ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १४
स्तेन एव सः | (अध्याय ३ - श्लोक १२)
ஸ்தேன ஏவ ஸ: (அத்யாயம் 3 - ஸ்லோகம் 12)
Stena Eva Saha (Chapter 3 - Shloka 12)
अर्थ : वह चोर ही है ....
वह चोर ही है | गीता मे कई स्थानों मे श्री कृष्ण कठोर शब्दों का प्रयोग करते हुए प्रतीत होते हैं | परन्तु वे तो केवल सीधी बात कह रहे हैं | सत्यवचन प्रस्तुत कर रहे हैं | सत्य हमारे इष्टानुरूप होता नहीं | सत्य हमारे मन के लिये प्रिय ही होगा यह निश्चित नहीं | अपने अनुकूल सत्य को मरोडने का प्रयत्न करने से अपने आप को सत्य के अनुरूप ढालने का प्रयत्न करने मे ही अपनी भलाई है |
अन्यों के वस्तु या धन को उठाने का प्रयत्न करने वाला चोर ही है | पाकेट मार, गहने छीनने वाला, घर मे घुसकर डाका डालने वाला, पथ पर चाकू या बन्दूक दिखाकर लूटने वाला, धमकाकर पैसा लेनेवाला, अन्यों के फसल, फल और फूल चुराने वाला, नवीन युग मे हैकिङ्ग जैसे तन्त्रज्ञान का प्रयोग कर बेन्कों से पैसे निकालने वाला, जैसे ये सभी चोर हैं यह हम सभी को ज्ञात है | व्यापार मे गलत गतिविधियों का उपयोग करने वाला, मिलावट करने वाला, स्वर्ण के नाम से पीतल बेचने वाला, माप मे चोरी करने वाला, जनता के मनमे लोभ छेडकर पैसे लूटने वाले Chit Funds, MLM या शृङ्खला विक्रय, लाटरी जैसी कंपनियां चलाने वाला, आदि भी चोरों की इस यादी मे जोडे जा सकते हैं |
अन्यों की भूमी हडपने वाला, अतिक्रमण करने वाला, सरकारी भूमी पर या रेल्वे की भूमी पर अवैध कृषी या अन्य किसी उद्योग कर धन कमाने वाला, पथिकों के लिये बनाये गये फ़ुटपाथ पर दुकान जमाने वाला, फ़ुटपाथ पर अपने सामान को फैलाकर दुकान की सीमा का अवैध विस्तार करने वाला, अपनी भूमी के इन्च इन्च पर अपना घर बनाकर द्वार की सीढियां और खिडकी के छज्जों को सरकारी जमीन पर बनाकर अपने आप को बुद्धिमान समझने वाला, अपनी गाडी को अपनी भूमी के हद्द मे न रखते हुए रास्ते पर पार्किन्ग करने वाला, (क्यों रेल मे अन्य के सीट पर अपना पैर फिलाने वाला भी!) ये सभी चोर हैं | भूमी के चोर |
अन्यों के परिश्रम को निचोडने वाला, श्रमानुरूप वेतन न देकर कम वेतन देने वाला, अन्यों की विवशता का लाभ उठाकर अधिक श्रम कराने वाला, कम वेतन देकर अधिक धन राशी लिखवाने वाला, अधिक धन लाभ के लिये बच्चों से श्रम करवाने वाला, ऊंचे सिद्धान्त की बात कर या अन्य किसी भावना छेडकर मुफ्त श्रम पाने का प्रयत्न करने वाला, आदि सब् श्रम के चोर हैं |
सरकारी करों की चोरी करने वाला, सरकारी सुविधा की प्राप्ती के लिये आय-व्यय लेखन मे हेरा फेरी करने वाला, निर्धनों के लिये सरकार द्वारा दिये जा रहे वस्तुओं को, पात्रता न होते हुए भी, प्राप्त करने वाला, घूस की सहायता से अवैध कार्य या अवैध सुविधा प्राप्त करने वाला, युक्त शुल्क दिये बिना सरकारी व्यवस्था का उपयोग करने वाला, टिकट के बिना रेल मे प्रयाण करने वाला, प्लाटफार्म टिकट के बिना रेल प्लाटफार्म मे प्रवेश करने वाला, निम्न दर्जा का टिकट खरीदकर स्लीपर कोच मे