ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ६२
शनैः शनैः उपरमेत् ... (अध्याय ६ - श्लोक २५)
ஶனைஹி ஶனைஹி உபரமேத் ... (அத்யாயம் 6 - ஶ்லோகம் 25)
Shanaih Shanaih Uparameth ... (Chapter 6 - Shloka 25)
अर्थ : धीरे धीरे शान्त होना ....
शनैः शनैः .. धीरे धीरे शान्त हो जाए । संसार से , इस लोक के प्रति निर्मित रुचि से मुक्त हो जाए । अपने अन्दर समेट जाए । शनैः शनैः इस शब्द के उच्चार ही इस के अर्थ को प्रकट करता है । धीरज , अत्यधिक धैर्य की आवश्यकता है ।
अधीर होने के कारण क्या हैं ? तत्काल हाथ में लिए कार्य या विषय को शीघ्रादि शीघ्र समाप्त कर अन्य किसी कार्य में लगने की जल्दी , इस कार्य को समाप्त कर विश्राम लेने की इच्छा , इस कार्य से अपेक्षित फल की प्राप्ति की कामना , जोर जबरदस्ती से किसी कार्य में लगाए जाना , आदि अधीर हो जाने के कारण । इन्द्रियों के आधिक्य बढ़ जाने से भी मन अधीर हो जाता है ।
परिक्षा के बाद सिनिमा चलें ऐसे कहा गया विद्यार्थी परिक्षा लेखन इस कार्य से शीघ्रादि शीघ्र मुक्त होना चाहता है । परीक्षा लिखने में उसकी पूरी क्षमता लगती नहीं । थका हुआ डॉक्टर , 'बस इस चिकित्सा को पूर्ण कर फिर आराम करूँगा' ऐसा विचार लेकर पूरे मनसे चिकित्सा में लग नहीं सकता । होम हवन करता हुआ पुरोहित अन्य कहीं एक और कार्य स्वीकारा हो तो हवन की पूर्ती शीघ्र ही करने की सकेगा । उसपर अन्य स्थान से मोबाईल पुकार आता रहे तो असत्य बोलने का भी संकोच नहीं करेगा । हाथ में इस क्षण जो कार्य है , उससे महत्व पूर्ण कार्य पूर्ण संसार में में और कुछ नहीं , ऐसी भावना से कार्य में लगें तो इस रोग से बच सकते हैं और मन में धीरज भी अबाधित रहता है ।
आज संपूर्ण समाज विशेष रूप से नगरी समाज अधीर होने के लक्षण उभर रहे हैं । छोटे बच्चों में भी यह रोग फैलता हुआ दिख रहा है । किसी भी अभ्यास के लिए धीरज पूर्ण मन की आवश्यकता है । स रे ग म सीखने के लिए धीरज न हो तो संगीत विद्वान् बनना अशक्य । था थै थक थै .. इन आधारभूत अभ्यास अपने पदों के लिए हठी होकर किया तो ही भारत नाट्य की निपुणता सुनिश्चित है । अ , आ , इ , ई इन अक्षरों के उच्चार और लेखन की दृढ़ता से अभ्यास करने वाला ही भाषा के पांडित्य प्राप्त कर सकता है । अभ्यास के लिए धीरज नहीं , अभ्यास 'बोर' है ऐसे लुढकने वाले आगे जीवन में भी लुढ़क जाते हैं ।
समाज कार्य में लगे व्यक्ति , समाज परिवर्तन की आशा से प्रयत्नशील कार्यकर्ता , देश प्रगत हो जाने के स्वप्न लेकर चलने वाले कार्यकर्ता , मतान्तरण रुक जाए , गौ की रक्षा होये ऐसे भावना लेकर कार्यरत अनेकानेक व्यक्ति आज अधीर होते हुए दिखते हैं । धैर्य खोकर भाव वश होते हुए दिख रहे हैं । कार्य में तेजी हो परन्तु मन में धीरज हो । धीरज का अर्थ निष्क्रियता नहीं । धीरज का अर्थ सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा ऐसी खोटी आध्यात्मिकता नहीं । क्रियाशील , तेजस्वी क्रिया परन्तु शांत , धैर्य युक्त मन ।
श्रद्धा का प्रकट स्वरुप धीरज है । धैर्य हो तो वाक् में उद्वेग नहीं । व्यर्थ नारे नहीं । जीवन के अन्तिम श्वास तक कृति रहेगी । तमिळ नाडु के श्री राम गोपालन (हिन्दू मुन्नणी के संस्थापक) इस विषय में ज्वलन्त उदाहरण हैं । भावना के आवेश में बोलने वाले , गला फाड़कर नारे लगाने वाले , बहुत कम समय में कर्म क्षेत्र छोड़कर भाग जाते हैं । या पथ भ्रष्ट होकर हफ्ता वसूल , अधिकार ज़माना या काम कृतियों में लग जाते हैं ।
