் கர்மங்களின் அடிப்படையில் நான்கு வர்ணங்கள் என்னலே படைக்கப் பட்டது. சாதுர் வர்ண்யம் மயா ஸ்ருஷ்டம்... குண கர்ம விபாகஶ :  சதுர் வர்ணங்களை, நான்கு வர்ணங்களை நான்தான் ஸ்ருஷ்டித்தேன், என்கிறார் ஸ்ரீ க்ருஷ்ணன்.  இதில் என்ன ஆஶ்சர்யம் ??  ப்ரக்ருதியில் உள்ள அனைத்துமே அவர் படைத்தவை என்னும்போது, சதுர் வர்ணங்களையும் அவர்தானே படைத்திருக்க வேண்டும் ??  கீதையின் இந்த வாக்யம் நாஸ்திகவாதிகள், கம்யூனிஸ்ட்கள், கடவுள் மறுப்பு இயக்கத்தினர் என்று கடவுளை ஏற்காதவர்களையும் நெளிய வைக்கிறது.  கடவுளே படைத்திருக்கிறார் என்றால் அதை அழித்தொழிக்க முடியாது என்று கருதுகிறார்களா ??  இவர்கள் அனைவரும் ஜாதி அம...

पतञ्जलि योग सूत्र - १

ॐ पतञ्जलि योग सूत्र (अष्टाङ्ग योग) [ ट्विटर पर मेरे लिखे नोट ] {- १ -}: पतञ्जलि योग सूत्र मे ४ पाद हैं | ४ पाद मिलाकर १ पूर्ण होता है | समाधि पाद, साधन पाद, विभूति पाद एवम् कैवल्य पाद | {- २ -}: पतञ्जलि योग सूत्र मे १९५ सूत्र हैं | ये श्लोक रूप मे न होकर सूत्र रूप मे हैं | {- ३ -}: पतन्जलि योग सूत्र -- समाधि पाद मे ५१, साधन पाद मे ५५, विभूति पाद मे ५५ और कैवल्य पाद मे ३४ सूत्र हैं | एकुण १९५ सूत्र | {- ४ -}: श्री पतञ्जलि योग के ८ अङ्ग बताते हैं | यम, नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि योग के ८ अङ्ग हैं | {- ५ -}: यम नियमासन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समधयो(s)ष्टावङ्गानि - {साधन पाद - २९} {- ६ -}: पहली बात यह है की यह "योगा " नहीं , "योग " है | अङ्ग्रेजी चष्मा को हटा लें | अपने विषयों को अपने ही आंखों से देखें | योगा नहीं योग | {- ७ -}: महर्षी पतञ्जलि की विशेषता - एक सूत्र कहते और उसमे प्रयोग किया गया प्रत्येक शब्द को एकेक सूत्र मे समझाते | {- ८ -}: योगश्चित्त वृत्ति निरोधः - चित्त की वृत्तियां रुक ...