ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ४२
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः ... (अध्याय ४ - श्लोक ३९)
ஶ்ரத்தாவா(ன்) லபதே க்ஞானம் தத்பரஹ ஸம்யதேந்த்ரியஹ ... (அத்யாயம் 4 - ஶ்லோகம் 39)
Shraddhaavaa(n) Labhate Gyaanam Thathparah Samyatendriyah ... (Chapter 4 - Shlokam 39)
अर्थ : जो तत्पर है और जिसने इन्द्रियों को संयमित किया हो ऐसे श्रद्धावान को ज्ञान स्वयं प्राप्त होता है ।
महाभारत काल के एकलव्य से आधुनिक काल के भीमराव अम्बेडकर तक अनेकानेकों ने अपने जीवन द्वारा इस शब्दावली के तात्पर्य को घोषित किया है | श्रद्धावान को ज्ञान प्राप्त होगा | इस शब्दावली मे श्री कृष्ण दो अन्य विषयों का भी उल्लेख कर रहे हैं | तत्परता एवं इन्द्रियों पर वश |
एक ही वैज्ञानिक के पास अनेक विद्यार्थी सीखते हैं | परन्तु क्या सभी अब्दुल कलाम बनते हैं ? एक ही संगीतज्ञ के गुरुकुल मे अनेक शिष्य हैं | एकमात्र रवि शङ्कर बनकर निखरता है | एक ही संघ मे अनेकानेक युवक शिक्षण और संस्कार पाते हैं | एकमात्र ही पण्डित दीनदयाल उपाध्याय बना | इनमे कैसी विशेषता ? अन्य कइयों मे तत्परता रही होगी | इन्द्रियों को वश मे लाने मे कमी रही होगी | कुछ तो उस विषय मे भी यशस्वी रहे होंगे | परन्तु शिखर की श्रेष्टता उनसे भी वञ्चित ही थी | बाकी सभी अंश प्राप्त रहकर श्रद्धा की कमी यदी हो पूर्णता से, ज्ञान से, यश से वञ्चित ही रहना होगा | श्रद्धा परिपूर्ण रहकर अन्य कमियाँ रही तो भी उन न्यूनता भरे जायेंगे और पूर्णता प्राप्त होगी | ज्ञान प्राप्त होगा | शिखर प्राप्त होगा |
श्रद्धा स्वाभाविक ही प्राप्त है या प्रयत्न एवं अभ्यास से प्राप्त की जा सकती है ? यह विवाद मञ्च का विषय है | दोनों ही वाक्य मे आंशिक सत्य है | कुछ जनों मे श्रद्धा सहज प्राप्त है | जन्म से ही प्राप्त है | यह सत्य है | अपने चारों ओर इस संसार मे हमें यह सत्य प्रकट होता है | परन्तु सहज प्राप्त यह श्रद्धा गत जन्मों के प्रयास एवं अभ्यास का ही फल है | यह सत्य होते हुए भी अपनी सीमित सामर्थ्य वाली बुद्धी के समझ से परे है |
महाभारत काल के एकलव्य से आधुनिक काल के भीमराव अम्बेडकर तक अनेकानेकों ने अपने जीवन द्वारा इस शब्दावली के तात्पर्य को घोषित किया है | श्रद्धावान को ज्ञान प्राप्त होगा | इस शब्दावली मे श्री कृष्ण दो अन्य विषयों का भी उल्लेख कर रहे हैं | तत्परता एवं इन्द्रियों पर वश |
एक ही वैज्ञानिक के पास अनेक विद्यार्थी सीखते हैं | परन्तु क्या सभी अब्दुल कलाम बनते हैं ? एक ही संगीतज्ञ के गुरुकुल मे अनेक शिष्य हैं | एकमात्र रवि शङ्कर बनकर निखरता है | एक ही संघ मे अनेकानेक युवक शिक्षण और संस्कार पाते हैं | एकमात्र ही पण्डित दीनदयाल उपाध्याय बना | इनमे कैसी विशेषता ? अन्य कइयों मे तत्परता रही होगी | इन्द्रियों को वश मे लाने मे कमी रही होगी | कुछ तो उस विषय मे भी यशस्वी रहे होंगे | परन्तु शिखर की श्रेष्टता उनसे भी वञ्चित ही थी | बाकी सभी अंश प्राप्त रहकर श्रद्धा की कमी यदी हो पूर्णता से, ज्ञान से, यश से वञ्चित ही रहना होगा | श्रद्धा परिपूर्ण रहकर अन्य कमियाँ रही तो भी उन न्यूनता भरे जायेंगे और पूर्णता प्राप्त होगी | ज्ञान प्राप्त होगा | शिखर प्राप्त होगा |
श्रद्धा स्वाभाविक ही प्राप्त है या प्रयत्न एवं अभ्यास से प्राप्त की जा सकती है ? यह विवाद मञ्च का विषय है | दोनों ही वाक्य मे आंशिक सत्य है | कुछ जनों मे श्रद्धा सहज प्राप्त है | जन्म से ही प्राप्त है | यह सत्य है | अपने चारों ओर इस संसार मे हमें यह सत्य प्रकट होता है | परन्तु सहज प्राप्त यह श्रद्धा गत जन्मों के प्रयास एवं अभ्यास का ही फल है | यह सत्य होते हुए भी अपनी सीमित सामर्थ्य वाली बुद्धी के समझ से परे है |
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