ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ७६
वासुदेवः सर्वम् । (अध्याय ७ - श्लोक १९)
வாஸுதேவஹ ஸர்வம் ... (அத்யாயம் 7 - ஶ்லோகம் 19)
Vaasudevah Sarvam ... (Chapter 7 - Shloka 19)
अर्थ : सब कुछ श्री वासुदेव ही है ।
इस शब्दावली के सन्दर्भ में तीन विषयों को समझना होगा ।
एक ... सृष्टि में सब कुछ श्री वासुदेव है ... अति सूक्ष्म से महत तक ... अणु से ब्रह्माण्ड तक ... सभी जीव जन्तु में ... कण कण में श्री वासुदेव ... तो बुरे , नीच , घोर , भयंकर , नाशक ऐसे जिन्हें हम मानते हैं , उन विषयों में भी ? हाँ । इन में भी श्री वासुदेव हैं । अरब में जन्मे ख्रिस्ती और इस्लाम पंथ के अनुसार ये सब शैतान या Devil के कार्य हैं । उसे भी श्री भगवान के सम शक्ति प्राप्त है । शैतान के क्षेत्र में श्री परमात्म निःशक्त हो जाते हैं । अपने हिन्दू धर्म के सिद्धान्त में श्री परमात्मा ही सर्व शक्तिशाली है । अन्य कोई नहीं । अंड चराचर में बस वह एक ही है । उसी का ऐश्वर्य है ।
एक ... सृष्टि में सब कुछ श्री वासुदेव है ... अति सूक्ष्म से महत तक ... अणु से ब्रह्माण्ड तक ... सभी जीव जन्तु में ... कण कण में श्री वासुदेव ... तो बुरे , नीच , घोर , भयंकर , नाशक ऐसे जिन्हें हम मानते हैं , उन विषयों में भी ? हाँ । इन में भी श्री वासुदेव हैं । अरब में जन्मे ख्रिस्ती और इस्लाम पंथ के अनुसार ये सब शैतान या Devil के कार्य हैं । उसे भी श्री भगवान के सम शक्ति प्राप्त है । शैतान के क्षेत्र में श्री परमात्म निःशक्त हो जाते हैं । अपने हिन्दू धर्म के सिद्धान्त में श्री परमात्मा ही सर्व शक्तिशाली है । अन्य कोई नहीं । अंड चराचर में बस वह एक ही है । उसी का ऐश्वर्य है ।
दो ... प्रकृति में सब कुछ मरते हैं । मिटते हैं । यदी सब कुछ वही है तो , श्री परमात्मा भी मर मिटनेवाला ही है ? ना । सृष्टि उसी का प्रकट स्वरुप है । स्वयं प्रकट होना चाहा और इस प्रकृति के स्वरुप में प्रकट हुआ । सृष्टि में सब कुछ उसी से पोषित होते हैं । उसी से चर विचरते हैं । अन्त में मर मिट्टी भी उसी से हैं । सृजन के पूर्व भी वह था । सृष्टि में प्रत्येक कण में चैतन्य स्वरूप में वह है । इन सभी के लय के पश्चात भी वह रहेगा । वह एकमेव सत है । याने अस्तित्व केवल उसी की है । हम सब न रहते हुए भी रहते हुए दिखते हैं तो केवल उसी की माया से । है तो केवल वही ।
तीन ... वासुदेवः सर्वं ... कहने वाला वासुदेव स्वयं । ये शब्द ख्रिस्ती सम्प्रदाय की घोषणा "Jesus is the only God" जैसे तो नहीं ??? इस्लामी घोषणा "अल्लाह एक ही । उसके अलावा अन्य कोई नहीं" जैसे तो नहीं । देवकी - वसुदेव के पुत्र , यशोदा - नन्द से पालित , बंसीधर , चक्रधर , कंस चाणूरादि का वध करने वाला , कुरुक्षेत्र युद्ध में जिसने अर्जुन का सारथ्य किया , वह श्री कृष्ण ही एक मात्र पूज्य है । अन्य कोई नहीं । ऐसा अर्थ प्रकट करने वाले शब्द प्रतीत होते हैं । इसमें कोई सन्देह नहीं की श्री कृष्ण पूजा - अर्चना के पात्र हैं । परन्तु जो देह लेकर आया , मनुष्य जीवन जिया और एक दिन अंतर्धान हुआ , वही एकमात्र पूजनीय है ऐसा कहना क्या परम सत्य अद्वैत सिद्धान्त के विरुद्ध नहीं ? परम तत्त्व एकमेव है । यह सत्य है । श्री कृष्ण ही एकमेव है ... यह कैसा ? श्री कृष्ण उस परम तत्त्व का प्रकट स्वरुप हैं । "श्री परमात्मा का अंश हूँ" इस ज्ञान की अनुभूति उन्हें थी । ऐसी ही अवस्था में उनसे गीता प्रकट हुई । श्री कृष्णा जब जब मैं या वासुदेव कहते हैं तब उसी नित्य , निराकार , निर्विकार , निर्गुण , सत्य श्री परमात्मा का ही निर्देश करते हैं । यहाँ मूर्ति पूजन नहीं , ब्रह्म तत्त्व की आराधना ही सूचित है , यह समझने का विषय है ।
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