लौकिक विषयों में धीरज । आध्यात्मिक साधना में भी धीरज । धीरज खोने से , जल्दी करने से क्या लाभ ?मैंने इतने लक्ष नाम जप किया है । मैं इतने इतने मंदिरों और तीर्थों में जाकर आया हूँ । इतने व्रत रखा है । परन्तु अब तक कुछ हुआ नहीं । भगवत्कृपा प्राप्त हुआ नहीं । कई लक्ष योनियों में प्रवास करने के बाद मनुष्य जन्म मिला है । इतने लाख वर्ष तक धीरज बनाकर रखा है तो और कुछ वर्ष या और कुछ जन्म नहीं होगा ? आध्यात्मिक साधना धीरज के साथ , अतीव धीरज के साथ करना है । अगले क्षण की चिन्ता के विना करना है ।
परिक्षा के बाद सिनिमा चलें ऐसे कहा गया विद्यार्थी परिक्षा लेखन इस कार्य से शीघ्रादि शीघ्र मुक्त होना चाहता है । परीक्षा लिखने में उसकी पूरी क्षमता लगती नहीं । थका हुआ डॉक्टर , 'बस इस चिकित्सा को पूर्ण कर फिर आराम करूँगा' ऐसा विचार लेकर पूरे मनसे चिकित्सा में लग नहीं सकता । होम हवन करता हुआ पुरोहित अन्य कहीं एक और कार्य स्वीकारा हो तो हवन की पूर्ती शीघ्र ही करने की सकेगा । उसपर अन्य स्थान से मोबाईल पुकार आता रहे तो असत्य बोलने का भी संकोच नहीं करेगा । हाथ में इस क्षण जो कार्य है , उससे महत्व पूर्ण कार्य पूर्ण संसार में में और कुछ नहीं , ऐसी भावना से कार्य में लगें तो इस रोग से बच सकते हैं और मन में धीरज भी अबाधित रहता है ।
आज संपूर्ण समाज विशेष रूप से नगरी समाज अधीर होने के लक्षण उभर रहे हैं । छोटे बच्चों में भी यह रोग फैलता हुआ दिख रहा है । किसी भी अभ्यास के लिए धीरज पूर्ण मन की आवश्यकता है । स रे ग म सीखने के लिए धीरज न हो तो संगीत विद्वान् बनना अशक्य । था थै थक थै .. इन आधारभूत अभ्यास अपने पदों के लिए हठी होकर किया तो ही भारत नाट्य की निपुणता सुनिश्चित है । अ , आ , इ , ई इन अक्षरों के उच्चार और लेखन की दृढ़ता से अभ्यास करने वाला ही भाषा के पांडित्य प्राप्त कर सकता है । अभ्यास के लिए धीरज नहीं , अभ्यास 'बोर' है ऐसे लुढकने वाले आगे जीवन में भी लुढ़क जाते हैं ।
समाज कार्य में लगे व्यक्ति , समाज परिवर्तन की आशा से प्रयत्नशील कार्यकर्ता , देश प्रगत हो जाने के स्वप्न लेकर चलने वाले कार्यकर्ता , मतान्तरण रुक जाए , गौ की रक्षा होये ऐसे भावना लेकर कार्यरत अनेकानेक व्यक्ति आज अधीर होते हुए दिखते हैं । धैर्य खोकर भाव वश होते हुए दिख रहे हैं । कार्य में तेजी हो परन्तु मन में धीरज हो । धीरज का अर्थ निष्क्रियता नहीं । धीरज का अर्थ सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा ऐसी खोटी आध्यात्मिकता नहीं । क्रियाशील , तेजस्वी क्रिया परन्तु शांत , धैर्य युक्त मन ।
श्रद्धा का प्रकट स्वरुप धीरज है । धैर्य हो तो वाक् में उद्वेग नहीं । व्यर्थ नारे नहीं । जीवन के अन्तिम श्वास तक कृति रहेगी । तमिळ नाडु के श्री राम गोपालन (हिन्दू मुन्नणी के संस्थापक) इस विषय में ज्वलन्त उदाहरण हैं । भावना के आवेश में बोलने वाले , गला फाड़कर नारे लगाने वाले , बहुत कम समय में कर्म क्षेत्र छोड़कर भाग जाते हैं । या पथ भ्रष्ट होकर हफ्ता वसूल , अधिकार ज़माना या काम कृतियों में लग जाते हैं ।
लौकिक विषयों में धीरज । आध्यात्मिक साधना में भी धीरज । धीरज खोने से , जल्दी करने से क्या लाभ ?मैंने इतने लक्ष नाम जप किया है । मैं इतने इतने मंदिरों और तीर्थों में जाकर आया हूँ । इतने व्रत रखा है । परन्तु अब तक कुछ हुआ नहीं । भगवत्कृपा प्राप्त हुआ नहीं । कई लक्ष योनियों में प्रवास करने के बाद मनुष्य जन्म मिला है । इतने लाख वर्ष तक धीरज बनाकर रखा है तो और कुछ वर्ष या और कुछ जन्म नहीं होगा ? आध्यात्मिक साधना धीरज के साथ , अतीव धीरज के साथ करना है । अगले क्षण की चिन्ता के विना करना है ।
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