ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २३
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति (अनिच्छान्नापि ) ... (अध्याय ३ - श्लोक ३६ )...
அத கேன ப்ரயுக்தோயம் பாபம் சரதி (அநிச்சான்னபி ) (அத்யாயம் 3 - ஶ்லோகம் 36.)
Atha Kena Prayuktoyam Paapam Charati (Anicchaannapi) ..( Chapter 3 .. Shloka 36)
अर्थ : अपनी इच्छा न होते हुए भी मनुष्य पाप को प्रयुक्त क्यूं होता है ?
अर्जुन द्वारा पूछा गया सीधा सरल प्रश्न है यह | गीता मे अर्जुन के ऐसे कई प्रश्न एवं श्री कृष्ण के अद्भुत उत्तर भरे पडे हैं | सामान्यतः प्रश्न चिन्तन को छेडता है | शिष्य का एक प्रश्न आचार्य के द्वारा एक तेजस्वी उत्तर का कारण बन जाता है | प्रश्न सहज उभरना चाहिये | जिज्ञासू मन से उभरना चाहिये | आचार्य को नीचा दिखाने की इच्छा से, अहङ्कार से प्रवृत्त ना हो |
सर्वाधिक पूछा गया प्रश्न है यह | "भगवान् ने ही बनाया है तो पापियों को, दुर्जनों को क्यूं बनाया ? केवल सज्जनों को बनाकर रुक सकता था ?" गीता सत्सङ्ग मे अनेक श्रोताओं द्वारा अनेक बार पूछा गया प्रश्न | पूछने वाले अपने आप को सज्जन समझते हैं और कथित "दुर्जनों" से स्वयम् को मिले कटु अनुभव के आधार पर यह प्रश्न उठाते हैं | परन्तु अर्जुन का यह प्रश्न अलग है | वह अपने आप को अलग रखना नहीं चाहता | In fact, वह तो इस युद्ध मे जुडकर, शत्रुओं को मारकर अपने आप को महा पाप के द्वार् पर खडा मानता है |
मनुष्य क्यूं पाप करता है ? यह अर्जुन का प्रश्न है | नहीं | मनुष्य पाप करत नहीं | पाप कर्म करना नहीं चाहता है | अनिच्छा होते हुए भी मनुष्य को पाप कर्म मे प्रवृत्त करने वाला वह क्या विषय है ? यही अर्जुन का प्रश्न है |
श्री कृष्ण ने उत्तर क्या दिया | अगली लेख मे देखें |
मनुष्य क्यूं पाप करता है ? यह अर्जुन का प्रश्न है | नहीं | मनुष्य पाप करत नहीं | पाप कर्म करना नहीं चाहता है | अनिच्छा होते हुए भी मनुष्य को पाप कर्म मे प्रवृत्त करने वाला वह क्या विषय है ? यही अर्जुन का प्रश्न है |
श्री कृष्ण ने उत्तर क्या दिया | अगली लेख मे देखें |
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