ॐ
नमस्कार – विश्व को भारत का विशेष देन
नमस्ते | नमस्कारम् | नमस्कार | नमस्करिक्कुन्नु |
नमस्कारमण्डी | नोमोष्कार | भारत के सभी भाषाओं मे एक ही शब्द | उस शब्द द्वारा
निर्देशित क्रिया एक | उस क्रिया के पीछे प्रस्तुत भाव भी एक |
गुस्सा एवम प्रतिशोध के भाव व्यक्त करने दुनिया का हर समाज
“मेरा पैर तेरे सिर पर” “मेरे जूते से तुझे मारूं” जैसे शब्दों का प्रयोग करता है
| ये शब्द ही हिंसायुक्त हैं | क्रिया तो परम् हिंसा है |
इसके विपरीत भाव को व्यक्त करने वाला शब्द एवम् क्रिया है नमस्कार | “मेरा सिर तेरे चरणों पर...” | विनम्रता, क्षमा याचना आदि भाव व्यक्त होते हैं नमस्कार से |
क्रोध एवम् प्रतिशोध पाश्विक भाव हैं | ये भावना मनुष्य मे
जन्मजात और सहज उपस्थित हैं | परन्तु विनम्रता, क्षमा याचना आदि मानवी भावनायें
हैं | ये केवल मनुष्य में, उसमे भी देवत्व की ओर प्रयास करने वाले मनुष्य मे
उपस्थित हो सकते हैं | गीता मे श्री कृष्ण (अध्याय १६ – श्लोक १, २, ३) इन भावनाओं
को दैवी संपत कहते हैं | अपने श्रेष्ट पूर्वज ऋषियों ने देवत्व प्राप्ति ही मनुष्य
जीवन का लक्ष्य बताया है | इसी लिये भारत मे प्रचलित उत्सव, खेल, साहित्य, संगीत,
अन्य कलायें, दैनिक रीति रिवाज आदि सभी तदनुरूप विकसित किये हैं | नमस्कार भी ऐसी ही
एक प्रथा है जो मनुष्य के उद्धार मे सहायतार्थ है |
वेद काल से यह प्रथा चली है | नमः उन शब्दों मे है, जो
वेदों मे सर्वाधिक बार उच्चार किया गया है | रामायण और महाभारत मे नमस्कार यह
क्रिया कई बार चित्रित है |
किसे नमस्कार ? देव
द्विज गुरु प्राज्ञ इनको किया गया नमस्कार शारीरिक तपस है ऐसा श्री कृष्ण कहते हैं
| (अध्याय १७ – श्लोक १४). अध्याय ४ मे गुरु से ज्ञान प्राप्ति कैसे किया जाये
इसका वर्णन करते हुए श्री कृष्ण सब से पहले “गुरु को नमस्कार” यही सुझाते हैं (अध्याय
४ श्लोक ३४) | जब तक अर्जुन अकड कर खडा रहा और युद्ध न करने का अपना निर्णय के
पक्ष मे वाद प्रस्तुत कर रहा था, श्री कृष्ण चुप रहे | वह नमस्कार भाव को प्राप्त
होता है तद्पश्चात ही गीता बोलना प्रारम्भ करते हैं | शिष्यस्तेsहं शाधि मां त्वां
प्रपन्नम् (अध्याय २ – श्लोक ७) |
माता – पिता को नमस्कार वेदों का निर्देश है | “मातृ देवो भव” “पितृ देवो भव” आदि वेद वाक्य इसकी पुष्टी करते हैं | अपने पुराण कथाओं मे यह विषय वारंवार कहा गया है | एक बार नारदजी ने शिवजी को एक आम का फल दिया | शिवजी ने अपने पुत्रों को बुलाया और कहा की पृथ्वी की परिक्रमा कर जो पहले पहुंचेगा उसे यह आम का फल दिया जायेगा | श्री कार्तिकेय निकले अपने मयूर वाहन पर | श्री गणेश ने माता पिता का परिक्रमा किया और नमस्कार किया | फल उन्हीं को प्राप्त हुआ | बाल श्रवण अपने अन्धे माता पिता को कावड मे बिठाकर तीर्थ यात्रा कराया यह रामायाण की घटना है | मांस काटकर बेचने वाला, परन्तु माता पिता को श्रद्धा और सेवा सहित पूजने वाला व्याध ऋषी कुमार को अध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर सका (व्याध गीता) |
सूर्य नमस्कार भी वेदों उल्लिखित्है | पृथ्वी, गाय, तुलसी, नदी,... आदि अनेक हैं जिन्हें हिन्दु नमस्कार करता है |
