ॐ
गीता की कुछ शब्दावली (4)
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गम् जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् (अध्याय 2 - श्लोक 37)
ஹதோ வா ப்ராப்ஸ்யஸி ஸ்வர்கம் ஜித்வா வா போக்ஷ்ஸ்யஸி மஹீம் ..(அத்யாயம் 2 - ஸ்லோகம் 37)
Hatho vaa praapsyasi Swargam jitvaa vaa bhokshyase Maheem (Chapter 2 - Verse 37)
यह एक मार्मिक शब्दावली है | "युद्ध मे तुम मारे गये तो स्वर्ग की प्राप्ती करोगे | युद्ध मे विजय प्राप्त करने पर लौकिक सुखों का, राजा के लिये योग्य सुख भोग का अनुभव करोगे |" इस मानसिकता ने भारतीय कषत्रियों को युद्ध मे अपना सर्वस्व न्योछावर करने की प्रेरणा दी है |
यह शब्दावली एक मानसिकता को दर्शाती है | किसी भी प्रयास के दो तरह के फल हो सकते हैं | एक 'सकारात्मक', अनुकूल, और वाञ्छित | दूसरा 'नकारात्मक' प्रतिकूल और अवाञ्छित | मनुष्य जब इन दोनों के बीच खींचा जाता है, एक को पाने और दूसरे से बचने की लालसा मे फंसता है, तो उसकी कार्य क्षमता क्षीण हो जाती है | जब उसके मन मे यह निश्चित धारणा हो जाती है की दोनों संभावनायें उसके हित मे ही हैं तो उसकी कार्य क्षमता शत प्रति शत होने की शक्यता बढ जाती है | जीवन के हर क्षेत्र मे यह लागू है | पर श्री कृष्ण का अर्जुन के साथ यह संवाद युद्ध क्षेत्र मे चलने के कारण, उसके अनुरूप शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं श्री कृष्ण |
युद्ध मे दो पर्याय शक्य है | 'युद्ध लढो और जीतो' या 'लढो और मारे जाओ' | श्री कृष्ण कहते हैं की ये दोनो पर्याय 'तेरे हित मे, तेरे अनुकूल हैं | जीतो तो राज भोग और ऐश्वर्य का आनन्द लो | युद्ध मे मारे गये तो स्वर्ग की प्राप्ती कर दैवी सुखों का आनन्द लो | चित भी तेरी, पट भी तेरी | तीसरा पर्याय, युद्ध मे पराजय परन्तु जीवित रहना, तेरे लिये उपलब्ध नहीं |
हिन्दी मे करो या मरो; तमिल मे 'सेय अल्लधु सेथु मडी; अन्य भारतीय भाषाओं मे इसी भावार्थ के शब्द प्रचलन में हैं | दुश्मन के हाथ पकडा जाना और उसका गुलाम बनकर जीना या युद्ध क्षेत्र से पलायन कर जीना जैसे पर्याय क्षत्रियों द्वारा अपमानजनक समझे गये | आगे जाकर १८ वे अध्याय मे क्षत्रिय का वर्णन करते हुए श्री कृष्ण, 'युद्धे अपलायनम्' को क्षत्रिय का प्रमुख स्वभाव बताते हैं | संसार के सर्व श्रेष्ट क्षत्रिय, शौर्य और साहस मे सर्वोत्कृष्ट क्षत्रिय भारत मे उत्पन्न हुए इसका कारण यही मानसिकता है, ऐसा कहना अत्योक्ती नहीं होगी | पाण्डिय, मराठा, कोळी, राजपुत, बुन्देली, सिख वीरों के शौर्य भरी अनेक गाथायें उपलब्ध हैं | आज के नवीन युग मे भी शस्त्रों के कमी और प्रतिकूल नैसर्गिक परिस्थिती के बावजूद भारतीय सेना ने आश्चर्यजनक साहस का प्रदर्शन किया है और विजय प्राप्त किया है |
यही मानसिकता कई युद्धों में वीरों मे आत्मघातक उद्वेग जगने और परिणामतः युद्ध में पराजय का भी कारण रहा है | युद्ध में पराजय निश्चित ऐसा दिखने लगा तो वीरों मे मानो मर जाने की प्रेरणा ही जग जाती | इस नियम मे परिवर्तन लाने और एक नये नियम स्थापित करने का श्रेय श्री शिवाजी के नेतृत्व मे चली मराठा सेना को ही है | श्री शिवाजी का नियम था 'युद्ध लढो और जीतो' | परिस्थिती विपरीत हो जाये तो युद्ध क्षेत्र से भागने मे कोई संकोच ना करें | पलायन केवल जीव बचाने के लिये नहीं परन्तु पुनः संगठित होकर लढने और जीतने के लिये" | श्री शिवाजी ने युद्ध मे विजय यह एक ही पर्याय रखा | 'मृत्यु और स्वर्ग का दूसरा पर्याय को हटा दिया |
राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ की स्थापना करने वाले पूज्य डाक्टर हेड्गेवार् की जीवनी में एक मार्मिक प्रसङ्ग है | वे चित्र प्रदर्शिनि मे गये हुए थे | एक चित्र का शीर्षक था - आओ ! देश के लिये मरना सीखें | उन्होंने उत्तम पर्यायी शीर्षक सुझाया | आओ ! देश के लिये जीना सीखें |
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