ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ६३
सर्व भूतस्थमात्मानं सर्व भूतानि चात्मनि ... (अध्याय ६ - श्लोक २९)
ஸர்வ பூதஸ்தமாத்மானம் ஸர்வ பூதானி சாத்மானி ... (அத்யாயம் 6 - ஶ்லோகம் 29)
Sarva Bhootasthamaatmaanam Sarva Bhootaani Chaatmani ... (Chapter 6 - Shloka 29)
अर्थ : सभी में स्वयं को देखना और स्वयं में सब को देखना ...
सभी में स्वयं को देखना .... सरल शब्दों में कहो तो अन्य जीवों के भावनाओं को , वेदनाओं को समझना और उसके अनुरूप स्वयं के कर्म एवं चिंतन क ढालना ...
स्वयं में सब को देखना ... स्वयं के अपने अनुभवों के आधार पर अन्यों के वेदनाओं की अनुभूति करना ....
स्व का विस्तार है यह । इस विस्तार में स्वार्थ या स्व - केंद्रित चिंतन ही कारण है । हम में से कुछ कठोर स्वार्थ - वश अपने माँ बाप , पत्नी और बच्चे , अपने घर में पालित गाय और कुत्ता , वृक्ष पौधे आदि जीवों से भी तादाम्य नहीं कर पाने वाले , स्व का न्यूनतम विस्तार नहीं कर पाने वाले दिखते हैं । राक्षसी वृत्ति कहें !
हम में कई सामान्य व्यक्ति हैं जो इस हद्द तक अपना विस्तार करने में समर्थ हैं । अपने माँ बाप की शारीरिक यातनाओं पर आँसू बहाने वाले , अपने बच्चे के चहरे पर मुस्कान खिलने के लिए परिश्रम करने वाले , अपने घर की गाय की प्रसव वेदना पर चिंतित होने वाले , ऐसे व्यक्ति कई हैं । परन्तु क्या इनके पास किसी असम्बद्ध अन्य वृद्ध के लिए आँसू हैं ? किसी अन्य बच्चे के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए क्या ये अपना परिश्रम जुटाने तैयार हैं ? रास्ते पर भटकने वाली गाय की वेदना , क्या इन्हें दुःखी बनाती है ? नहीं । इनमे विस्तार सत्य है , परन्तु सीमित है । 'मेरा - अपना' यह भावना जहाँ तक है , वहाँ तक इनका विस्तार है । वही 'मेरा - अपना' भावना इनके विस्तार को रोक भी देती है ।
इस 'मेरा - अपना' की सीमा से परे .... अपार विस्तार ही श्री कृष्ण का इस शब्दावली में सुझाव है । कठिन है पर असंभव नहीं । दुर्लभ है परन्तु आनन्दमय है । ऐसे साधुओं की लम्बी श्रृंखला अपने देश में है जो इस विस्तार करने में यशस्वी रहे हैं । इसी लिए ये पूजे जाते हैं । परमात्मा से ऐक्य की दिशा में यह विस्तार एक पग है ।इस शब्दावली में ही इसका रहस्य गर्भित है ।
अक्षर 'थ' जब जुड़ता है , तो अर्थ होता है 'स्थिर - स्थित' । सर्व भूतस्थ याने सभी जीवों में स्थिर रूप में स्थित । परमात्मा ही सर्व जीवों में स्थिर रूप से स्थित है । सभी जीव में परमात्मा को देखना यही सही तात्पर्य है ।
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