ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ५२
ஸர்வ பூத ஹிதே ரதாஹ ... (அத்யாயம் 5 - ஶ்லோகம் 25)
Sarva Bhoota Hite Rataah ... (Chapter 5 - Shloka 25)
अर्थ : सभी जीवों के हित मे मग्न .....
सर्व भूत हिते रताः । कितना उदात्त लक्ष्य !! सर्व भूत हित .... और उसमे रत या मग्न । किसी समाज की श्रेष्ठता उसके सामने रखा गया ध्येय से ही आंकी जा सकती है । अपनी ऋषी परम्परा ने अपने इस हिन्दू समाज के सामने ऐसे श्रेष्ठतम जीवन लक्ष्य रखा है । यही कारण है की आज पश्चिमी देशों से प्राप्त भोगवाद से घिरी हुई अवस्था में भी सर्व सामान्य हिन्दू ऊँचा जीवन ... इस जीवन लक्ष्य के अनुरूप जीवन जी रहा है ।
क्या सम्पूर्ण समाज इस प्रकार की भावना से प्रेरित जीवन जी रहा है ? क्या प्रत्येक व्यक्ति सर्व भूत हित में रत जीवन जी रहा है ? क्या किसी समाज में यह सम्भव है ? नहीं । परन्तु एक बात सुनिश्चित है की समाज के प्रत्येक व्यक्ति की जीवन दिशा मात्र यही है । हर व्यक्ति अपनी योग्यता , स्वभाव एवं जीवन दशा के अनुसार कम अधिक अंश इस भावना को अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न अवश्य करता हुआ दिखता है । सहस्रों में एक यदि इसी भाव को अपने भीतर प्रति कण में , अपने प्रत्येक श्वास में , अपनी वाणी में , और अपने प्रत्येक कर्म में ... जागृत और स्वप्नावश्था में भर लेना चाहता है तो वह महान जीवन , प्रेरक जीवन जीकर चला जाता है । हिन्दू समाज ने अपने सामने रखे ऐसे महत्तम उद्देश्य के फलस्वरूप प्रत्येक दशक में , भारत भू भाग के प्रत्येक प्रदेश में असंख्य महापुरुष , युगपुरुष , साधू संतों को जन्म दिया है ।
आज प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी श्री बसवप्पा जयन्ती के उपलक्ष में बोलते हुए इस्लामी समाज को आह्वान दिया की "ऐसे शक्तिशाली महापुरुषों का उत्पन्न करो जो ना केवल अपने देश के , विश्व भर के मुस्लिम समाज को मानवता की और प्रेरित करें ।" जिस समाज में गत १४०० वर्षों में एक भी दिव्य पुरुष , उदात्त गुणों वाला संत जन्मा न हो उस समाज से ऐसी अपेक्षा ?? (दूर अरब के रन्न प्रदेश में अज्ञात कोई साधू महात्मा जन्मा होगा । भारत में श्री कबीर , श्री रस खाँ जैसे संत जन्मे तो हिन्दू संस्कार के कारण ।) इस्लाम साधारण मुसल्मानों के सामने जीवन लक्ष्य के रूपा में क्या रखता है ? अन्यों को मुसलमान बनाओ , विग्रह उपासना खत्म करो , उस हेतु मंदिरों का ध्वस्त करो , काफ़िरों का प्राण , संपत्ति और स्त्री उनसे छीनो । रमजान मास में थोड़ा दान भी कहा गया है , ७२ कमरों वाली जन्नत प्राप्ति के लिए । ऐसा समाज से कोई साधू महात्मा का जन्म होना असम्भव है ।
सुख भोग , प्राकृतिक संसाधन का इस हेतु शोषण , बलहीन मनुष्यों का भी शोषण , आदि भावना व्यक्त करने वाला पाश्चात्य समाज भी साधू महात्मा जन्म देने में अपयशी ही रहा है ।
मनुष्य जीवन में सब कुछ , गुण , क्षमता , निपुणता , आदि सभी विषय गोपुर रचना समान है । नीचे विस्तार और ऊपर छोटा । नीचे जितना अधिक विस्तार हो , गोपुरम उतना अधिक उँचा उभरता है । उसी प्रकार साधारण समाज मे जितने अधिक जन किसी दिशा में प्रयत्न करें उसके अनुपात में उस विषय में उँचाई , महोन्नत स्थिति प्राप्त की जाती है । उसी अनुपात में उस उँचाई को प्राप्त करने वाले व्यक्तियों की संख्या भी होती है । इस दृष्टी में अपने ऋषियों का यह योगदान महत्त्वपूर्ण है । वेद उपनिषद् , श्री रामायण , महाभारत , श्री गीता आदि ग्रंथों द्वारा मनुष्य जीवन का ध्येय का वर्णन , उस ध्येय के अनुरूप परिवार व्यवस्था , समाज व्यवस्था आदि की रचना , उस ध्येय को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करने वाले उत्कृष्ट संत महात्माओं का सहज सृजन , इन संत जीवन के उदाहरण से उक्त ध्येय का सुदृढ़ीकरण .... गत सहस्रों वर्षों यही चक्र भारत में चला आया है ।
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