ॐ
गीता की कुछ शब्दावली (८)
ஸமத்வம் யோக உச்யதே (அத்யாயம் 2 - ஸ்லோகம் 48)
Samatvam Yoga Uchyate (Chapter 2 - Shloka 48)
अर्थ : समत्व या संतुलन ही योग है ऐसा कहते हैं |
यह शब्दावली सुलभ है | इसका अर्थ सहज है | इसमे समत्वं एवम् उच्यते ये दो शब्द महत्वपूर्ण हैं |
उच्यते याने कहते हैं | 'समाज मे ऐसा कहते हैं'; 'श्रेष्ट जन ऐसा कहते हैं' | यही तात्पर्य है | 'मैं कह रहा हूं' ऐसा स्पष्ट स्वर् मे श्री कृष्ण अपना कोई मत का उद्घोष कर सकते हैं | इसकी योग्यता भी उन्हें प्राप्त है | (हम मे से कई तो अत्यल्प कद के होते हुए भी 'मैं कहता हूं' ऐसा चिल्लाकर कहने की उद्दण्डता रखते हैं |) यदी श्री कृष्ण कहते भी उनका ऊंचा व्यक्तिमत के प्रभाव से हम उसे स्वीकार् भी कर लेते | किन्तु श्री कृष्ण 'सज्जनों का, ज्ञानी जनों का ऐसा कहना है'; 'मेरा यह अभिप्राय है'; ऐसे शब्दों का प्रयोग गीता मे कई बार करते हुए दिखते हैं | इसके लिये व्यक्तिमत मे विनम्रता, अहङ्कार का ना होना आवश्यक है |
संसार के लगभग सभी क्षेत्रों मे समत्व अत्यावश्यक है | समत्व की अपेक्षा की जाती है | संतुलन का बिगडना या समत्व का ना होना अस्वीकार है |
बडजेट संतुलित रहा ऐसा कहने का तात्पर्य यह है की उसमे समाज के किसी विशेष अङ्ग के प्रती झुकाव नहीं है और सभी वर्गों के हित की बात उसमे है |
हम सब संतुलित शरीर को प्राप्त करना चाहते हैं | फुली हुई छाती, गोल कंधे, हृष्ट पुष्ट भुजायें, छोटी और चरबी रहित कटि, मांसपेशी युक्त जंघे, बहुत ऊंचा भी नहीं, ठिन्गणा भी नहीं ऐसा शरीर आदि आदि | ऐसा संतुलित शरीर हमारा पसन्द है |
हमारे दो आंखों की दर्शन क्षमता भी संतुलित हो यही अपेक्षा है | संतुलन बिगड जाता तो चष्मा लगाकर संतुलन की पुनःप्राप्ती कर लेते हैं |
भोजन भी संतुलित हो | कार्बो-हैद्रेट हो, प्रोतीन हो, विटमिन हो, फेट (fat) हो, मिनेरल्स हो | सभी छे प्रकार के स्वाद, सही मात्रा मे हो | तत्काल प्राप्त फल, सब्जी, भाजी आदि हों तो वह संतुलित भोजन है | संतुलित भोजन ही हमारे लिये श्रेयस्कारी है | उस भोजन का हम संतुलित सेवन करें यह भी अपेक्षा है | परोसे गये सभी पक्वान्न को स्वाद चखते हुए ग्रहण करें | किसी का तिरस्कार ना करें | थाली मे छोड न दें |
दुनिया की राजनीति जब दो ध्रुवों के बीच फंसी हुई थी, उस काल मे अपना भारत सरकार ने दोनों के साथ दोस्ती रखते हुए भी दोनों ओर न झुकने की समत्व युक्त नीति अपनायी थी |
समत्व युक्त या संतुलित रहने मात्र से एक क्रीडा संच (sporting team) यश प्राप्ती का अधिक योग्य बन जाता है | फुटबाल का कोई संच आक्रमण मे, रक्षण मे, गेन्द को पास करने मे, तेजी मे, सक्षम हो और उक्त संच मे एक अच्छा गोल रक्षक भी प्राप्ते हो तो उसे यश से कोई वञ्चित कर नहीं सकता | इन क्षमताओं मे कम, पर एक या दो श्रेष्ट खिलाडी उस संच मे हो तो भी वह यश प्राप्ती मे असमर्थ हो जाता है |
अपना जीवन भी समत्व युक्त हो | बडे उद्योग संस्थाओं मे कार्यरत अनेक अधिकारी अपनी नौकरी मे इस तरह डूबते हैं की उन्हें जीवन के अन्य विषयों के लिये समय ही नहीं मिलता | अपने आप को ऊंचा उठाने एवम संबन्धों को सुचारू रखने हेतु ये अन्य विषय ही उपयोगी हैं | नौकरी जीवन के लिये आवश्यक है परन्तु नौकरी ही जीवन नहीं |
मनो विज्ञान क्षेत्र मे भी समत्व यह विषय बोला जा रहा है | हमारी मेन्दू दहिना और बाया ऐसे दो हिस्सों मे बटी हुई है | ये दोनों हिस्सों का समान विकास संतुलित विकास अपेक्षित है | दहिना भावनाओं का केन्द्र है और बाया तर्क का | तर्क रहित भावना या भावना रहित तर्क दोनों ही खतरा है | तर्क से असामन्जस भावना भी क्यों न हो, भावना अवश्यक है | भावना ही जीवन के रसानुभव मे सहयोगी हैं | तर्क भी अवश्यक है | किन्तु अति हो तो जीवन रसहीन बन जाने की शक्यता है |
मन के दो प्रवृत्तियां चर्चित है | एक मन की एकाग्रता और दूसरा मन का संतुलन | कर्मों मे यश प्राप्ती अथवा कर्मों को उत्तम रीति करने के लिये एकाग्रता ही अवश्यक ऐसी साधारण प्रचलित धारणा है | यह सत्य भी है | बुरे कर्मों के लिये अथवा समाज घातक चेष्टाओं के लिये भी एकाग्रता की आवश्यकता उतनी ही है | अतः एकाग्रता कर्म के यश मे अनुकूल प्रवृत्ति भले हो, संपूर्ण जीवन को समझने मे, अपने आप को गुण संपन्न बनाने के प्रयत्न मे और आध्यात्मिक मार्ग पर प्रगती के लिये मानसिक संतुलन ही अधिक अवश्यक है | यही कहना है श्री कृष्ण का |
संसारी जीवन आपस मे विरोधी परन्तु एक दूसरे से जुडे जोडों से भरपूर है | राग-द्वेश, मान-अपमान, कीर्ति-अपकीर्ति, दिन-रात, समर्थन-विरोध, स्वागत-खण्डन, पुष्पहार-पथराव, शीत-उष्ण, यश-अपयश, मिलना-बिछडना, जन्म-मृत्यु, सुख-दुःख, अनुकूल-प्रतिकूल आदि आदि अनेक | समत्व याने इन विरोधी द्वन्द्वों की प्राप्ती मे सम रहना, संतुलित रहना | समत्व ही योग है | समत्व ही यश है |
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