ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ४१
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रम् ... (अध्याय ४ - श्लोकं ३८)
ந ஹி க்ஞானேன ஸத்ருஶம் பவித்ரம் ... (அத்யாயம் 4 - ஶ்லோகம் 38)
Na Hi Gyaanena Sadrusham Pavithram ... (Chapter 4 - Shloka 38)
अर्थ : ज्ञान के समान पवित्र कुछ नहीं |
पवित्र क्या है ? अपने निकट आने वालों को, स्पर्श करने वालों को जो पवित्र कर दे वह पवित्र | ज्ञान स्वयं पवित्र है | उसे प्राप्त व्यक्ति को भी पवित्र करा देती है | संसार के अनेक समुदायों मे भारत का हिन्दु समाज ही ज्ञान के इस महत्व को जानने वाला समुदाय, एकमेव समुदाय कहे तो भी सही |
अपने इस देश का नाम है भारत | भा याने प्रकाश | रत याने डूबा रहना | मग्न रहना | प्रकाश मे जो मग्न है वह भारत | प्रकाश यह शब्द ज्ञान को सूचित करता है | भारत वह देश जो ज्ञान मे मग्न है | (भा का सीधा अर्थ प्रकाश ही लिया जाये तो भी भारत के लिये यह नाम सत्य है | संसार मे भारत ऐसा भाग्यशाली भूखण्ड है जहाँ वर्ष मे ग्यारह महिने प्रतिदिन बारह घण्टे सूर्य प्रकाश का लाभ है |) ज्ञान मे डूबा है भारत | भारतीय ऐसा एक समुदाय है जो ज्ञान प्राप्ती को ही प्रधान कर्तव्य समझता है | (कैसा दुर्भाग्य है देखिये की हमारे सेक्यूलरवादी संकल्प लेकर प्रयत्न मे जुटे हैं और जुडे हैं की हम इस अर्थपूर्ण नाम भारत को भुला दें और अर्थहीन इण्डिया कहें | हम भी संकल्प करें की इण्डिया नाम का नहीं भारत नाम का ही गर्व से उच्चार करें |)
यदि ज्ञान का अर्थ संसारी ज्ञान ही लिया जये तो भी यह कहना गलत नहीं होगा की भारतीय मे ज्ञान प्राप्ती की तृष्णा निस्सन्देह तीव्र है |
वर्ष १८५०, ५२ में भारत के तमिल नाडु एवं बिहार प्रदेशों से हजारों गिरमिटी श्रमिक अंग्रेज द्वारा दक्षिण आफ्रिका भेजे गए, वहाँ गन्ना खेत में काम करने । वे सब आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक स्तर में सब से नीचे रहने वाली ही थे । अधिकतर हरिजन समुदाय के थे । वहाँ भी इनके लिए प्राप्त जीवन कठोर था । एक शेड में तीन सौ से पाँच सौ जन, न्यूनतम सुधाओं का भी अभाव, दिन में सोलह से अठारह घण्टे परिश्रम, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और धार्मिक अधिकारों से वंछित जीवन था उनका । ऐसी प्रतिकूल अवस्था में भी उनमे से जिन्हें थोड़ा बहुत अक्षर ज्ञान था, वे बच्चों को उंगली से रेत पर लिखकर अक्षर सिखाते थे । उनमे से जिन्हें तुलसी रामायण के कुछ दोहे कंठस्थ थे वे बच्चे और स्त्रियों को पढ़ाते थे । ये वर्ग रात्री ग्यारह बजे के बाद चलते थे, दिन भर समय ना मिलाने के कारण । यही कारण है की वे सब १७० वर्षा बाद आज दक्षिणा आफ्रिका में उच्च शिक्षा प्राप्त समुदाय बनकर गौरव से जी रहे हैं । मतांतरण के बलात्कारी प्रयत्नों को मात देकर आज भी हिन्दू हैं । ज्ञान-तृष्णा !!
