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गोमाता के संग एक संवाद ...



गोमाता के संग एक संवाद ...

अघोरम् (मैं) : नमस्कार । कैसी हो ? क्या किया दिन भर ? कुछ खाया की नहीं ?
लक्ष्मी (गाय) : पूछते हो क्या किया ? क्या करूँगी ? तुमने जिस खम्बा के साथ मुझे बान्धा है , उस खम्बे की परिक्रमा करती रही । और क्या करती ? खाया की नहीं ? कैसा प्रश्न है ? कैसे खाती ? तुम कुछ दोगे तो ही खाऊंगी ना ?
अ : क्यों ? क्या मैं देता नहीं ? हरा घास, सूखी घास, फल, भाजी पाला, भुट्टा, दलिया, कच्चा नारियल, चिक्की और क्या नहीं खिलाता ? अरी ! तू दु:खी क्यूँ है ?
ल : दु:खी नहीं । मेरी भाग्यरेखा मे यही लिखा हे । मेरे नासि द्वार मे इतना मोटा रस्सी घुसाया है और उपर से यह पूछ रहा है तू दु:खी क्यूँ है ?? दिन भर मुझे इस खांब से बान्ध रखता है और उपर से पूछता है क्यूँ दु:खी है ?? हूँ ... हूँ .. (शोक भरा उसका हूंकार ..)
अ : सत्य ! सत्य ! मैं तो पहले ही दिन ग्वाला बालु यादव को सुझाया की यह रस्सी ना डालें | उसने क्या कहा ? यही तो रस्सी है जिससे गाय को अपने नियन्त्रण मे रख सकें | मेरे पास और कोई पर्याय नहीं | और मैं यदी ना बान्धूं तो ?? तुझ पर क्या क्या बीतेगी कभी सोचा ?? उस दिन मैं तुझे घर के सामने बान्धना चाहा | तुम तो राह पर चालती हर गाडी के आवाज से घबरा रही थी | कांप रही थी |
ल : हाँ हाँ | महा भयङ्कर ध्वनी | बाप रे बाप ! राक्षसी आवाज | मेरे तो रोम रोम भयाङ्कित् हो गये | मैं भी क्या करूँ ? तेरे घर लाये जाने के पूर्व मैं देहात मे थी | इसीलिये गाडियोँ के यह आवाज मेरे लिये असहनीय है |
अ : मैं भी यही तो कह रहा हूँ | केवल आवाज से यह हाल हो तो प्रति क्षण ऐसे सौ सौ वाहन चलने वाले राह पर ... मनुष्य के लिये भी ऐसे रास्ते दुर्गम् हैं | तो बेचारी तेरी क्या अवस्था होगी ?
ल : तेरा कहना भी सत्य है | विचार मात्र से मैं भयभीत हो रही हूँ | देखो | डर के मारे गोबर छुट गया | तुम मनुष्यों के सब् कुछ डरावना है | तुम घर बान्धते हो | गृह प्रवेश के नाम से मुझे ले जाते हो | मुझे चारों ओर् से घेर कर शोर मचाते हो | पैरों को फिसलाने वाला ग्रानैट मार्बल फ़र्श | मैं डर के मारे गोबर गिरा देती तो "वाह ! वाह ! मङ्गलमय ! शुभ शकुन " के नारे लागते हैं | अपने नियन्त्रण् मे मुझे रख , तुम बहुत सताते हो | You are torturing me ... मुझे तुम्हारा सहवास से छुटकारा दो | मुझे किसी जङ्गल मे छोड दो | मैं अपने आप जी लूंगी | जो चाहा जब चाहा खा लूंगी |
अ : हा ! हा ! हा ! हास्यास्पद है तुम्हारा कहना | तुम नादान हो | नासमझ हो | इसीलिये ऐसी बोल रही हो | जङ्गल मे खूंखार प्राणी .. अरी जङ्गल कहाँ हैं ? सब तो खत्म हो गये | मैं अपने आप जी लूंगी कह रही हो !!! तुम भूमी पर दिखायी ना देने वाले रेशायें सीमा-रेशायें नहीं जानती | यह वन विभाग की भूमी है , यह सरकारी , यह किसी किसान की भूमी ... तुम कैसे जान पायेगी ?? अपनी आप जियेगी ? भटक जायेगी तो चाबुक खायेगी, कांटेली Fence, बिजली के तार से बनी Fence, बन्दूक के गोली तक तुझे क्या क्या भुगतना पडेगा | यह विचार ही मुझे डराता है |
ल : अरी माँ मेरी ! इतना भयङ्कर ?? हूँ ... हूँ ... (व्यथा भारी श्वास !!!)
अ : और सुन | तेरे शरीर के मांस खाने के लोभ मे भटकता समूह, जङ्गली प्राणियों का समूह नहीं , मनुष्य समूह | तुझे पकडा कर, चमडी के भीतर गर्मागरम् वाफ़् भेजकर, चमडी उतारकर, गला काटकर, बून्द बून्द रक्त को निकालकर . तुझे नरक-यातना देकर कांट बेचने वाले व्यापारी समूह .. अरी तू तो एक दिन भी इनसे बचकर रह नहीं पायेगी | बोलती है .. अपने आप जी लूंगी |
ल : (शोकाङ्कित हो वह चुप हो गयी | बस उसके आह भरे श्वास का आवाज मात्र सुनायी दे रहा था |)
अ : (मैं भी मौन रहा और उसके गले पर हाथ फेर रहा था |)
ल : तो ... तेरा यह कहना है की तू मेरा उपकार कर रहा है |
अ : उसमे क्या संदेह ? उपकार नहीं रक्षण कर रहा हूँ | संरक्षण ... | आखिर गाय को माता मानना यह तो हमारे पूर्वजों की सूचना है | आदेश है |
ल : क्या तुम सच मे, आस्था के साथ मुझे माता मानते हो ?? अपने परिवार का एक अङ्ग समजते हो ??

