ॐ
गीता के कुछ शब्दावली (१)
मामकाः पाण्डवाश्चैव ... (अध्याय १ - श्लोक १)
மாமகாஹ பாண்டவாஸ்சைவ ... (அத்யாயம் 1 - ஷ்லோகம் 1)
Maamakaah Paandavaaschaiva....(Ch I - Shloka 1)
மாமகாஹ பாண்டவாஸ்சைவ ... (அத்யாயம் 1 - ஷ்லோகம் 1)
Maamakaah Paandavaaschaiva....(Ch I - Shloka 1)
ये शब्द हस्तिनापुर का अन्धा राजा धृतराष्ट्र के हैं | अर्थ है - "मेरे (पुत्र) एवम् पाण्डु के (पुत्र)" | पाण्डु कहीं दूर दक्षिण अफ़्रिका या दक्षिण अमेरिका का था ? ऐसा ही कोई गैर था जिसका धृतराष्ट्र से कोई सम्बन्ध नहीं था ? नहीं | वह तो धृतराष्ट्र का सगा अनुज, छोटा भाई था | और धृतराष्ट्र इस तरह की विभाजन की भाषा बोल रहा है - मेरे और पाण्डु के (मेरे और मेरे भाई के - ऐसा भी बोल सकता था |) भारत का सामान्य व्यक्ति भी अपने भाई के पुत्रों को अपने ही मानने की परम्परा रखता है | धृतराष्ट्र तो राजा था | उत्कृष्ट भरत वंश का वंशज था | उसे महान ज्ञानियों का मार्गदर्शन प्राप्त था | परन्तु इन शब्दों को बोल रहा है |
किसी के शब्द उसके विचार के ही प्रकट स्वरूप है | नहीं | उसके मन के गहरायी मे छिपी उसकी भावना ही शब्द और कर्म रूप में प्रकट होते हैं | (हां ! कण्ठस्थ किये गये शब्द यदी सावधानी से बोले गये तो शायद भावना को छुपाने में सफ़ल हो |) भावना ही एक व्यक्ति का व्यक्तित्व है | "मेरे और पराये" ऐसी भावना से कैद था धृतराष्ट्र का व्यक्तित्व | कुरुक्षेत्र युद्ध और परिणाम स्वरूप हुआ नाश के लिये धृतराष्ट्र की यही भावना कारण बनी |
"हस्तिनापुर मेरा है | सिंहासन मेरा है | सिंहासन का मैं ही अधिकारी हूं | मुझ से यह अन्यायपूर्वक छीना गया | मेरे बाद मेरा पुत्र दुर्योधन इस सिंहासन का हकदार है |"
"दुर्योधन मेरा है | उसका वर्तन कैसा भी हो, वह जो चाहे करें , परन्तु वह मेरा है | उसके विरोधी मेरे भी विरोधी हैं |"
परन्तु यह मानना पडेगा की धृतराष्ट्र दुर्योधन जितना दुष्ट, हठी, और अत्याचारी नहीं था | वह जानता था धर्म क्या है और अधर्म क्या है | उसके अन्दर धर्म और मोह के बीच एक निरन्तर संघर्ष चलता रहा | वह कमजोर व्यक्ति था | मोह के कारण होने वाले अनिष्ट परिणाम वह देख सकता था | ये परिणाम धर्म के विरुद्ध हैं यह भी उसे स्पष्ट दिखता था | परन्तु वह धर्म का पक्षधर नहीं बन सका | अपने मोह को भङ्ग नहीं कर सका |
अन्यायी होते हुए भी हमें उसपर गुस्सा नहीं आती | साधारणतह हमें दुर्बलों पर गुस्सा आती नहीं | दुर्बलों पर केवल दया आती है | क्या कोई छोटे से कीडे पर गुस्सा करता ? (स्मरण रहे !! अगली बार हमें किसी पर गुस्सा हो तो यह समझना की हम उसे अपने से बलवान मान रहें हैं और अपने आप को उससे कमजोर और असहाय |) महाभारत के पाठक के मन मे धृतराष्ट्र पर गुस्सा नहीं मात्र दया होती है | (गुस्सा ना होने का और भी कारण हो सकता है | हम भी उसी के समान हो , धर्म और मोह के बीच, श्रेय और प्रिय के बीच संघर्ष मे फ़सें हुए हो |)
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