सुनामी पीड़ित मछुआरे बस्तियों में हमने नौंवी, दसवीं के विद्यार्थियों के लिए ट्यूशन वर्ग की व्यवस्था किया । समुद्र से प्राप्त अपरिमित धन के कारण उन बस्तियों में शिक्षण का चाह तीव्र नहीं । इस लिए हमने इन वर्गों को पास के हरिजन बस्तियों में स्थान्तरित कर दिया । लगभग ३२ बस्तियों में हमने ये वर्ग चलाया । उन बस्तियों में भी शिक्षण के लिए अनुकूल वातावरण नहीं । दारिद्र्य, अपर्याप्त भोजन, अंधकार, शराब से उत्पन्न लड़ाई झगड़े आदि आदि से युक्त थी वे बस्तियाँ । परंतु इतनी कठोर, प्रतिकूल परिस्थिती में भी हमारे वर्ग चलने वाली प्रत्येक बस्ती में दो तीन ऐसे विद्यार्थी मिले, डाक्टर अम्बेडकर मिले, जिनमे शिक्षण प्राप्ती की तृषणा तीव्र, अति तीव्र थी । ८०% से अधिक मार्क लेने वाले विद्यार्थियों के लिए हमने २,००० रुपये पुरस्कार घोषित किया था । दसवीं कक्षा के विद्यार्थी 'के लिए चला रहे १४ वर्ग में दस बारह विद्यार्थी ८०% से अधिक मार्क लेंगे ऐसी अपेक्षा से हमने २०,००० रुपयों की व्यवस्था किया था । परन्तु हमारे पुरस्कार के लिए योग्य ३२ विद्यार्थी निकले यह हमारे लिए धक्का-दायी, प्रसन्नता युक्त धक्का देने वाला विषय बना । ज्ञान-तृष्णा !!
६०, ७० वर्षा पहले भारत में कई ऐसे परिवार थे जिनमे बच्चे अधिक और आमदनी कम । मानो पेट में गीला वस्त्र बांधकर जीते थे । बच्चे बासी खाते थे परन्तु ज्ञान प्राप्ती का प्यास किञ्चित मात्र भी कम होने नहीं दिया । उच्च शिक्षण और उन्नत पद प्राप्त किया । ज्ञान-तृष्णा !!
भोग भूमि अमेरिका में कई प्रकार के आकर्षण के बीच शिक्षण में गहरा लगाव रखने वाले विद्यार्थी बड़ी मात्रा में वहाँ बसे भारतीय परिवारों के हैं ।
शिक्षण के प्रति लगाव का नाश करने का सामर्थ्य केवल सुख भोग की इच्छा में ही है ।
ज्ञान यह केवल इह लौकिक नहीं | अपने भीतर बसा अन्धकार को मिटाकर प्रकाशमय कर दे, भीतर जमे मल का, विकारों का नाश कर पवित्र कर दे वही ज्ञान | परन्तु लौकिक ज्ञान प्राप्ती का दाह यदि तीव्र हो, कालक्रम मे वही सच्चे ज्ञान प्राप्ती की इच्छा मे परिवर्तित हो जायेगा इसमे कोई संदेह नहीं | इसलिये ज्ञान प्राप्ती की तृष्णा, भले ही संसारी ज्ञान प्राप्ती की, हो, सच्चा और तीव्र हो तो वह निश्चित ही प्रशंसनीय है ।
पवित्र क्या है ? अपने निकट आने वालों को, स्पर्श करने वालों को जो पवित्र कर दे वह पवित्र | ज्ञान स्वयं पवित्र है | उसे प्राप्त व्यक्ति को भी पवित्र करा देती है | संसार के अनेक समुदायों मे भारत का हिन्दु समाज ही ज्ञान के इस महत्व को जानने वाला समुदाय, एकमेव समुदाय कहे तो भी सही |
अपने इस देश का नाम है भारत | भा याने प्रकाश | रत याने डूबा रहना | मग्न रहना | प्रकाश मे जो मग्न है वह भारत | प्रकाश यह शब्द ज्ञान को सूचित करता है | भारत वह देश जो ज्ञान मे मग्न है | (भा का सीधा अर्थ प्रकाश ही लिया जाये तो भी भारत के लिये यह नाम सत्य है | संसार मे भारत ऐसा भाग्यशाली भूखण्ड है जहाँ वर्ष मे ग्यारह महिने प्रतिदिन बारह घण्टे सूर्य प्रकाश का लाभ है |) ज्ञान मे डूबा है भारत | भारतीय ऐसा एक समुदाय है जो ज्ञान प्राप्ती को ही प्रधान कर्तव्य समझता है | (कैसा दुर्भाग्य है देखिये की हमारे सेक्यूलरवादी संकल्प लेकर प्रयत्न मे जुटे हैं और जुडे हैं की हम इस अर्थपूर्ण नाम भारत को भुला दें और अर्थहीन इण्डिया कहें | हम भी संकल्प करें की इण्डिया नाम का नहीं भारत नाम का ही गर्व से उच्चार करें |)
यदि ज्ञान का अर्थ संसारी ज्ञान ही लिया जये तो भी यह कहना गलत नहीं होगा की भारतीय मे ज्ञान प्राप्ती की तृष्णा निस्सन्देह तीव्र है |
वर्ष १८५०, ५२ में भारत के तमिल नाडु एवं बिहार प्रदेशों से हजारों गिरमिटी श्रमिक अंग्रेज द्वारा दक्षिण आफ्रिका भेजे गए, वहाँ गन्ना खेत में काम करने । वे सब आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक स्तर में सब से नीचे रहने वाली ही थे । अधिकतर हरिजन समुदाय के थे । वहाँ भी इनके लिए प्राप्त जीवन कठोर था । एक शेड में तीन सौ से पाँच सौ जन, न्यूनतम सुधाओं का भी अभाव, दिन में सोलह से अठारह घण्टे परिश्रम, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और धार्मिक अधिकारों से वंछित जीवन था उनका । ऐसी प्रतिकूल अवस्था में भी उनमे से जिन्हें थोड़ा बहुत अक्षर ज्ञान था, वे बच्चों को उंगली से रेत पर लिखकर अक्षर सिखाते थे । उनमे से जिन्हें तुलसी रामायण के कुछ दोहे कंठस्थ थे वे बच्चे और स्त्रियों को पढ़ाते थे । ये वर्ग रात्री ग्यारह बजे के बाद चलते थे, दिन भर समय ना मिलाने के कारण । यही कारण है की वे सब १७० वर्षा बाद आज दक्षिणा आफ्रिका में उच्च शिक्षा प्राप्त समुदाय बनकर गौरव से जी रहे हैं । मतांतरण के बलात्कारी प्रयत्नों को मात देकर आज भी हिन्दू हैं । ज्ञान-तृष्णा !!
