Skip to main content

गीता की कुछ शब्दावली - ५९


गीता की कुछ शब्दावली - ५९


युक्ताहार , युक्त विहार , युक्त कर्म चेष्टा , युक्त स्वप्न , युक्त बोध ... (अध्याय ६ - श्लोक १७)
யுக்த ஆஹார , யுக்த விஹார் , யுக்த கர்ம சேஷ்டா , யுக்த ஸ்வப்ன , யுக்த போத  ...  (அத்யாயம் 6 - ஶ்லோகம் 17)
Yukta Aahaar , Yukta Vihaar , Yukta Karma Cheshtaa , Yukta Swapna , Yukta Bodha  ...  (Chapter 6 - Sholka 17) 

अर्थ :  उचित भोजन , उचित भ्रमण , उचित प्रयत्न , उचित निद्रा और जागरण  । ...

श्री कृष्ण का कहना है की "उचित भोजन , उचित विहार या भ्रमण , उचित परिश्रम , उचित निद्रा एवं जागरण  ... योग सिद्धि के लिए ये आवश्यक हैं"  ।

उचित क्या है ?  एक को जो युक्ता है वही अन्य के लिए अयुक्त हो सकता है ।  यही कारण है की श्री कृष्ण उचित क्या क्या हैं और कैसे हैं इस वर्णन में न उतरकर केवल उचित कहकर छोड़ दिया ।  तुझे अनुकूल , सुलभ प्राप्त , उपयोगी , तेरे लिए उचित है ।  यही हिन्दू धर्म की विशेषता है ।  यहाँ आज्ञा नहीं ।  फतवे नहीं ।  यहाँ केवल सुझाव हैं ।  इस प्रकार होने में हमें चिंतन करने , निर्णय लेने , चुनने की स्वतन्त्रता है ।  आज्ञा देने वाले अन्य मत सम्प्रदायों में स्वतंत्र चिंतन या निर्णय के लिए स्थान नहीं ।  वैसे किसी ने करने की चेष्टा किया तो वह पंथ द्रोही कहलाकर कठोर दंड का , मृत्यु दंड का पात्र हो जाता है ।

उक्त भोजन :  उक्त प्रकार ...  शाकाहारी या मांसाहारी , पका या कच्चा , मसालेदार या साधा ऐसे अनेक प्रकार हैं ।  उक्त मात्रा में भोजन ।  उक्त समय -  एक वार , द्वी वार या अनेक वार ।  इस प्रकार उक्त भोजन व्यक्ति से व्यक्ति अलग अलग हो सकते हैं ।  उसकी आयु , स्वास्थ्य , व्यवसाय , परिवार में चली रीतियाँ , शीतोष्ण वातावरण , उपलब्धता , सामाजिक और साम्प्रदायिक श्रद्धायें और रीतियाँ , ऐसे अनेक बिंदुओं पर निर्भर हैं किसी का उक्त भोजन ।  वेद और शास्त्र भोजन के विषय में कुछ सामान्य सूचनायें देते हैं ।  भोजन को फेंकना नहीं ।  भोजन का परिहास और तिरस्कार न करें ।  भोजन ब्रह्म स्वरुप है ।  भगवान् के लिए भोग है इस भावना से भोजन तैयार किया जाना चाहिए ।  स्नेह प्रेम से और विना पंक्ति भेद किये भोजन परोसा जाना चाहिए ।  भोजन स्वीकारने वाला भगवत्प्रसाद के रूप में उसे स्वीकारना चाहिए ।  बैठकर , बांटकर , शान्त और पूर्ण तृप्त मन से भोजन का ग्रहण करना चाहिए ।

भूख इस शारीरिक रोग की दवा रूप में भोजन देखा जाता है ।  इस लिए भोजन छः रुचियों से पूर्ण होना चाहिए ।  उस उस प्रदेश में उपलब्ध वास्तु एवं वहाँ की शीतोष्ण परिस्थिती के अनुरूप तैयार किया जाना चाहिए ।  क्या और कैसे ये विवरण व्यक्तिगत हैं ।

