ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २९
परित्राणाय साधूनाम . . (अध्याय ४ - श्लोक ८)
பரித்ராணாய ஸாதூனாம் ... (அத்யாயம் 4 - ஶ்லோகம் 8)
Parithraanaaya Saadhoonaam .... (Chapter 4 - Shlokam 8)
अर्थ : साधुओं की रक्षण के लिये . .
अपने भारत देश मे साधू यह एक ही शब्द यहां की सभी भाषाओं मे प्रयोग मे है और सभी जन समुदाय द्वारा समझा भी जाता है | अन्य देशों मे विशेष रूप से यूरोपीय भाषाओं मे इसका समानार्थक् शब्द भी नहीं है | भाषा तो जन समुदाय के जीवन का, दृष्टिकोण का दर्शक मात्र है | जन जीवन मे एवं जन मानस मे जो विषय न हो तो भाषा मे भी नहीं होगा यह तो स्वाभाविक ही है |
साधू याने सन्न्यासी नहीं | हम तुम मे कोई भी साधू हो सकता है | साधू कहीं भी हो सकता है | परिवार मे, गांव मे, क्यॊं जेल मे भी | जिसने साधु भाव का अपने अन्दर धारण किया हो, बस वही साधू है | श्री कृष्ण जब साधुओं की रक्षा की बात कह रहे हैं तो साधु भाव का ही रक्षण - पोषण की बात कह रहे हैं | दया, करुणा, हित चिन्तन, आदी भावनाओं का संग्रह है साधु भाव | यह कर्तव्य है, यह करने योग्य है यही चिन्तन से प्रेरित हो साधू किसी भी कार्य को करता है | उस कार्य से या उससे से सम्भाव्य किसी फल के प्रती तनिक भी राग ना होना यही साधू का लक्षण है | वैराग्य जिस मे हो वह वैरागी कहा गया | काल प्रवाह मे यह शब्द गृहस्थ को नहीं स्थान से स्थान भटकने वाले फकीर को सूचित करने वाला शब्द बन गया | परन्तु सत्य तो यह है की कोई गृहस्थ भी वैरागी या साधू हो सकता है |
यदी कोई कामना न हो और कोई अपेक्षा न हो तो दुष्कर्म, षडयन्त्र रचाना, बदला लेना, तुलना और स्पर्धा करना, ईर्ष्या, मद और अहङ्कार, निराशा, मनः क्लेश, शोक, आदी के लिये स्थान ही नहीं | इसी लिये एक साधू वह कहीं भी रहे, परिवार मे, गांव मे या जेल मे, आस पास के जनों के लिये उत्साह, प्रेरणा, आनन्द, मनः शान्ती, दृढ एवं निर्मोही बुद्धी का स्रोत बन जाता है | श्रेष्ट जीवन जीनेमे सहायक बन जाता है |
साधु भाव किसी प्रयत्न या अभ्यास से प्राप्त नहीं हो सकता | यह तो जन्म जात है | स्वभाव जिसे हम साथ लाते हैं | परन्तु आज प्रयत्न प्रारम्भ करें और कठोर और सतत अभ्यास करें तो भविष्य मे, आगामी जन्म मे प्राप्त हो जायेगा |
इस श्लोक मे इसी साधु भाव का रक्षण पोषण की बात कह रहे हैं श्री कृष्ण | संसार मे साधु भाव जीवित रहे | फलें फूलें | स्वार्थ और भोग की आन्धी मे लुप्त न हो जाये, यही उनके कथन का तात्पर्य है | साधू रहें, साधु भाव रहें | उनके रक्षणार्थ हर युग मे "मैं अवतरित हूंगा" यह आश्वासन है श्री कृष्ण का |
अपने भारत देश मे साधू यह एक ही शब्द यहां की सभी भाषाओं मे प्रयोग मे है और सभी जन समुदाय द्वारा समझा भी जाता है | अन्य देशों मे विशेष रूप से यूरोपीय भाषाओं मे इसका समानार्थक् शब्द भी नहीं है | भाषा तो जन समुदाय के जीवन का, दृष्टिकोण का दर्शक मात्र है | जन जीवन मे एवं जन मानस मे जो विषय न हो तो भाषा मे भी नहीं होगा यह तो स्वाभाविक ही है |
साधू याने सन्न्यासी नहीं | हम तुम मे कोई भी साधू हो सकता है | साधू कहीं भी हो सकता है | परिवार मे, गांव मे, क्यॊं जेल मे भी | जिसने साधु भाव का अपने अन्दर धारण किया हो, बस वही साधू है | श्री कृष्ण जब साधुओं की रक्षा की बात कह रहे हैं तो साधु भाव का ही रक्षण - पोषण की बात कह रहे हैं | दया, करुणा, हित चिन्तन, आदी भावनाओं का संग्रह है साधु भाव | यह कर्तव्य है, यह करने योग्य है यही चिन्तन से प्रेरित हो साधू किसी भी कार्य को करता है | उस कार्य से या उससे से सम्भाव्य किसी फल के प्रती तनिक भी राग ना होना यही साधू का लक्षण है | वैराग्य जिस मे हो वह वैरागी कहा गया | काल प्रवाह मे यह शब्द गृहस्थ को नहीं स्थान से स्थान भटकने वाले फकीर को सूचित करने वाला शब्द बन गया | परन्तु सत्य तो यह है की कोई गृहस्थ भी वैरागी या साधू हो सकता है |
यदी कोई कामना न हो और कोई अपेक्षा न हो तो दुष्कर्म, षडयन्त्र रचाना, बदला लेना, तुलना और स्पर्धा करना, ईर्ष्या, मद और अहङ्कार, निराशा, मनः क्लेश, शोक, आदी के लिये स्थान ही नहीं | इसी लिये एक साधू वह कहीं भी रहे, परिवार मे, गांव मे या जेल मे, आस पास के जनों के लिये उत्साह, प्रेरणा, आनन्द, मनः शान्ती, दृढ एवं निर्मोही बुद्धी का स्रोत बन जाता है | श्रेष्ट जीवन जीनेमे सहायक बन जाता है |
साधु भाव किसी प्रयत्न या अभ्यास से प्राप्त नहीं हो सकता | यह तो जन्म जात है | स्वभाव जिसे हम साथ लाते हैं | परन्तु आज प्रयत्न प्रारम्भ करें और कठोर और सतत अभ्यास करें तो भविष्य मे, आगामी जन्म मे प्राप्त हो जायेगा |
इस श्लोक मे इसी साधु भाव का रक्षण पोषण की बात कह रहे हैं श्री कृष्ण | संसार मे साधु भाव जीवित रहे | फलें फूलें | स्वार्थ और भोग की आन्धी मे लुप्त न हो जाये, यही उनके कथन का तात्पर्य है | साधू रहें, साधु भाव रहें | उनके रक्षणार्थ हर युग मे "मैं अवतरित हूंगा" यह आश्वासन है श्री कृष्ण का |
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