ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २६
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपम् दुरासदम् (अध्याय ३ -श्लोक ४३)
ஜஹி ஶத்ரும் மஹாபாஹோ காமரூபம் துராஸதம் (அத்யாய 3 - ஶ்லோகம் 43)
Jahi Shathrum Mahaabaaho Kaamaroopam DhuraaSadham. (Chapter 3 - Shloka 43)
अर्थ : काम रूप वह दुर्जय, प्रबल शत्रु को मार दो |
काम यह एक शत्रु है | शत्रु इस लिये की वह मन को अपने ध्यान केन्द्र से भटकाता है | शत्रु है इस लिये की वह गिराता है | कर्म चेष्टा , साधना एवं जीवन मे पूर्णता से युक्त उन्नत मार्ग से बिखरा मन , कार्य क्षमता मे न्यूनता, एवं वासना पूर्ण जीवन इन से युक्त अधोन्नत मार्ग की ओर् ढकेलता है |
काम यह शत्रु तो है परन्तु साधारण शत्रु नहीं | दुरासद ऐसा शत्रु जिसे जीत पाना अत्यन्त कठिन है | इसे बलपूर्वक दबाकर जीता नहीं जा सकता | जितना अधिक दबाया जाये अतनी ही अधिक शक्तिशाली एवं दृढ यह काम का स्वरूप है | और इसे खिलाकर , युक्त विषय का भोग चढाकर भी तृप्त एवं शान्त किया नहीं जा सकता | जितना अधिक खिलायें अतनी ही तीव्र लालसा उठ जाती है और भोगने की | जैसे घी डालकर अग्नी शान्त नहीं होती ठीक वैसे ही विषय - भोग से काम शान्त और तृप्त होता नहीं | तृप्त कराने के प्रयास मे अधिक और अधिक खिलाने से मन काम वश हो जाता है | कोटि के कुछ उदाहरण तो इस स्थिती मे पहुंचते हैं जिसमे उनका मन और किसी भी उद्योग मे लगता नहीं शिवाय काम भोग के |
इच्छा रहित मन यही एक मार्ग है | इच्छा रहित , नैष्काम्यता की प्राप्ती के लिये अनेकानेक पुरुषों ने अनेक प्रकार के प्रयोग किये हैं | इन सभी प्रयोगों मे अभ्यास यह एक सामान्य बिन्दु है | अभ्यास , कठोर अभ्यास | (मैं ने सतत अभ्यास कहा नहीं इस लिये की अभ्यास के साथ सातत्य जुदा हुआ है | जो सतत न हो वह अभ्यास नहीं | )
Desirelessness is the solution. There have been many experiments in quest of a desireless mind. But, each of these ways demands rigorous PRACTICE. (I did not say Continuous ... because Practice inherently goes with consistency.) Each one of us has to find the way that suits most.
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