क्या हम स्व-प्रज्ञा के साथ भुजते हैं ?  क्या हम भोजन का स्वाद का अनुभव करते हुए , आनन्द से खाते हैं ?  स्व-प्रज्ञा और आनन्द के साथ भोगना युक्त भोजन का ज्ञात होने में सहायक हैं ।

अपनी परम्परा में भोजन को व्यापार का विषय बनाना मना है ।  परन्तु आज भोजन ही सर्वाधिक लाभदायी व्यापार है ।  हमारी परम्परा में व्यापार भी धर्म नीति से बंधा होना अपेक्षित है ।  परन्तु आज भोजन सम्बंधित व्यापार अधर्म से भरा है ।  GM बीज , बीजो की कॉपीराइट ,  कीट नाशक , खाद , पौष्टिक तत्त्व के नाम से विष भरी खेती , मिलावट , प्रदूषण , व्यापार में जमाखोरी , तस्करी , कर चोरी , वजन  में चोरी आदि घोटाले , केवल लाभ उद्दिष्ट भोजन केंद्र (हॉटल) , अस्वच्छ तरीकें , डिब्बों में भरे भोजन पदार्थों में रंग , रुचि बढ़ाने के लिए आक्सीडेंट , प्रिज़र्वेटिव आदि नाम से अनेक रसायन के मिलावट , बड़ी मात्रा में भोजन का नाश , और अंत में हमारी तिजोरी से वैद्यकीय संस्था और दवाई कंपनियाँ तक अपना धन अपहृत होने की व्यवस्था ।

विहार याने भ्रमण या प्रयाण - अधिक पैदल चलना शरीर पर हानिकारक परिणाम करता नहीं ।  परन्तु गाड़ियों में अधिक प्रयाण और सवेग प्रयाण हानिकारक हैं ।

परिश्रम -  उचित मात्रा में और उचित प्रकार के परिश्रम ।  योजना बद्ध चिंतन और चेष्टा , चेष्टाएँ और उनके फलों की समीक्षा और अनुभवों से सीख इन आदतों की सहायता लें तो उक्त परिश्रम को जानना सुलभ ।

युक्त निद्रा और युक्त जागरण -  कितने घंटे निद्रा , किस समय निद्रा , किस स्तर निद्रा ये सब युक्त निद्रा का निश्चय करते हैं ।  परिश्रम और निद्रा एक दुसरे के सीधे प्रमाण में हैं ।  अधिक परिश्रण - अच्छी निद्रा ।  परन्तु शारीरिक परिश्रम से अधिक मानसिक स्थैर्य , मनः शान्ति , निश्चिन्त मन ही अच्छी निद्रा के लिए आवश्यक है ।

एक प्रश्न उठता है ।  ये बातें आध्यात्मिक प्रयासों में कैसे सहायक  हैं ?  श्री  अनुसार ये योग सिद्धि के लिए साधन हैं ।  परमात्मा के प्राप्ति में ये कैसे उपयुक्त हैं ?  ये स्व-प्रज्ञा को प्रोत्साहित करते हैं ।  हमारे इच्छा अनिच्छा को मिटाने में सहायक हैं ।   बुद्धि की 'सही गलत , उचित-अनुचि'  इन सूचना के आधार पर निर्णय होते हैं , ना की मन को प्रिय अप्रिय इस आधार पर ।  याने मन से ऊपर उठने  सहायक ।  इन्द्रियों वश करने में प्रेरक हैं ।   अज्ञात की ओर किसी भी यात्रा ज्ञात से ही प्रारम्भ होती है , यही नियम है ।

Comments

Popular posts from this blog

ஜ, ஷ, ஸ, ஹ, க்ஷ, ஸ்ரீ ....

