ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ७४
ज्ञानी विशिष्यते । (अध्याय ७ - श्लोक १७) ज्ञानी तु आत्मैव । (अध्याय ७ - श्लोक १८)
க்ஞானி விஶிஷ்யதே ... க்ஞானி து ஆத்மைவ ... (அத்யாயம் 7 - ஶ்லோகம் 17 , 18)
Gyaani Vishishyate ... (Chapter 7 - Shloka 17) ... Gyaani Tu Aatmaiva ... (Chapter 7 - Shloka 18)
अर्थ : ज्ञानी विशेष है । ज्ञानी तो मेरा ही स्वरुप है ।
ज्ञानी विशेष है । उसे स्वयं के लिए कोई आवश्यकता नहीं है । उसका चिन्तन , वाक् और कर्म सभी श्री परमात्मा के लिए और उसकी सृष्टि के लिए । जो कुछ प्राप्त है , जैसे भी प्राप्त है , उसे श्री परमात्मा का प्रसाद रूप में स्वीकार कर सन्तुष्ट रहता है ।
भारत देश की दक्षिणी छोर केरल में कालडि इस ग्राम में जन्मे श्री आद्य शंकर नौ वर्ष का बालक था जब यह जाना की बौद्ध सम्प्रदाय के प्रभाव से देश भर नास्तिकता फैला हुआ है । उस प्रभाव को मिटाकर वैसिक धर्म की पुनःस्थापना करने का सङ्कल्प किया । हिन्दू धर्म में प्रचलित रीति के अनुसार सन्न्यास आश्रम का पर्व जीवन का अन्तिम पर्व है । "आज की परिस्थिति की आवश्यकता है । यह आपद्धर्म है ।" ऐसा कहकर गृहस्थ में प्रवेश किये बिना सन्न्यास लेने का सङ्कल्प किया बाल शङ्कर । माता की अनुमति प्राप्त करने 'मगरमच्छ नाटक' रचाया । बौद्ध मत प्रचारकों को वाद में हराकर , उस मतावलम्बी जनता को पुनः वैदिक धर्म में लाकर , बौद्ध विहारों में देव प्रतिमा स्थापना कर उन्हें आलय बनाते हुए बाल सन्न्यासी श्री शङ्कर भारत देश का भ्रमण किया । देवता स्वरूपों के नाम , नदियों के नाम पञ्चक , अष्टक रचाया । वेद , उपनिषद् , ब्रह्म सूत्र , श्रीमद्भगवद गीता , श्री विष्णु सहस्रनाम आदि पर भाष्य लिखा । देश के चारों दिशाओं में मठ स्थापना कर भारत देश में वैदिक धर्म पोषित रखने की व्यवस्था किया । देश में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाया । और ये सभी कार्य ३२ वर्ष की अल्पायु में पूर्ण किया युग पुरुष श्री शंकराचार्य ने । अपने अन्त काल में श्री काँची में आकर बेस और प्राण त्यागा ।
यवन राजा अलेक्सान्दर की सेना भारत के द्वार पर आक्रमण करते हुए काल में अपना कर्तव्य भूलकर मौज मस्ती में लगा हुआ मगध राजा नन्द के विरुद्ध संघर्ष में लगा चाणक्य । चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में अनेक राजकुमार और क्षत्रिय सेनाध्यक्षों को प्रशिक्षण दिलाकर , चन्द्रगुप्त को मगध सिंहासन पर बिठाकर , यवन सेना को हराकर , देश का स्वर्णिम काल ऐसा पहचाना जाने वाला गुप्त साम्राज्य की स्थापना करवाया । अर्थ शास्त्र लिखा । देश के वातावरण में तेजस्वी सुधार का सूत्रधारी महर्षी चाणक्य ने प्रधान मंत्री का दायित्व युक्त हाथ में सौंपकर आरण्य प्रवेश किया ।
"मेरा क्या है ! सब कुछ तेरा है ।" इस सिद्धांत पर जीने वाले श्री गुरु नानक । तलवार की नोक पर आम हिन्दुओ को मुसलमान बनाने का उग्र प्रयत्न में लगा मुग़ल राज्य के विरोध में खड़ा रहकर , अपने आप की आहुति चढाने वाले श्री गुरु तेग़ बहादुर । भयभीत हिन्दुओं में तेज जगाकर , देश के सीमा प्रदेशों में साहसी समुदाय खड़ा कराने का यशस्वी प्रयोग करने वाले श्री गुरु गोविन्द ।
भारत देश के मध्य भाग में इस्लामी शासन के अत्याचरों को देख , "धर्म राज्य की स्थापना , देवालय और आम हिन्दुओं का संरक्षण" का संकल्प किया आठ वर्ष का बालक । "मौन क्यूँ बैठा है ?" ऐसा पूछा जाने पर , "चिन्ता करितो विश्वाची - विश्व की चिन्तन कर रहा हूँ" ऐसा कहने वाला बालक । माता पिता द्वारा निश्चित किया गया विवाह के दिन , विवाह बन्धन में बंधे जाने के कुछ क्षण पूर्व मंटप से भाग निकल , आरण्य प्रवेश , बारह वर्ष की तपश्चर्या के पश्चात श्री समर्थ रामदास बनकर आये । ग्राम ग्राम में हनुमान मंदिर स्थापना कर , युवकों को शारीरिक अभ्यास की प्रेरणा देकर हिन्दू साम्राज्य के लिए आधार खड़ा किया । सम काल में अनेक संत साधू का वास रहा । श्री नामदेव , श्री एकनाथ , संत ज्ञानेश्वर , संत तुकाराम , कबीर दास आदि ...
