-: ॐ :-
गीता की कुछ शब्दावली - ३५
கரமண்யபி ப்ரவ்ருத்தோsபி ... (அத்யாயம் 4 - ஶ்லோகம் 20)
Karmanyabhi Pravrutto(a)pi ... (Chapter 4 - Shloka 20)
अर्थ : कर्मों में निरंतर डूबे रहते हुए भी ...
यह एक सुन्दर शब्दावली है । इसमे वर्णित स्थिति भी एक सुन्दर अवस्था है । यह शब्दावली अपने आप में पूर्ण तो नहीं । परंतु इस को पूर्ण कराने वाली शब्दावली इसी से सुझती है । "कर्मों में निरंतर डूबे रहते हुए भी ... वह कर्मों से निर्लिप्त रहता है" । "कर्मों में निरंतर मग्न है परंतु वह कोई कर्मा नहीं करता"।
मग्नता परिपूर्ण है । कर्मों में डूबना शत प्रति शत है । शरीर, मनस, बुद्धी आदि सभी करण, व्यक्तित्व के एक एक अंश लगे हुए हैं कर्मों में । शरीर मे अन्य कोई कर्मा के लिए ऊर्जा बची नहीं है । मनस में अन्य किसी भी कार्य के प्रति आकर्षण बचा नहीं । बुद्धी में अन्य किसी कार्य के चिंतन के लिए स्थान बचा नहीं । शरीर में कोई हलचल हो तो बस इसी कार्य की पूर्ती हेतु । मनस में कोई स्वप्न या उत्साह जगता है तो बस इसी कार्य की भव्यता बढ़ाने हेतु । बुद्धी में कोई चिंतन या योजना उठता हो तो बस इसी कार्य के विषय में । विश्राम एवं निद्रा भी यह कार्य अधिक सक्षम चले बस इसी हेतु से ।
मग्नता परिपूर्ण है । कर्मों में डूबना शत प्रति शत है । शरीर, मनस, बुद्धी आदि सभी करण, व्यक्तित्व के एक एक अंश लगे हुए हैं कर्मों में । शरीर मे अन्य कोई कर्मा के लिए ऊर्जा बची नहीं है । मनस में अन्य किसी भी कार्य के प्रति आकर्षण बचा नहीं । बुद्धी में अन्य किसी कार्य के चिंतन के लिए स्थान बचा नहीं । शरीर में कोई हलचल हो तो बस इसी कार्य की पूर्ती हेतु । मनस में कोई स्वप्न या उत्साह जगता है तो बस इसी कार्य की भव्यता बढ़ाने हेतु । बुद्धी में कोई चिंतन या योजना उठता हो तो बस इसी कार्य के विषय में । विश्राम एवं निद्रा भी यह कार्य अधिक सक्षम चले बस इसी हेतु से ।
निर्लिप्तता भी पूर्ण । शरीर थकता है और बिना कोई प्रयास ही नींद पकड़ लेता है । संदर्भ मिला तत्क्षण निद्रा में लग जाता है । शरीर में थकावट यह निर्विवाद सत्य है परंतु "मैं थका हूं" यह विचार व्यक्ति के मनस में अंकित होती नहीं ।
इसके मनस में कोई "उफ़ आ.." रहता नहीं । मनस हताश होता नहीं । मन में निरुत्साह छाता नहीं । उद्विग्न भी होता नहीं । जिसे कर्म या उससे अपेक्षित फल के प्रति आसक्ति है उसके मनस में ये सब परिणाम निश्चित है । परंतु यह तो बस कर्म में लगता है । और तत्क्षण कर्म से हटता भी है । अन्य किसी के हाथ में सौंप कर हट जाता है । ना इसमे कर्म कैसे किया जा रहा है यह देखने की इच्छा ना ही कोई सुझाव या मार्ग दर्शन करने की चाह । पूर्ण निर्लिप्तता ।
मैं जितने व्यक्तियों संबंध में आया उनमे मेरी माता को इस अवस्था के सर्वाधिक निकट पाया । वह कर्मों में लगी रही । प्रत्येक क्षण लगी रही । पूर्ण रूप से लगी रही । अनेक अनेक प्रकार के कर्मों में लगी रही । हाथ में उस क्षण जो कार्य है उसमे मग्न हो जाती । उसके मुख से कभी कोई उफ़... हो... आ... मैं ने सूना नहीं । खिन्न होकर बैठी हुई अवस्था में मैं ने उसे कभी देखा नहीं । किसी कार्य के प्रति विशेष रुची दिखाकर उसमे लगते हुए भी देखा नहीं । किसी कार्य के प्रति अनिच्छा या द्वेष दिखाकर उससे हटते हुए भी मैं ने उसे देखा नहीं । किसी कार्य में संलग्न होने, कार्य को हाथ में लेने सदा तैयार । कार्यमे डूब जाने, कार्य में अपने आप को खोने नित्य सिद्ध । कार्य से हटने भी नित्य सिद्ध । इस संसार से भी वह बिना किसी आयास प्रयास ही हट गयी ।
मैं जितने व्यक्तियों संबंध में आया उनमे मेरी माता को इस अवस्था के सर्वाधिक निकट पाया । वह कर्मों में लगी रही । प्रत्येक क्षण लगी रही । पूर्ण रूप से लगी रही । अनेक अनेक प्रकार के कर्मों में लगी रही । हाथ में उस क्षण जो कार्य है उसमे मग्न हो जाती । उसके मुख से कभी कोई उफ़... हो... आ... मैं ने सूना नहीं । खिन्न होकर बैठी हुई अवस्था में मैं ने उसे कभी देखा नहीं । किसी कार्य के प्रति विशेष रुची दिखाकर उसमे लगते हुए भी देखा नहीं । किसी कार्य के प्रति अनिच्छा या द्वेष दिखाकर उससे हटते हुए भी मैं ने उसे देखा नहीं । किसी कार्य में संलग्न होने, कार्य को हाथ में लेने सदा तैयार । कार्यमे डूब जाने, कार्य में अपने आप को खोने नित्य सिद्ध । कार्य से हटने भी नित्य सिद्ध । इस संसार से भी वह बिना किसी आयास प्रयास ही हट गयी ।
मेरी माता से प्राप्त कृपा प्रसाद स्वरूप में मुझे भी इस अवस्था का अनुभव प्राप्त है , पूर्ण समय संघ कार्य करते समय, कैंसर रोग से पीड़ित पत्नी अखिला की सेवा सुश्रुषा करते समय और गत तीन चार महिनों में श्री शंकर मठ का निर्वहन करते समय । सुयोजित प्रयत्नों से क्या इस मनःस्थिति प्राप्य है यह तो मैं जानता नहीं परंतु कम से कम एक दिन ही क्यॊं न हो, कुछ क्षण ही क्यॊं न हो, इस अवस्था का अनुभव जिसने किया हो वह निश्चित ही भाग्यशाली है । दैवानुग्रह से धन्य है ।
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