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गीता की कुछ शब्दावली - २०


गीता की कुछ शब्दावली - २०

कृत्स्नविन्न विचालयेत् | (अध्याय ३ - श्लोक २९)
க்ருத்ஸ்னவின்ன விசாலயேத் (அத்யாயம் 3 - ஸ்லோகம் 29)
 Krutsnavinna Vichaalayet (Chapter 3 - Shloka 29).

अर्थ :  ज्ञानी पुरुष (अपने शब्दों द्वारा) अज्ञानियों के मन मे भ्रम निर्माण कर उसकी श्रद्धा एवम् उत्साह भङ्ग ना करें |

हम मे से अनेक यही तो करते हैं |  यह प्रवृत्ति सभी क्षेत्रों मे, सभी स्थानों मे हम सभी द्वारा दर्शायी जाती है |  हम भले ही हमारे पितरों से अधिक शिक्षित हैं |  परन्तु भोले भालों का अज्ञानियों का खण्डन करने मे, निरुत्साहित करने मे, भ्रमित करने मे तज्ञ हैं |

एक व्यक्ति 'अ' दूसरे किसी 'ब' पर आदर श्रद्धा रखता है |  अपने मन मे स्थित आदर भाव को वह शब्दों मे व्यक्त करता है तीसरे व्यक्ति  'क' के पास |  यह तीसरा व्यक्ति 'क', ब को जानता हो या नहीं,  परन्तु 'अ' के मन मे जो आदर भाव है उसे हिलाने का प्रयत्न मे लगेगा इसी की शक्यता अधिक है |  मैं जब विद्यार्थी था और सामाजिक, राष्ट्रीय विचारों मे रुची लेने लगा था, उस समय मेरे मन मे श्री अटल बिहारी वाजपेयी के बारे मे आदर भावना थी |  एक अवसर मे मैं ने उसे व्यक्त किया |  सुनकर एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा 'क्या तुम जानते हो की  रात्री ०८.३० के बाद उनसे मिलना असंभव है |  उन शब्दों का तात्पर्य मुझे उस आयु मे समझा नहीं |  परन्तु मेरे मनस मे संदेह का  बीजारोपण हुआ, यह सत्य है |  हो सकता है की वे श्री अटलजी को मुझसे अधिक जानते हो |  हो सकता है की उनका कथन सही हो |  परन्तु उस संदर्भ मे उनके शब्द अनावश्यक और अप्रासंगिक थे |  मेरे मन मे श्री अटल जी के विषय मे आदर भाव कम हुआ हो या ना हुआ हो, इस व्यक्ती के विषय मे तो निश्चित हुआ ही |

हम परिवारों मे जाते है |  घर के दीवारों पर वह परिवार जिस व्यक्ती या संगठन से भाव-पूर्वक जुडा है उसके चित्र लगे हुए होते हैं |  हमें तत्क्षण उक्त संगठन या व्यक्ति के विषय मे अपने दोषी विचार, खण्डन, व्यक्त करने की इच्छा हो जाती है |  हम कर भी शेते हैं |  परिवार का यजमान परिस्थिती का औचित्य समझकर मौन रहता है |  परन्तु हमारे शब्द उस परिवार मे संदेह या अश्रद्धा का बीज डाल देता है इसमे कोई संदेह नहीं |  अन्यथा वहां एक तीखा कडवा ववाद-विवाद खडा हो जाता है जिसके परिणाम स्वरूप आये हुए व्यक्ति से उस परिवार के संभन्ध भी टूट जाते हैं |

संस्था या व्यक्ती ही नहीं |  परन्तु  कोई रीति-रिवाज, विश्वास, संप्रदाय, खाद्य वस्तु, ऐसे किसी भी विषय मे यह प्रवृत्ति का दर्शन होता है |  इस प्रवृत्ति के मूल मे क्या है ?  प्रथम और प्रमुख है मद या अहङ्कार |  मेरा भाञ्जा श्री अक्षय ज्योतिराम अय्यर उत्तर भारत मे जन्मा, पला और शिक्षण प्राप्त किया |  वह ८, १० वर्ष आयु का होगा जब एक दिन मुझसे तमिल भाषा मे बात करते समय उच्चार या व्याकरण मे, मुझे आज स्मरण नहीं, गलती कर दी |  तत्क्षण मैं ने उसे टोक कर प्रतिक्रिया व्यक्त किया |  मुझे आज उसकी गलती या मेरी प्रतिक्रिया स्मरण मे नहीं परन्तु उसके आंखों मे झलके दो बून्द आसू मात्र स्मरण मे है और मुझे मन ही मन तरसाते हैं |  मैं ने कई बार क्षमा प्रार्थना किया, प्रत्यक्ष उससे नाही, अपने ही मन में |  प्रतिक्रिया व्यक्त करने मे भी अहङ्कार, क्षमा न मांगने मे भी अहङ्कार |  हां |  यह सत्य है की उन दो बून्द आंसू ने मुझमे , अल्प मात्रा मे ही  सही, सुधार लाया |

'केवल' - विचार याने 'बस मेरा केवल सत्य या सही है' यह भी इस दोष के लिये कारण है |  'केवल' मेरा चिन्तन ही सत्य है |  'केवल' मेरे रीति-रिवाज ही श्रेष्ट हैं |  'केवल' मेरे विश्वास ही आधार-पूर्वक हैं |  मेरी भोजन - पद्धति ही सही है |  अन्य सभी असत्य हैं |  क्षुद्र हैं |  हानीकारक हैं |  इतना ही नहीं |  पथ भ्रष्ट इन सभी को सही मार्ग पर याने मेरे मार्ग पर लाना मेरा कर्तव्य है |  यही केवल - विचार है |  स्वामि विवेकानन्द इसे ही कूप-मण्डूक मनोभावना कहते हैं |

अपने छोटे परिधी से बाहर निकालना; स्व का विस्तार करना; अपनी सीमा लांघकर प्रवास करना;  अन्य समुदायों से मिलन एवम् वार्ता;  अन्य समुदाय के विशेष प्रसङ्गों मे भाग लेना;  अपनी मैत्री - वर्तुल में अन्य समुदाय के व्यक्ति जोडना;  अन्य भाषा सीखने का प्रयास; अपने प्रदेश मे अन्य स्थलों की यात्रा, अपने भारत देश के अन्य प्रदेशों मे यात्रा, आर्थिक स्थिती अनुकूल हो तो अन्य देशों की यात्रा; आदि प्रयत्न इस दोष से मुक्त होने मे सहायक हैं |  नैसर्गिक सौन्दर्य, मनुष्य द्वारा निर्मित महल, आदि देखना तो ठीक है परन्तु यात्रा मे स्थानीय जनों से भेंट - वार्ता आवश्यक है |  स्थानीय रीति - नीति समझना महत्वपूर्ण है |

आङ्ग्ल भाषा में एक कहावत है |  प्रवाहित कङ्कड धूल जामाता नहीं |  प्रवासी या यात्री मात्र इस कश्मल से मुक्त होगा यह निश्चित है |

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