अ : निस्सन्देह ! निश्चित ही मैं अपने माता के समान तुझे देखता हूँ |
ल : माता ! गोमाता ! ये शब्द कर्णमधुर है अवश्य | पूर्व काल मे ऐसा रहा भी होगा | परन्तु आज मैं तो इसके ठीक विपरीत दृश्य देख रही हूँ | तू असत्य बोल रहा है |
अ : अरी ! ऐसी क्या बोल रही है ? मैं तेरे लिये प्रतिदिन समय देता हूँ | तुम से बोलता हूँ | तुम्हारे लिये शारीरिक परिश्रम करता हूँ | तुम्हारे लिये धन खर्च करता हूँ | तेरे दूध से मुझे मासिक आय तो केवल हजार, पन्द्रः सौ है | परन्तु केवल चारे पर पाँच से छः हजार खर्च होता है |
ल : देखा | देखा | मैं भी यही तो कह रही हूँ | अपने घर की बिटिया या अपने माँ के विषय मे ऐसा गणित करोगे, रुपयों का गणित ? यही नहीं | तुझे पुत्रलाभ हुआ तो तुझे हर्ष होता है | वही तू मैं मादा बछडा जन्म देती तो ही खुश होता है | बच्चे को जन्म देकर, तेरे घर की स्त्री शीघ्रादि शीघ्र स्तन पान बन्द कराने के प्रयत्न करती है | उस हेतु दवाओँ का सेवन करती है | परन्तु मैं सर्वदा दूध् देती रहूँ ऐसी तेरी अपेक्षा है | और अधिक और अधिक दूध दूँ ऐसी तेरी अपेक्षा, नहीं नहीं लोभ की पूर्ति के लिये वैज्ञानिक शोध कार्य चलाते हो | मुझे दवाइयाँ देते हो | इतना ही नहीं मेरे चारा मे प्राणियों की चरबी मिलाकर मुझे खिलाते हो | तुम्हारे घर की स्त्री के लिये अपनी गर्भावस्था मे भी पुरुष के साथ लेटने मे, संभोग करने मे कोई आपत्ति नहीं ऐसे प्रचार करते हो | परन्तु मुझे बैल के साथ न छोडकर सूई के प्रयोग से गर्भ धारण करवाते हो | बछडा होकर कुछ ही दिनों मे उसे दूध से वाञ्छित कर स्वयं अपने लिये दूध दोहन करना प्रारम्भ कर देते हो | क्या ये हैं संरक्षण के लक्षण ??
अ : (कुछ क्षणों के लिये मैं स्तब्ध सा हो मौन रह गया) ..म् .. म् .. तेरे किसी भी प्रश्न का मेरे पास उत्तर नहीं । मैं तुझे बान्ध रखता हुँ तो क्यूँ , तेरी दुग्ध दोहता तो क्यूँ , तेरे बछडे को तुझसे अलग कर दूर बान्धता हुँ तो क्यूँ .. मैं नहीं जानता , यही सत्य है | सामाजिक या राजनैतिक संगठनों मे मेरे लिये कोई दायित्व नहीं और मेरे पास बहुत समय है इसलिये । या मेरे अहंकार तृप्ती के लिये । या फिर तेरे साथ Selfie निकालकर आत्म प्रशंसा कमाना चाहता हुँ या मृत्यु के पहले कुछ पुण्य कमा लेना चाहता हुँ । बस कर रहा हुँ । प्रत्येक व्यक्ती अपना अपना स्वभाव के अनुरूप जीवन मे कुछ ना कुछ तो करेगा ही । श्वास की गति थम जाने वाले अन्तिम क्षण तक करेगा | मैं भी कर रहा हुँ । इसमे तेरी हित है या अहित , मैं नहीं जानता । इसमे मेरा अपना हित है या अहित , यह भी मैं नहीं जानता । मेरे क्रिया कर्म के कारण तुझे जो कुछ दर्द, वेदना एवं कष्ट होता हो , उस के लिये क्षमा याचना करने के सिवाय मुझे और कुछ सुझ नहीं रहा । बस , मुझे क्षमा करना ।

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