हम से बडों का नमस्कार करना चाहिये | आयु से छोटा परन्तु गुण एवम् कर्तृत्वे से बडा हो तो वह भी नमस्कार करने योग्य है | लेकिन ये तो सूक्ष्म बातें हैं | कैसे पहचाने? उत्तम तो यह होगा की सभी को नमस्कार करें |
नमस्कार यह शारीरिक क्रिया है परन्तु इसमे भावना प्रधान है | मन मे गुस्सा हो, मात्सर्य हो तो नमस्कार करना कठिन है | अहङ्कार नमस्कार को रोकने मे बडा सामर्थ्यशाली है | मन मे एक क्षण भर के लिये जो विनम्रता का उदय होता है, क्षण भर के लिये “मैं” का विसर्जन हो मन निरहङ्कारी हो जाता है, बस वही क्षण नमस्कार हो जाता है | बाहरी क्रिया तो उस क्षण भर भावना का प्रकटीकरण मात्र है | मन मे भाव हो और बाहरी क्रिया ना हो तो चलेगा परन्तू भावना के बिना क्रिया केवल ritual बन जाता है | Ritualistic ही क्यों न हो, क्रिया करते रहें तो कभी न कभी भावना का उदय होने की संभावना है |
अपने से बडों का नमस्कार करना सुलभ है | “यह व्यक्ती विशेष क्शमताओं से युक्त है”; “यह संन्यासी सिद्धी प्राप्त है”; “यह मन्दिर की मूर्ति दिव्य शक्तियों वाली है”; आदि बातें बहुत आसानी से नमस्कार को प्रेरित कर देती हैं | जहां चमत्कार वहां नमस्कार | प्रतिभावान, सामर्थ्यवान, गुणवान, ज्ञानवान को नमस्कार करना सुलभ है | क्या छोटों को नमस्कार करना संभव है ? ज्ञानी आचार्य को नमस्कार करना आसान है ? मूर्ख को ? धनवान को नमस्कार आसान है | दरिद्र को? स्वामि विवेकानन्द “मूर्ख देवो भव”, “दरिद्र देवो भव” इन दो वाक्यों को उपनिषद वाक्यों की पङ्क्ती मे जोडने का सुझाव देते हैं | उत्कृष्ट सुझाव है |
करने वाले के मन मे “सब परमात्मा के स्वरूप हैं” – यह अद्वैत भाव जगाने का सामर्थ्य रखता है नमस्कार | नमस्कार लेने वाले के मन मे भी प्रभाव छोड जाता है | उसके मन मे मे छुपे क्रोध शान्त हो जाता है | “क्या मैं नमस्कार का पात्र हूं ?” ऐसा आत्म परीक्षण सम्भव है | एक क्षण भर के लिये उसके मनमे विनम्रता जग जाने की संभावना है | ऐसी मन:स्थिती मे उसके मनमे जो सदिच्छा जगती है वही आशीर्वाद है | आयुष्यमान भव, सौभाग्यवती भव ऐसे आशीरवचन तो दुय्यम हैं |
मनुष्य मन बडा क्लिष्ट है | आरम्भ मे “मुझे नहीं | अऔरों को करो |” ऐसा कह नमस्कार लेने से इनकार करने वाला कुछ समय मे अपने आप को नमस्कार का पात्र समाझने लगता है | और कुछ दिनों मे नमस्कार न किये जाने से उसे साहङ्कार गुस्सा भी आ जाता है | नमस्कार उस परमात्मा को किया जा रहा है, मुझे नहीं ऐसे विचार कर अपने आपको अलिप्त रखने का प्रयास उपयोगी है |
नमस्कार कैसे किया जाये ? सिर झुकाकर; दोनों हाथ जोडकर; झुककर पैर छूकर पायधुली अपने सिर पर लगाकर; साष्टाङ्ग (शरीर के आठ अङ्ग पृथ्वी को स्पर्श करते हुए) नमस्कार; किसी भे प्रयास किये बिना पूरे शरीर को जमीन पर गिराकर; नमस्कार के अनेक प्रकार हैं | बडों को नमस्कार कर अपना प्रवर,गोत्र, वेद शाखा, नाम आदी का परिचय देने की प्रथा वैदिक ब्राह्मणों के बीच प्रचलित है |
“मद्याजी मां नमस्कुरु” (अध्याय ९ – श्लोक ३४) | “मेरी अर्चना और मुझे नमस्कार करें” कहते हैं श्री कृष्ण | “सर्व धर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज “ (अध्यायं १८ श्लोकं ६६) | मेरे शरण आ | सभी पापों से तुझे मुक्त करा देता हूं | यह आश्वासन है श्री कृष्ण का |
सभी को नमस्कार |
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