ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ४६
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त .. (अध्याय ५ - श्लोक ९)
இந்த்ரியாணீந்த்ரியார்தேஷு வர்தந்த ... (அத்யாயம் 5 - ஶ்லோகம் 9)
Indhriyaaneendhriyaartheshu Vartanta ... (Chapter 5 - Shlokam 9)
अर्थ : इन्द्रियां इन्द्रियों के लिये ... कार्यरत हैं |
इस शरीर मे अनेकानेक अङ्ग अपने अपने कार्य मे लगे हैं | इन्द्रिय अपने अपने कार्य कर रहे हैं | एक दूसरे के लिये कार्यरत हैं | संपूर्ण शरीर के सम्यक् संचालन इस हेतु से इन्द्रिय कार्यरत हैं | आंख देखते हैं | कर्ण सुनते हैं | नासिका सूङ्घती है | जिह्वा रुची लेती है | हाथ उठाते हैं | पैर चलते हैं | हृदय धडकता है | फेफडे फुगते और सिकुडते हैं | वायु अन्दर बाहर करते हैं | आंतडे भोजन पचाते हैं | मल नली मल को बाहर ढकेलती है | नख बढते हैं | बाल झडते हैं | किडनी रक्त को शुद्ध करता है | मेन्दू सोचता है | बुद्धी निर्णय लेती है | मनस सुख दु:ख का अनुभव करता है | शरीर का प्रत्येक अङ्ग अपना अपना कार्य मे रत है | ये सभी कार्य शरीर के लिये चल रहे हैं |
परन्तु, मनुष्य अज्ञान वश या अहङ्कार वश या आदत वश यह सोचता है और मानता है की 'कर्ता मैं हूं ' | मैं देखता हूं ; मैं सुनता हूं ; मैं चखता हूं ; मैं चिन्तन करता हूं ; मैं उठाता हूं ; मैं चलता हूं ; मैं दौढता हूं ; मैं बोल रहा हूं ; मैं गा रहा हूं ; ऐसे सोचता है | ऐसे मानता भी है | ऐसा मानने वाला यही मनुष्य इसी शरीर मे चलने वाले कई अन्य कार्य जो सूक्ष्म हैं, जो इसके समझ् के परे हैं, जो इसके सोच के भी परे हैं , ऐसे कार्यों को "मैं करता हूं" यह ना सोचकर "ये कार्य हो रहे हैं " ऐसा मानता है | भोजन का पचन, रक्त का संचार, हृदय का धडकन , फेफडों का संकुचन एवं विस्तार, नखों का बढना , मल विसर्जन , बालों का झडना , किडनी और लीवर मे रक्त का शुद्धीकरण आदी आदी | मनुष्य अपने स्वयं को इन कार्यों का कर्ता मानता नहीं | उस के विचार मे तो ये कार्य बस हो रहे हैं | अन्य कार्य जिन्हें वह देख पाता है , जो स्थूल हैं , बस उन्हीं कार्यों का कर्ता अपने आप को मानता है | गीता मे किसी अन्य संदर्भ मे श्री कृष्ण कहते हैं की अहङ्कार युक्त विमूढ (मूर्ख) यह मानता है की "मैं ही कर्ता हूं " |
मेरे एक परिचित परिवार मे भूख लगी तो बच्चा कहता , "मेरे पेठ को भूख लगी है" | प्राकृतिक ज्ञान का सहज प्रकटन कर रहा है वह बच्चा | पेठ मे उठता हुआ भूख को अनुभव कर पा रहा है वह बच्चा | भूख लगे हुए पेठ को भोजन भेजना है ऐसा सरल समझ है उस बच्चेका | वैसे हम भी अपने पेठ पर ही थप थापाते हैं परन्तु कहते हैं , मुझे भूख लगी है | सत्य यह है की पेठ को भूख लगती है और पेठ मे उठी भूख शमन करने हेतु हाथ, मुंह, जिह्वा, दान्त, अन्न नली आदि सभी कार्यरत हैं | मनस मे दुःख है और मनस मे उत्पन्न दु:ख को प्रकट करने एवं उस दु:ख का वेग कम करने हेतु आंख अश्रू बहाते हैं | (मैं रो रहा हूं ??? नहीं नहीं मन दु:खित हुआ तो आंखें अश्रू बहा रहे हैं .. ) मनस के लिये आंख कार्यरत है | इन्द्रियाणि इन्द्रियार्थेषु वर्तन्त ... यही है |
