ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २२
स्वधर्मे निधनं श्रेयः । (अध्याय ३, श्लोक ३५).
ஸ்வதர்மே நிதனம் ஸ்ரேயஹ .... (அத்யாய 3. ஸ்லோகம் 35).
Swadharme Nidhanam Shreyaha ... (Chapter 3, Shlokam 35).
अर्थ : स्वधर्म में मृत्यु भी श्रेयस्कर है । सरल शब्दं मे श्री कृष्ण का कहना है की "कापि" ना करें | अपने स्वभाव के अनुरूप रहें |
एक विद्यालय मे दसवी कक्षा के विद्यार्थियों के पालकों के लिये एक वर्ग ले रहा था | उसमे मैं ने आये सभी को चार प्रश्न लिखा एक कागज दिया | वे चार प्रश्न निम्न प्रकार के थे |
1. आप क्या करते हो?
2. क्या आप आप के कार्य से संतुष्ट हो?
3. (प्रश्न 3 का उत्तर यदि "नहीं" हो तो ) आप क्या करना चाहते हो?
4. क्यों?
सरकारी नौकरी, पुलिस की नौकरी, अभ्यान्त्रिक, वकील, ट्यूशन मास्तर, दुकानदार, एजन्सी, सिविल कान्त्राक्टर, किसान आदि आदि प्रश्न 1 के उत्तर के रूप मे लिखे गये थे |
5 या 6 व्यक्तियों के अलावा अन्य सभी ने प्रश्न 2 का उत्तर "ना" लिखा था |
आश्चर्य की बात यह थी की प्रश्न 3 के उत्तर और प्रश्न 1 के उत्तर समान थे, परन्तु अलग अलग व्यक्ति के पत्रों मे | एक को जिस कार्य मे असन्तोष था, वही कार्य अन्य किसी ने करने की इच्छा दर्शया |
चौथा प्रश्न क्यों के उत्तर मे सभी ने अपने अपने कार्य से संबन्धित कठिनाइयों की , अडचनों की सूची लिखी थी | और जिस कार्य को करना चाहा, उसमे ये अडचनों का ना होना भी कारण बताया |
एक दुकानदार किराया , बिजली का बिल, सरकारी कर आदि के विषय मे सोचता है | सामने रास्ते पर समोसा बेचने वाले को देखकर उफ़् और आह भरता है | "इस को क्या ? ना किराया, न बिजली बिल, न टैक्स् | कोई समस्या नहीं | और कमाई ?" उल्टा वह ठेलावाला यह सोचता है की, "सुबह सुबह 3 / 3.30 उठो, बाजार जाओ, खरीदी करो, समोसे तलो, और रास्ते पर जगह पकडो, रास्ते पर चलने वाले प्रत्येक व्यक्ति से समोसे खरीदे जाने की लालसा करो, न बिके जाने की चिन्ता से सताया जाओ, पुलिस और नगर पालिका के अधिकारी को संभालो, देर रात तक दुकान चलाओ, साफ़् सफ़ाई कर अगले दिन की तैयारी करो बाप रे बाप?? और इस दुकानदार को देखो | सुबह आराम से नौ बजे आकार दुकान खोलता है, दिन भर AC मे बैठत्ता है | इस को क्या?" और इस दुकानदार को देखकर उफ़् और आह भरता है |
बिक्री के कार्य मे लगा व्यक्ति आफ़िस् कार्य मे लगे व्यक्ति को देखा आह भरता है | "यह क्या जाने रास्ते की कठिनाइयां ,? न धूप, न धूल, न गाडी छुटने की चिन्ता, ना भोजन का समय चुक जाने की चिन्ता | बस आओ, दिन भर बैठो और एक तारीख को पगार पाओ |" "इसको क्या ? हर समय बाहर रहता है | यहां boss का घिन घिन तो दिन भर मैं सहता हूं |"
प्रत्येक कार्य मे सुविधा हैं और अडचनें भी | सुविधायें और अनुकूल बातें अन्यों को दिखते हैं | अडचनें , समस्यायें आदि तो केवल उस कार्य करने वाले व्यक्ति ही देखता है और अनुभव करता है |
श्रेय तो इसी मे है कि हम अपने स्वभाव के अनुरूप कोई कार्य चुने और आनन्द से उसे करें, सुविधा, अडचन , कमाई, घाटा और कार्य से जो भी कुछ प्राप्त हो उसे सहर्ष स्वीकार करें |
अन्य किसी को दम्भ के साथ खर्च करते देखता है, स्वयम् भी वैसे ही करना चाहता है , उधार लेकर धूम मचाता है और जीवन भर उधार का बोझ ढोता है | दुःखी होता है | अपने अपने स्वभाव / स्वधर्म के अनुरूप रहो | अन्यों की कापि ना करो |
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