प्रयाण करने वाला, कृषी मे सहायता हेतु सरकार द्वारा दी गयी निःशुल्क बिजली का अन्य कार्यों मे उपयोग करने वाला, सरकार द्वारा दिया गया मुफ्त घर को किराये पर देकर पैसे कमाने वाला, सरकार द्वारा मुफ्त बांटे गये वस्तुओं को बाजार मे बेचने वाला, अपने दायित्व के सही निर्वाह के लिये प्राप्त वाहन जैसे सुविधाओं का पारिवारिक या अन्य निजी कार्यों मे उपयोग करने वाला, वेतन के लिये काम न कर, घूस के लिये काम करने वाला, आदि ये सब भी चोर हैं | सरकारी खजाने से चुराने वाले चोर |
अपने शास्त्र एक कदम आगे बढकर यह घोषित करते हैं की अन्य किसी के धन या वस्तु प्राप्त करने की या भोगने की इच्छा मात्र चोरी है | हमारी इच्छा और कोई जानता नहीं | पुलिस इस चोरी को रोकने मे असमर्थ है | हमारी इच्छा तो बस हम ही जानते हैं | इसलिये इस प्रकार की चोरी रोकने मे केवल हम स्वयम् ही समर्थ हैं |
चोरी मे छोटी बडी ऐसे स्तर होते नहीं | "मैं ने तो अत्यल्प चोरी किया |", "उसकी चोरी बहुत बडी है |".ऐसे वर्गीकरण चोरी मे नहीं | राजकीय विधी की दृष्टी मे यह संभव है | परन्तु धर्म की दृष्टी मे चोरी तो केवल चोरी है | एकादशी व्रत रखने वाला एक मुट्ठी भर ही खाये या छप्पन भोग करें दोनो मे उसका व्रत भङ्ग होना है |
अपने पूर्वजों ने अस्तेय इस मूल्य को धर्म लक्षणों मे एक घोषित किया है | पतञ्जलि अष्टाङ्ग योग सूत्र मे अस्तेय प्रथम अङ्ग के पांच यमों मे एक बताया गया है | अपने भारत देश मे बिना दरवाजे के घर, बिना कुलूप् के दरवाजे, बिना दीवार् के खेत, कम से कम पुलिस कर्मी, छोटे जेल जैसे सराहनीय स्थिती के लिये एक प्रमुख कारण - सामान्य जन द्वारा पोषित और आग्रह से पालित अस्तेय यह मूल्य ही है | आज भी ग्रामीण जन, वनवासी, गिरिवासी जनों मे यह मूल्य जीवित है | अङ्ग्रेजी शिक्षा प्रणाली मे शिक्षित हम मे से अनेक "यह गलत नहीं है", "यह तो छोटी सी गलती है" ऐसा कहते हुए शनैः शनैः पतन मार्ग पर हैं | अस्तेय इस धार्मिक मूल्य के प्रती हमारी भावना का र्हास हो गया है | (धर्म के अन्य बिन्दुओं के प्रती?? आपका प्रश्न मेरे कान तक पहुंच रहा है | पतन तो सभी दिशाओं मे है |) कम्यूनिस्ट सिद्धान्त पर काम करने वाले संगठन भी अस्तेय इस मूल्य के लोप के लिये कटिबद्ध कार्य मे रत हैं | हां | यह भी सत्य है की आस्तेय इस मूल्य के संस्थापन के लिये आवश्यक तपश्चर्या अपने धार्मिक संस्थान, मन्दिर, मठ, धार्मिक प्रवचन मञ्च आदि स्थानों मे कम पड रहा है |
इस शब्दावली का प्रयोग श्री कृष्ण ने एक अलग संदर्भ मे किया है | "अन्य कई शक्तियों की सहायता से हमें प्राप्त शिक्षण, धन, पधवी, अधिकार, घर, आदि सभी को अन्यों की सेवा मे लगाये बिना हमने स्वयम् अपने आप के लिये अकेले भोगा तो हम चोर ही हैं |" यह श्लोक गीता मे एक अति सुन्दर श्लोक है | गहरी भावना को व्यक्त करने वाला श्लोक है | इस का विश्लेषण मेरे द्वारा लिखा गया पुस्तक "अमृत कलश गीता" मे विस्तार से किया गाय है |
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