इसी प्रकार "मैं शिक्षक हूं" ; "मैं उक्त कंपेनी मे प्रबन्धक हूं " ; "इस फेक्ट्री को मैं चला रहा हूं " ऐसी मान्यता भी अज्ञान है | स्वयं के समझ वर्तुळ के भीतर जो कार्य हैं उन्हें "स्वयं मैं कर रहा हूं " ऐसा मानने वाला वही मनुष्य , अपने समझ के परे , अपने इन्द्रिय, मन बुद्धी द्वारा अनुभव करने का सामर्थ्य के परे दूर कहीं घटनी वाली घटना के प्रभाव से जब् इसका कार्य थम जाता है तो कहता है की वह हो गया | दुबई मे एक फेक्ट्री "मैं चला रहा हूं ऐसा कह रहा था मेरा एक मित्र | दूर अमेरिका मे अस्पष्ट कारणों से इसकी फेक्ट्री बन्द हो गयी तो वह कहने लगा की "फेक्ट्री बन्द हो गयी " | " घाटा हो गया " | वोल्क्स वेगन नामक प्रसिद्ध मोटार कम्पेनी का संपूर्ण भारत का प्रमुख था मेरा अन्य एक मित्र | अमेरिका मे उस कंपेनी पर लगे कुछ गैर व्यवहार के आरोप के कारण यह प्रमुख दो वर्षों से अधिक समय तक वेतन से वञ्चित था | शरीर स्वास्थ्य बिगडा | मनो रोग से ग्रस्त हुआ | मर गया | मैं प्रमुख हूं .... संपूर्ण कार्य को मैं संभल रहा हूं .... मैं इतना वेतन कमा रहा हूं .... इन बातों मे तो "मैं " है | बहुत बडा मैं | वेतन बन्द हो गया .... नौकरी चली गयी ... स्वास्थ्य खत्म हो गया ... ये बातें हो गयी | इनमे मैं नही | जिस कार्य को मैं कर रहा हूं, यदि यह सत्य है की मैं कर रहा हूं तो कोई अज्ञात शक्ती इस कार्य को कैसे रोक सकती है ?
इसी प्रकार "मैं शिक्षक हूं" ; "मैं उक्त कंपेनी मे प्रबन्धक हूं " ; "इस फेक्ट्री को मैं चला रहा हूं " ऐसी मान्यता भी अज्ञान है | स्वयं के समझ वर्तुळ के भीतर जो कार्य हैं उन्हें "स्वयं मैं कर रहा हूं " ऐसा मानने वाला वही मनुष्य , अपने समझ के परे , अपने इन्द्रिय, मन बुद्धी द्वारा अनुभव करने का सामर्थ्य के परे दूर कहीं घटनी वाली घटना के प्रभाव से जब् इसका कार्य थम जाता है तो कहता है की वह हो गया | दुबई मे एक फेक्ट्री "मैं चला रहा हूं ऐसा कह रहा था मेरा एक मित्र | दूर अमेरिका मे अस्पष्ट कारणों से इसकी फेक्ट्री बन्द हो गयी तो वह कहने लगा की "फेक्ट्री बन्द हो गयी " | " घाटा हो गया " | वोल्क्स वेगन नामक प्रसिद्ध मोटार कम्पेनी का संपूर्ण भारत का प्रमुख था मेरा अन्य एक मित्र | अमेरिका मे उस कंपेनी पर लगे कुछ गैर व्यवहार के आरोप के कारण यह प्रमुख दो वर्षों से अधिक समय तक वेतन से वञ्चित था | शरीर स्वास्थ्य बिगडा | मनो रोग से ग्रस्त हुआ | मर गया | मैं प्रमुख हूं .... संपूर्ण कार्य को मैं संभल रहा हूं .... मैं इतना वेतन कमा रहा हूं .... इन बातों मे तो "मैं " है | बहुत बडा मैं | वेतन बन्द हो गया .... नौकरी चली गयी ... स्वास्थ्य खत्म हो गया ... ये बातें हो गयी | इनमे मैं नही | जिस कार्य को मैं कर रहा हूं, यदि यह सत्य है की मैं कर रहा हूं तो कोई अज्ञात शक्ती इस कार्य को कैसे रोक सकती है ?
"मैं कर्ता हूं यह विचार अज्ञान है | कर्म बस हो रहे हैं | इन्द्रिय अपने अपने कर्म कर रहे हैं | यन्त्र जिस कार्य को कर रहा है, उस कार्य को मैं कर रहा हूं ऐसा मानना मूर्खता है, ठीक उसी प्रकार इन्द्रिय शरीर के लिये जिस कार्य को कर रहे हैं उस कार्य को "मैं कर रहा हूं " ऐसा मानना मूर्खता है | अज्ञान है | इस सत्य की अनुभूति शरीर भाव को मिटा देती है |
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