ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ५०
பண்டிதாஹ ஸம தர்ஶினஹ (அத்யாயம் 5 - ஶ்லோகம் 18)
Panditaah Sama Darshinah (Chapter 5 - Shlokam 18)
अर्थ : जिसकी दृष्टी सम है वही पंडित ।
इस शब्दावली में तीन प्रमुख शब्द हैं । दर्शिनः , सम और पंडित ।
दर्शिनः ,, जो देखता है वह । देखना यह आँखों का कार्य नहीं । विज्ञान का भी यही अभिप्राय है । आँखें तो केवल स्थूल दृश्य को देखते हैं । इस देखने का कर्म से मन में उठने वाला चिंतन , होने वाली प्रतिक्रया , बनाने वाली धारणा ये प्रत्येक मनुष्य के लिए भिन्न भिन्न हैं । इस का कारण है दृष्टी । दृश्य एक है और आँख एक समान हैं । परन्तु दृष्टी भिन्न भिन्न है । व्यक्ति के गुण , स्वभाव , संस्कार आदि के परिणाम स्वरुप है उसे प्राप्त दृष्टी ।
सम - समता या समत्व - समता ऐसी स्थिति है जिसमे संसार में उत्पन्न परिस्थितियाँ , स्थूल रूप में दिखने वाले भेद भाव अपने अंदर उथल पुथल निर्माण नहीं करते । जो दृष्टी बाहरी परिस्थितियों से बाधित नहीं होती , संसार मे प्रकट होने वाले भेद भाव जिस दृष्टी पर प्रभाव नहीं कर सकते वह दृष्टी सम है । श्री कृष्ण के अनुसार सम दृष्टी को प्राप्त व्यक्ति ही पंडित है ।
पण्डित - पण्डित याने पढ़ा लिखा व्यक्ति यही लोक मान्य अर्थ है । किसी विद्या में जिसने निपुणत्व प्राप्त की हो वह उस विद्या का पंडित माना जाता है । तमिळ पण्डित या हिन्दी पण्डित या संस्कृत पण्डित ये उन भाषाओं में निपुण । वेदों को जिसने रट रखा है वह वेद पण्डित । परन्तु सही अर्थ इससे गहरा है । अपनी गीता भाष्य में पण्डित शब्द का विवेचन लिखते समय आद्य शंकर कहते हैं "पण्डस्य ज्ञाता सः पण्डितः" । आत्मा या तत्त्व ही पंडा है । श्री कृष्ण भी गीता के इस श्लोक में यही कह रहें हैं । जीवन विविध परिस्थितियाँ प्राप्त होने पर "ये तो गत आगत (आने जाने वाले) हैं ; बदलने वाली हैं ; निरंतर नहीं हैं ; ऐसी दृढ़ धारणा रख कर जो अपने भीतर उन परिस्थियों का परिणाम होने नहीं देता वह पण्डित है । बाहरी संसार में दिखने वाले भेदों के पार प्रकृती में निर्मित स्थूल विविधता में स्थित एक परम तत्त्व का अनुभव कर पाने वाला पण्डित है ।
भेदों की ओर देखने वाला बिखराव का अनुभव करता है । आधार एक तत्त्व को देखने वाला ऐक्य का अनुभव करता है । बिखरी दृष्टी जिसकी है वह आतंकित होता है । सम दृष्टी वाला शांति का अनुभव करता है ।बाहर देखने वाला अनेकता को , भेदों को देखता है । भीतर देखने वाला एक तत्त्व को देखता है । तमिळ भाषा में ब्राह्मण को दर्शाने वाला एक शब्द है 'पार्पनन' । 'पार्पनन' याने देखने वाला । सही देखने वाला , सम दृष्टी से देखने वाला । (भारत के उत्तरी भाग में ब्राह्मण को पण्डितजी बुलाया जाता है , वह रोटी बनाने वाला हो तो भी ।)
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