अराजक इस्लाम को रोकने वाला दुर्ग बना विजयनगर साम्राज्य के प्रेरक संत श्री विद्यारण्य । आम जनता को भक्ति और धर्म मय जीवन जीने की प्रेरणा देने वाले आळ्वार और नायन्मार । अपने चौदहवी आयु में परम ज्ञान प्राप्त कर , तिरुवन्नामलाई की गुफा में पूर्ण जीवन बिताने वाले कौपीन वस्त्र धारी रमण महर्षी । काली मंदिर के पुजारी , परन्तु काली प्रतिमा को जगन्माता की चैतन्य स्वरुप मानकर आराधना करने वाला संत , बचपन में पत्नी बनायी गयी शारदा देवी को जगन्माता स्वरुप में देखकर सन्न्यस्त जीवन जीने वाले युग अवतार श्री रामकृष्ण परमहंस ।
गत शताब्दी में जन्मे अनेकानेक संत ... श्री रामा तीर्थ , श्री दयानन्द , श्री शिरडी बाबा , श्री काँची परमाचार्य , Dr हेडगेवार , श्री गुरूजी गोलवलकर , श्री राम सुख दास , स्वामि विवेकानन्द आदि आदि ...
सहस्रों वर्ष से पुण्य भूमि भारत में प्रत्येक प्रदेश में जन्मे सहस्रों साधू संत , आज भी ग्राम ग्राम में शांत निस्पृह और प्रेरक जीवन जीते हुए साधारण जन को ज्ञान मय , धार्मिक जीवन की प्रेरणा देनेवाले अनेकानेक साधू पुरुष ।
उसपर पूर्ण श्रद्धा रखकर , उस के विषय में स्नेह प्रेम पोषित कर , अपने दुःख , मानसिक और शारीरिक कष्ट , अपने आशा निराशा को उस के पास न ले जाकर , केवल उसके लिए , उसकी सृष्टि के लिए ही अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाला साधू - ज्ञानी हमारे लिए विशेष है । "ये तो मेरे लिए भी विशेष हैं " कह रहे हैं कृष्ण । एक कदम आगे बढ़कर श्री कृष्ण कहते हैं की "ये तो मेरे ही स्वरुप हैं ।"
यह हमारा भाग्य है की हम उस पुण्य भूमि भारत की मिटटी पर जन्मे हैं , जिसने परमात्मा के स्वरुप इन सहस्रों साधुओं के पग छुआ है । इन महात्मा साधुओं की जीवनी पढ़ सुनकर जानने वाले और प्रेरक इन जीवन गाथाओं को सुनाने वाले भाग्यशाली हैं । ज्ञानियों का सत्संग , ज्ञान संवाद , ज्ञान श्रवण , ज्ञान पाने का मुमुक्षत्व - ये सभी परम भाग्य के विषय हैं ।भारत देश की दक्षिणी छोर केरल में कालडि इस ग्राम में जन्मे श्री आद्य शंकर नौ वर्ष का बालक था जब यह जाना की बौद्ध सम्प्रदाय के प्रभाव से देश भर नास्तिकता फैला हुआ है । उस प्रभाव को मिटाकर वैसिक धर्म की पुनःस्थापना करने का सङ्कल्प किया । हिन्दू धर्म में प्रचलित रीति के अनुसार सन्न्यास आश्रम का पर्व जीवन का अन्तिम पर्व है । "आज की परिस्थिति की आवश्यकता है । यह आपद्धर्म है ।" ऐसा कहकर गृहस्थ में प्रवेश किये बिना सन्न्यास लेने का सङ्कल्प किया बाल शङ्कर । माता की अनुमति प्राप्त करने 'मगरमच्छ नाटक' रचाया । बौद्ध मत प्रचारकों को वाद में हराकर , उस मतावलम्बी जनता को पुनः वैदिक धर्म में लाकर , बौद्ध विहारों में देव प्रतिमा स्थापना कर उन्हें आलय बनाते हुए बाल सन्न्यासी श्री शङ्कर भारत देश का भ्रमण किया । देवता स्वरूपों के नाम , नदियों के नाम पञ्चक , अष्टक रचाया । वेद , उपनिषद् , ब्रह्म सूत्र , श्रीमद्भगवद गीता , श्री विष्णु सहस्रनाम आदि पर भाष्य लिखा । देश के चारों दिशाओं में मठ स्थापना कर भारत देश में वैदिक धर्म पोषित रखने की व्यवस्था किया । देश में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाया । और ये सभी कार्य ३२ वर्ष की अल्पायु में पूर्ण किया युग पुरुष श्री शंकराचार्य ने । अपने अन्त काल में श्री काँची में आकर बेस और प्राण त्यागा ।
