ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २४
काम एष ... क्रोध एष .... (अध्याय ३ - श्लोक ३७)
காம ஏஷ ... க்ரோத ஏஷ .... (அத்தியாயம் 3 - ஶ்லோகம் 37)
Kaama Esha ... Krodha Esha ... (Chapter 3 - Shloka 37)
अर्थ : काम एवं क्रोध ही वे दो कारण हैं ... |
अर्जुन के प्रश्न का यह उत्तर है श्री कृष्ण का | "मनुष्य को पाप के लिये प्रवृत्त करने वाला , उसे पाप कृत्य की ओर् ढकेलने वाला वह विषय क्या है ?" यही अर्जुन का प्रश्न था | उत्तर मे श्री कृष्ण कह रहें हैं " काम एष क्रोध एष " श्री कृष्ण के द्वारा मनुष्य मनस के बारे में सुनायी गयी एक सुन्दर व्याख्या इन शब्दों से ही प्रारम्भ होती है |
काम यह केवल शारीरिक मैथुन प्रेरित इच्छा ही नहीं | किसी भी इच्छा जो अनैतिक हो, अस्वाभाविक् हो, वह काम है | भूख लगे और उसे मिटाने हेतु अन्न ग्रहण करने की इच्छा हो तो वह काम नहीं | भतकती जिव्हा के इच्छा - अनिच्छाओं को तृप्त करने हेतु भोजन ढूंढें तो वह काम ही है | गीता मे किसी अन्य संदर्भ मे श्री कृष्ण कहते हैं की - "धर्माविरुद्धो कामोsस्मि" | याने धर्म से अविरुद्ध काम मैं ही हूं |
अपने भीतर दीर्घ काल तक जमा हुआ कोप (गुस्सा) भावना, भडकने के लिये संदर्भ की प्रतीक्षा मे मन की गहराई मे बसी हुई भावना , यही क्रोध है | बदला लेने की इच्छा, यह क्रोध का प्रकट स्वरूप है | कोप और क्रोध मे सूक्ष्म अन्तर है | कोप तत्क्षण प्रकट होने वाली नैसर्गिक प्रतिक्रिया है | यदी कोप दीर्घ काल तक भीतर जपाया गया तो वह क्रोध मे रूपान्तर होता है | कोप के कारणकर्ता पर बदला लेने की भावना जुड जाये तो कोप क्रोध मे परिवर्तित हो जाता है | कोप एक प्राकृतिक भावना है | सभी जन्तुओं मे कोप है | दर्द, दुःख या चोट प्राप्त होने से प्रकट होने वाली प्रतिक्रिया है | संस्कृत मे एक सुभाषित है | क्षण कोपम् उत्तमम् | जाम कोपम् मध्यमम् | प्रहर कोपम् अधमम् | गुस्सा क्षण भर रहे तो कोई बात नहीं | कोप यदी एक जाम (याम - हिन्दु काल गणना मे लग भग 2 - 1/4 घण्टे) से अधिक समय तक टिक जाये तो वह मध्यम है | एक रात्री पार कर अगले दिन भी कोप रह जाये तो वह अधम है | कोप दुःख पर प्रतिक्रिया है | दुःख हटने से कोप मिट जाने की संभावना है | परन्तु क्रोध दुःख - कर्ता पर प्रतिक्रिया है | क्रोध बदला लेने के पश्चात भी रह जाता है | कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद अन्धा धृतराष्ट्र और उसकी पत्नी गान्धारी पाण्डवों के शरण थे | युधिष्ठिर तो उनको स्नेह भाव से देखता था | परन्तु भीम जब जब धृतराष्ट्र के सामने आता तो अपने भुजाओं को ठोकते हुए कहता की, "इन्हीं बाहुओं से मैं ने दुःशासन की छाती फाडा | इन्हीं हाथों से मैं ने दुर्योधन के दोनों हाथोंको उसके शरीर से अलग किया |" क्रोध को जीवित रखने और पोषित करने की यह तरीका थी भीम की |
श्री कृष्ण के अनुसार काम एवं क्रोध मनुष्य को पाप के लिये प्रवृत्त करने मे कारणीभूत हैं | पाप क्या है ? "पापाय परपीडनम् ." यह महाभारत मे पाप की व्याख्या है | अन्यों को दुःख, पीडा, या वेदना पहुंचाना ही पाप है | किसी विषय प्राप्ती की इच्छा, किसी सुखानुभव भोगने की इच्छा, किसी विशेष परिस्थिती प्राप्त करने की इच्छा यह काम है | इन इच्छाओं की पूर्ति मे अवरोध करने वाली व्यक्ति को रोकने या हटाने का आवेश यह क्रोध है | ये दोनो भावनायें साथ हो तो अन्यों को दुःख या पीडा पहुंचाना याने पाप कृत्य करना तो निश्चित है | पाप केवल शारीरिक कृत्य ही नहीं परन्तु इन दोनों शस्त्रों से युक्त शब्द और विचार भी अन्यों को पीडा पहुंचाने मे समर्थ बन जाते हैं |
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