ॐ ஜ , ஷ , ஸ , ஹ , ஶ , க்ஷ , ஸ்ரீ என்ற எழுத்துக்களை வடமொழி எழுத்துக்கள் என்கிறான் ஒருவன். ஸம்ஸ்க்ருத எழுத்து என்கிறான் ஒருவன் . மூடர்கள் .  அறியாமையில் பேசுகின்றனர் . தவறான நோக்கத்துடன், நம்முள் பேதத்தை ஏற்படுத்திட எவனோ புதைத்துச் சென்ற விஷத்தை , அது விஷம் என்று கூட அறியாமல் பேசுகின்றனர் . வட என்பது திஶை . திஶைக்கு மொழி கிடையாது . (இசைக்கும் மொழி கிடையாது . கவிதைக்குதான் மொழி . தமிழிசை மன்றம் என்பதெல்லாம் அபத்தம் .) தமிழகத்திற்கு வடக்கில் பாரத தேஶத்தின் அத்தனை ப்ராந்தங்களும் (கேரளம் தவிர்த்து) உள்ளன . தெலுங்கு , மராடீ , போஜ்புரி , குஜராதீ ... அனைத்து மொழிகளும் வட திஶையில் பேசப்படும் மொழிகள் .  இவை எல்லாம் வடமொழிகள் . (கன்யாகுமரி ஆளுக்கு சென்னை பாஷை கூட வடமொழிதான்) . இந்த எல்லா மொழிகளிலும் இந்த ஶப்தங்களுக்கு எழுத்துக்கள் உண்டு .   தெலுங்கில் జ  , స  , హ .. . என்றும் ,   கன்னடத்தில்   ಜ , ಸ , ಹ , ಕ್ಷ .. என்றும் , மராடீயில் . ज , स , ह , श , क्ष,.. என்றும் குஜராதியில்     જ , સ , હા , ક્ષ  , என்றும் ,   ப...

கீதையில் சில சொற்றொடர்கள் - 31

ॐ கீதையில் சில சொற்றொடர்கள் - 31 चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुण कर्म विभागशः  ... (अध्याय ४ - श्लोक १३) சாதுர்வர்ண்யம் மயா ஸ்ருஷ்டம் குண கர்ம விபாகஶஹ்  ...  (அத்யாயம் 4 - ஶ்லோகம் 13) Chatur VarNyam Mayaa Srushtam GuNa Karma Vibhaagashah ... (Chapter 4 - Shlokam 13) அர்தம் :   சாதுர் வர்ண்யம் மயா ஸ்ருஷ்டம்... குண கர்ம விபாகஶ :   குணம் மற்றும் கர்மங்களின் அடிப்படையில் நான்கு வர்ணங்கள் என்னலே படைக்கப் பட்டது. சாதுர் வர்ண்யம் மயா ஸ்ருஷ்டம்... குண கர்ம விபாகஶ :  சதுர் வர்ணங்களை, நான்கு வர்ணங்களை நான்தான் ஸ்ருஷ்டித்தேன், என்கிறார் ஸ்ரீ க்ருஷ்ணன்.  இதில் என்ன ஆஶ்சர்யம் ??  ப்ரக்ருதியில் உள்ள அனைத்துமே அவர் படைத்தவை என்னும்போது, சதுர் வர்ணங்களையும் அவர்தானே படைத்திருக்க வேண்டும் ??  கீதையின் இந்த வாக்யம் நாஸ்திகவாதிகள், கம்யூனிஸ்ட்கள், கடவுள் மறுப்பு இயக்கத்தினர் என்று கடவுளை ஏற்காதவர்களையும் நெளிய வைக்கிறது.  கடவுளே படைத்திருக்கிறார் என்றால் அதை அழித்தொழிக்க முடியாது என்று கருதுகிறார்களா ??  இவர்கள் அனைவரும் ஜாதி அம...

August 28th... Flying visit to Chennai..

ॐ Out of the net for three days. Fying visits to Chennai on 28th and to Erode on the 30th. 29th was Shravana Poornimaa, day for License renewal . Went to Chennai for inauguration of ABVP Karyalayam. There was a day long meet of old workers of Vidyarthi Parishad. Recall of memories is always a refreshing experience. Probably, that is the reason why many want to live with 'glorious' old memories. Those days when our only asset was Enthusiasm at its best. Karyalaya, funds, facilities like vehicle, phone, etc. support, numerical strength, and other resources were on the lower side. Peanuts, Tea, Walk, long and short ones. Nevertheless, it was a great experience with high level of affectionate team working and sharing, hectic activism, great dreams. Nagpur Sangam Chawl Karyalayam was a tiled hut, but was always full of students. Similar in Chennai Ezhumbur Karyalaya. Now, there is no paucity of resources. We have best Karyalaya, powerful support, access to political power,...