यवन राजा अलेक्सान्दर की सेना भारत के द्वार पर आक्रमण करते हुए काल में अपना कर्तव्य भूलकर मौज मस्ती में लगा हुआ मगध राजा नन्द के विरुद्ध संघर्ष में लगा चाणक्य । चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में अनेक राजकुमार और क्षत्रिय सेनाध्यक्षों को प्रशिक्षण दिलाकर , चन्द्रगुप्त को मगध सिंहासन पर बिठाकर , यवन सेना को हराकर , देश का स्वर्णिम काल ऐसा पहचाना जाने वाला गुप्त साम्राज्य की स्थापना करवाया । अर्थ शास्त्र लिखा । देश के वातावरण में तेजस्वी सुधार का सूत्रधारी महर्षी चाणक्य ने प्रधान मंत्री का दायित्व युक्त हाथ में सौंपकर आरण्य प्रवेश किया ।
"मेरा क्या है ! सब कुछ तेरा है ।" इस सिद्धांत पर जीने वाले श्री गुरु नानक । तलवार की नोक पर आम हिन्दुओ को मुसलमान बनाने का उग्र प्रयत्न में लगा मुग़ल राज्य के विरोध में खड़ा रहकर , अपने आप की आहुति चढाने वाले श्री गुरु तेग़ बहादुर । भयभीत हिन्दुओं में तेज जगाकर , देश के सीमा प्रदेशों में साहसी समुदाय खड़ा कराने का यशस्वी प्रयोग करने वाले श्री गुरु गोविन्द ।
भारत देश के मध्य भाग में इस्लामी शासन के अत्याचरों को देख , "धर्म राज्य की स्थापना , देवालय और आम हिन्दुओं का संरक्षण" का संकल्प किया आठ वर्ष का बालक । "मौन क्यूँ बैठा है ?" ऐसा पूछा जाने पर , "चिन्ता करितो विश्वाची - विश्व की चिन्तन कर रहा हूँ" ऐसा कहने वाला बालक । माता पिता द्वारा निश्चित किया गया विवाह के दिन , विवाह बन्धन में बंधे जाने के कुछ क्षण पूर्व मंटप से भाग निकल , आरण्य प्रवेश , बारह वर्ष की तपश्चर्या के पश्चात श्री समर्थ रामदास बनकर आये । ग्राम ग्राम में हनुमान मंदिर स्थापना कर , युवकों को शारीरिक अभ्यास की प्रेरणा देकर हिन्दू साम्राज्य के लिए आधार खड़ा किया । सम काल में अनेक संत साधू का वास रहा । श्री नामदेव , श्री एकनाथ , संत ज्ञानेश्वर , संत तुकाराम , कबीर दास आदि ...
अराजक इस्लाम को रोकने वाला दुर्ग बना विजयनगर साम्राज्य के प्रेरक संत श्री विद्यारण्य । आम जनता को भक्ति और धर्म मय जीवन जीने की प्रेरणा देने वाले आळ्वार और नायन्मार । अपने चौदहवी आयु में परम ज्ञान प्राप्त कर , तिरुवन्नामलाई की गुफा में पूर्ण जीवन बिताने वाले कौपीन वस्त्र धारी रमण महर्षी । काली मंदिर के पुजारी , परन्तु काली प्रतिमा को जगन्माता की चैतन्य स्वरुप मानकर आराधना करने वाला संत , बचपन में पत्नी बनायी गयी शारदा देवी को जगन्माता स्वरुप में देखकर सन्न्यस्त जीवन जीने वाले युग अवतार श्री रामकृष्ण परमहंस ।
गत शताब्दी में जन्मे अनेकानेक संत ... श्री रामा तीर्थ , श्री दयानन्द , श्री शिरडी बाबा , श्री काँची परमाचार्य , Dr हेडगेवार , श्री गुरूजी गोलवलकर , श्री राम सुख दास , स्वामि विवेकानन्द आदि आदि ...
सहस्रों वर्ष से पुण्य भूमि भारत में प्रत्येक प्रदेश में जन्मे सहस्रों साधू संत , आज भी ग्राम ग्राम में शांत निस्पृह और प्रेरक जीवन जीते हुए साधारण जन को ज्ञान मय , धार्मिक जीवन की प्रेरणा देनेवाले अनेकानेक साधू पुरुष ।
उसपर पूर्ण श्रद्धा रखकर , उस के विषय में स्नेह प्रेम पोषित कर , अपने दुःख , मानसिक और शारीरिक कष्ट , अपने आशा निराशा को उस के पास न ले जाकर , केवल उसके लिए , उसकी सृष्टि के लिए ही अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाला साधू - ज्ञानी हमारे लिए विशेष है । "ये तो मेरे लिए भी विशेष हैं " कह रहे हैं कृष्ण । एक कदम आगे बढ़कर श्री कृष्ण कहते हैं की "ये तो मेरे ही स्वरुप हैं ।"
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