ॐ गीता की कुछ शब्दावली - ५६ आत्मैवात्मना जितः बन्धुः । (अध्याय ६ - श्लोक ६) ஆத்மைவாத்மனா ஜிதஹ் பந்துஹு ... (அத்யாயம் 6 - ஶ்லோகம் 6) Aatmaivaatmanaa jitah Bandhuhu ... (Chapter 6 - Shloka 6) अर्थ : जिसने अपने आप को जीता हो वही स्वयं का बंधू है । आत्मैवात्मना जितः - बन्धुः । बंधू याने मित्र । जितः याने वह जिसने जीता हो । आत्मैवात्मना याने स्वयं को स्वयं द्वारा । अपने आप को । अपने आप को जीता हुआ याने क्या ? अपने शरीर को जीता हुआ ? अपने शरीर को वश में किया हो जो ? क्या हमें उपलब्ध शरीर अपने वश में है ? क्या यह शरीर हमारी इच्छानुसार बरतती है ? हम जो निर्णय लेते हैं , उन निर्णयों के क्रियान्वयन करती है ? एक स्थान में या एक अवस्था में रह जाओ ऐसी अपेक्षा किया तो उसे निभाती है ? क्या अपना देह अनावश्यक हलचलों के बिना रह सकता है ? घन शरीर है इसलिए सीढ़ियाँ चढ़ नहीं सकता ... भूमि पर बैठ नहीं सकता ...
राम गोपाल रत्नम्