ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २७
भक्तोsसि में सखा चेति .... (अध्याय ४ - श्लोक ३ )
பக்தோsஸி மே ஸகா சேதி (அத்யாயம் 4 - ஶ்லோகம் 3)
Bhakto(a)Si Me Sakhaa Chethi ... (Chapter 4 - Shlokam 3)
अर्थ : मेरा भक्त एवं सखा हो (तुम) ...
श्री कृष्ण कहते हैं - "तुम तो मेरे भक्त हो और सखा भी..| इसलिये रहस्य मयी इस योग मैं तुम्हें कह रहा हूं | सख्य या मित्रता के लिये कैसी अद्भुत भेंट !! गीता अर्जुन से काही गयी ना भीम या युधिष्ठिर को | वैसे पांचो पाण्डव श्री कृष्ण के स्नेह प्रेम को प्राप्त थे | जब् जब् श्री कृष्ण इन्द्रप्रस्थ आते थे तो उन प्रत्येक अवसर मे पाण्डवों के आग्रह पर श्री कृष्ण का वास कुछ दिनों से बढ ही जाता था | और उन सभी अवसरों पर उनका इन्द्रप्रस्थ छोड जाने के प्रसङ्ग भाव पूर्ण रहे हैं जिनका महाभारत मे सुन्दर वर्णन हैं | पाण्डवों को, विशेषतः द्रौपदी को आपदा विपदा के जिन क्षणों मे सहायतार्थ दौढ आये श्री कृष्ण, इस परिवार के प्रती उन के मन मे बसे घने प्रेम भाव की ये द्योतक हैं | परन्तु अर्जुन तो विशेषों मे विशेष था | भक्तोऽसि सखा च इति | केवल भक्त ही ना होकर मित्र भी था | गीता से उत्तम भेंट क्या हो सकता है एक मित्र के लिये ?? और अर्जुन के निमित्त संपूर्ण मानवता ही धन्य है उत्कृष्ट भेंट की प्राप्ती पर |
क्या हमारा कोई मित्र है ? ऐसी कोई व्यक्ति जो जिसके हम भक्त भी और मित्र भी | इन्टर नेट के किसी पन्ने की मित्रता (Friendship) नहीं परन्तु सच्चे भाव मे मित्रता | और वह मित्र की श्री कृष्ण जैसे व्यक्तिमत्त्व हो - सोने पे सुहागा |
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