ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १५
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात् | (अध्याय ३ - श्लोक १३)
புஞ்ஜதே தே த்வகம் பாபா யே பசன்த்யாத்மகாரணாத். (அத்யாயம் 3 - ஸ்லோகம் 13)
Bhunjate te Twagham Paapaa ye Pachantyaatmakaaranaat. (Chapter 3 - Shloka 13)
अर्थ : जो केवल अपने लिये ही पकाते हैं, वे पापीलोग तो पाप का ही भक्षण करते हैं |
जो केवल अपने लिये ही पकाते हैं, वे पापीलोग तो पाप का ही भक्षण करते हैं | इस शब्दावली मे श्री कृष्ण पुनः एक बार कठोर दिख रहे हैं | उन्हों ने शायद ही श्री कृष्ण के ये वचन पढा होगा या सुना होगा, परन्तु लगभग संपूर्ण हिन्दु समाज आतिथ्य या भोजन को बांटकर ही खाने की यह आदत से बन्धे हैं | दूर पूरब् के असम से पश्चिमी तट गुजरात तक, उत्तर मे काश्मीर से दक्षिण की श्री लङ्का तक सभी समुदाय के जन इस दैवी प्रथा का कटाक्ष से पालन करते हुए दिखते हैं | संसार के अन्य देशों के इस्लामी व ख्रिस्ती समाज मे यह प्रथा नहीं है | परन्तु भारत और ७० वर्ष पहले हिन्दु राष्ट्र का अङ्ग रहे पाकिस्तान एवम् बन्ग्लादेश के इस्लामी व ख्रिस्ती समाज भी आतिथ्य नामक इस आभूषण से सज्जित हैं | आखिर वे भी तो हिन्दु ही हैं !! छत पर कौवों के लिये एक हाथ भर भोजन रखना, गाय के लिये पेय जल की व्यवस्था करना, रात्री मे गली के कुत्तों को खिलाना, प्रवासियों के लिये अन्न दान, पानि और छाज के प्याऊ की व्यवस्था करना, अन्न छत्र या धर्म शाला का निर्माण करना, आदि भारत के सभी प्रदेशों मे प्रचलित प्रथा हैं | हिन्दुओं की यह आदत ने यहां के सरकारों को भी प्रभावित किया है | सस्ता या निःशुल्क धान्य प्रदान करना, सस्ता भोजन केन्द्रों का आयोजन करना, मन्दिरों मे प्रसाद के रूप मे अन्न दान की व्यवस्था करना, विद्यालयों मे मध्याह्न भोजन की व्यवस्था करना आदि भारत के सरकारों द्वारा चल रहे विशेष कार्यक्रम हैं | हिन्दुओं के ही दो संगठन श्री सत्य साई संस्था और श्री कृष्ण भक्ति संस्थान दक्षिण आफ़्रिका मे लाखों गरीब् (काले) विद्यार्थियों के लिये भोजन की व्यवस्था करते हैं |
हिन्दु मातायें अपने आप के लिये पकाना पसंद नहीं करते हैं, इस तथ्य की पुष्टी करने वाला एक प्रसङ्ग मेरी स्मृति से | दक्षिण आफ़्रिका मे एक एरोबिक्स व्यायाम केन्द्र मे लगभग सौ महिलाओं की सभा मे प्रवचन के लिये मैं बुलाया गया | मध्य आयु की एवम् वृद्ध महिलायें थीं वहां | प्रवचन के दौरान मैं ने "आप मे से जिन्हें पकाना अत्यन्त प्रिय कार्य है, वे कृपया अपना हाथ उठायें" यह विनन्ति किया | केवल पांच हाथ उठे | मुझे लगा की मेरा कहना उन्हें समझा नहीं | अतः मैं ने पुनः विस्तार से समझाया | उठे हाथों की संख्या मे कोई वृद्धी नहीं | भारत के माताओं को देखे, मिले मेरे लिये यह आश्चर्य का विषय था | मैं स्तब्ध रहा | "ओ ! पकाने से तो हमें नफरत है |" एक महिला अन्य सभी के ओर से बोली | "हमें तो रसोई घर (Kitchen) से ही नफरत है" एक कदम आगे बढकर अन्य किसी महिला ने कहा | इनके इस कथन से अन्य सभी ने अपने मौन द्वारा सहमती जतायी | "आप के मन मे स्नेह और प्रेम रहा तो आपके लिये पकाना इष्ट रहेगा |" तत्क्षण मेरे मुंह से ये शब्द निकले | (किसी धार्मिक शास्त्र या गीता मे कहे गये विचार इन शब्दों के लिये जिम्मेदार नहीं | In fact, आफ़्रिका से वापस आने के बाद ही मैं ने गीता पढना प्रारम्भ किया |) भारत वापस आने पर मुझे इन शब्दों की सच्चाई परखने की इच्छा हुई | मैं ने लगभग देढ सौ माताओं के सामने (सभी आयु की एवम् सभी आर्थिक स्तर की महिला) एक प्रश्न रखा | "आप अपने घर के सभी के लिये हर दिन पकाती हैं | (या अपने कर्मचारी द्वारा पक्वा लेती हैं | यदि एक दिन घर के अन्य सभी बाहर गये हुए हो और आप अकेले घर मे हो तो क्या पकाओगे? क्या अपने लिये इष्ट पक्वान्न बनाकर खाओगी?" मेरा प्रश्न एक ही था | उन सभी के उत्तर भी एक ही था | "मैं अकेली रहुं तो ? कुछ भी खाकर पेट भर लूंगी | घर मे और कोई रहा तो ही, कम से कम घर की नौकरानी रही तो ही भोजन पकाना यह काम चलेगा |" हां | यह सत्य है | अपनी मातायें अपने स्वयम् के लिये खाना पकाना पसन्द नहीं करती | औरों की प्रती मन मे स्नेह/प्रेम रहा तो पकाना प्रियतम कार्य हो जाता है | आपके मनमे स्नेह प्रेम है या नहीं इसकी बस एक ही परीक्षा है - क्या आप पकाने मे रुची रखती हो? पकाना इस कर्म मे हर्ष से लगती हो?
परोसना यह भी इसी का लक्षण है | संसार के अन्य देशों मे 'Self - Service' या 'Help Yourself' यही प्रचलित है | परन्तु केवल भारत मे ही परोसना यह विशेष प्रचलित प्रथा है |
गीता की इस शब्दावली मे श्री कृष्ण पकाना इस शब्द का तो प्रतीकात्मक रूप से प्रयोग किया है | किसी भी कर्म के लिये ये वचन लागू है | "केवल स्वयम् के लिये, अपने अकेले आप के लिये कर्म करोगे तो तुम पापी हो और पाप का ही भक्षण करते हो |" यही श्री कृष्ण का अभिप्राय है |
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