सुनामी पीड़ित मछुआरे बस्तियों में हमने नौंवी, दसवीं के विद्यार्थियों के लिए ट्यूशन वर्ग की व्यवस्था किया । समुद्र से प्राप्त अपरिमित धन के कारण उन बस्तियों में शिक्षण का चाह तीव्र नहीं । इस लिए हमने इन वर्गों को पास के हरिजन बस्तियों में स्थान्तरित कर दिया । लगभग ३२ बस्तियों में हमने ये वर्ग चलाया । उन बस्तियों में भी शिक्षण के लिए अनुकूल वातावरण नहीं । दारिद्र्य, अपर्याप्त भोजन, अंधकार, शराब से उत्पन्न लड़ाई झगड़े आदि आदि से युक्त थी वे बस्तियाँ । परंतु इतनी कठोर, प्रतिकूल परिस्थिती में भी हमारे वर्ग चलने वाली प्रत्येक बस्ती में दो तीन ऐसे विद्यार्थी मिले, डाक्टर अम्बेडकर मिले, जिनमे शिक्षण प्राप्ती की तृषणा तीव्र, अति तीव्र थी । ८०% से अधिक मार्क लेने वाले विद्यार्थियों के लिए हमने २,००० रुपये पुरस्कार घोषित किया था । दसवीं कक्षा के विद्यार्थी 'के लिए चला रहे १४ वर्ग में दस बारह विद्यार्थी ८०% से अधिक मार्क लेंगे ऐसी अपेक्षा से हमने २०,००० रुपयों की व्यवस्था किया था । परन्तु हमारे पुरस्कार के लिए योग्य ३२ विद्यार्थी निकले यह हमारे लिए धक्का-दायी, प्रसन्नता युक्त धक्का देने वाला विषय बना । ज्ञान-तृष्णा !!
६०, ७० वर्षा पहले भारत में कई ऐसे परिवार थे जिनमे बच्चे अधिक और आमदनी कम । मानो पेट में गीला वस्त्र बांधकर जीते थे । बच्चे बासी खाते थे परन्तु ज्ञान प्राप्ती का प्यास किञ्चित मात्र भी कम होने नहीं दिया । उच्च शिक्षण और उन्नत पद प्राप्त किया । ज्ञान-तृष्णा !!
भोग भूमि अमेरिका में कई प्रकार के आकर्षण के बीच शिक्षण में गहरा लगाव रखने वाले विद्यार्थी बड़ी मात्रा में वहाँ बसे भारतीय परिवारों के हैं ।
शिक्षण के प्रति लगाव का नाश करने का सामर्थ्य केवल सुख भोग की इच्छा में ही है ।
ज्ञान यह केवल इह लौकिक नहीं | अपने भीतर बसा अन्धकार को मिटाकर प्रकाशमय कर दे, भीतर जमे मल का, विकारों का नाश कर पवित्र कर दे वही ज्ञान | परन्तु लौकिक ज्ञान प्राप्ती का दाह यदि तीव्र हो, कालक्रम मे वही सच्चे ज्ञान प्राप्ती की इच्छा मे परिवर्तित हो जायेगा इसमे कोई संदेह नहीं | इसलिये ज्ञान प्राप्ती की तृष्णा, भले ही संसारी ज्ञान प्राप्ती की, हो, सच्चा और तीव्र हो तो वह निश्चित ही प्रशंसनीय है ।
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