ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ५८
समं काय शिरोग्रीवम ... (अध्याय ६ - श्लोक १३)
ஸமம் காய ஶிரோக்ரீவம் ... (அத்யாயம் 6 - ஶ்லோகம் 13)
Samam Kaaya ShiroGreevam ... (Chapter 6 - Shloka 13)
अर्थ : काया (रीढ़) , गर्दन एवं सिर इन तीनों को एक सीध में रखना। ...
क्या शरीर की यह सहज स्थिति नहीं है ? क्या इसे सुझाने की आवश्यकता है ? मनुष्य संसारी विषयों में डूबता है , अत्यल्प विषयों में मन लगाता है , तो अपने सहज स्वभाव से , प्रकृति से हट जाता है । उसे अपनी निज प्रकृति स्मरण कराने की आवश्यकता रहती है ।
श्री कृष्ण द्वारा दी गयी यह सूचना एक शारीरिक स्थिति है , विशेषतः ध्यान अभ्यास करते समय । परन्तु साधारण समय में भी यह स्थिति लाभदायक है । काया (रीढ़) , गर्दन एवं सिर इन तीनों को एक सीध में रखना । ...
सर्व प्रथम हम यह देखें की काया , गर्दन और सिर सीधे न रहें तो परिणाम क्या होगा ? कूबड़ सहित काया (या रीढ़) , ढीले कंधे , गर्दन में फॅसा हुआ सर , ऐसी स्थिति के परिणाम क्या है ? शरीर का ऊपरी भाग का भार निचले भाग को दबाता है । परिणामतः भोजन पाचन व्यवस्था बाधित होती है । रीढ़ के निचले भाग में दर्द जन्मता है । तोंद विक्सित होता है । फेफड़े पर दबाव पड़ने के कारण श्वास प्रक्रिया बाधित होती है । श्वास अपूर्ण रहता है और शरीर की ऊर्जा कम हो जाती है । गर्दन इस शरीर का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । शरीर और सर (दिमाग) को जोड़ता सेतु है । दबाया गया गर्दन मेंदु के और होने वाला रक्त संचार को बाधित करता है । सूक्ष्म स्तर पर देखें तो झुकी हुई रीढ़ भय , आत्म विशवास की कमी , स्वयं के बारे में हीन भावना आदि दर्शाती है ।
आँखों में आँख डाल कर अन्यों से मिलने और बोलने का सुझाया दिया जाता है । वह आदत आत्म विशवास को बढ़ा देता है । बोले जा रहे शब्द को आदर दिलाता है । रीढ़ सीधी और सर ऊँचा रहे तो आपो आप सामने वाले के आँखों में आँख डालना सहज हो जाता है ।
सीधी रीढ़ , फूली छाती , उठे कंधे , सीधा गर्दन और ऊँचा सर यह स्थिति शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छी , मानसिक दृढ़ता के लिए अच्छी और आध्यात्मिक प्रयास के लिए भी उपयोगी । कुण्डलिनी शक्ति का जागरण और मूलाधार से (रीढ़ का निचला भाग) शिखर तक (सहस्राहार) का प्रवास के लिए अत्यावश्यक है वह स्थिति ।
चतुष्पाद प्राणियों के लिए यह शारीरिक सम स्थिति सहज है । द्वी पाद मनुष्य लिए अभ्यास की आवश्यकता है ।
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