ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ७७
गीता की कुछ शब्दावली - ७७
महात्मा सुदुर्लभः । (अध्याय ७ - श्लोक १९)
மஹாத்மா ஸுதுர்லபஹ ... (அத்யாயம் 7 - ஶ்லோகம் 19)
Mahaatmaa Sudurlabhah ... (Chapter 7 - Shloka 19)
Mahaatmaa Sudurlabhah ... (Chapter 7 - Shloka 19)
अर्थ : महात्मा दुर्लभ हैं ।
भूमि में कोयला खदान कितने हैं ? उनमे भरा पड़ा कोयला कितना है ? हीरों के खदान कितने और उनमे लदे हीरे कितने ? हीरा तो कोयला का ही उन्नत स्वरुप है । हीरे दुर्लभ हैं । कोयला बहुत होते हुए भी , हीरा जो कोयले का ही प्रगत स्वरुप है , दुर्लभ है । कोयले के सभी टुकड़े हीरे बनते नहीं । कोयला कठोर तपश्चर्या के परिणामतः हीरा में परिवर्तित होता है ।
समुद्र में सीप तो बहुत है । परन्तु मोती को पालने वाले सींप दुर्लभ हैं । ऐसा मानते हैं की सिंप समुद्र जलमे तैरता है और आकाश से गिरता हुआ एक बूँद जल को अपने अंदर लेता है और समुद्र की गहराई में वर्षानुवर्ष पड़ा रहता है । कई वर्षों की तपश्चर्या के फलस्वरूप पानी का वह बूँद मोती में परिवर्तित होता है । मोती दुर्लभ है । बहुत अधिक संख्या में सिंप होते हुए भी , चारों ओर जल ही जल होते हुए भी मोती दुर्लभ है । सभी सिंप मोती पालने में सक्षम नहीं । जल के सभी बूँद संस्कारित होकर मोती में परिवर्तित होने में भी अक्षम हैं ।
मनुष्य में संस्कारित , प्रगत अवतार ही महात्मा है । महात्मा कठोर तपश्चर्या का परिणाम है । कई जन्मों तक चलने वाली तपश्चर्या है यह । प्रारंभ में मन में एक आशा खिलती है । विधि बद्ध और नियमित अभ्यास यह दूसरा कदम है । ये प्रयत्न कालान्तर में स्वभाव बनकर स्थिर होते हैं । काल चक्र में आकर्षणों से बचकर , अड़चनों को पार कर , यह स्वभाव महात्मा बनकर निखरता है ।
क्या सभी मनुष्य महात्मा बन सकते हैं ? सत्य युग में यह सम्भव था ऐसे सुनते हैं । समाज में वातावरण , अपने आँखों के सामने विचरते हुए महात्माओं के जीवित उदाहरण इस दिशा में महत्वपूर्ण हैं । आज का संसार आकर्षणों से भरा है । अपने आस पास मनुष्यों की आकांक्षा , चेष्टा भी बहिर्मुखी है , संसार की ओर है , सूख भोग के तलाश में हैं । बाहरी विषयों के बारे में जीतनी चिन्ता है , उतनी आतंरिक विषयों का नहीं । श्री रामकृष्ण मठ , माता अमृतानंद मयी जैसे आश्रम द्वारा संचालित हजारों विद्यालयों में पढ़ने वाले लाखों विद्यार्थी में से एक के मन में , महात्मा बनना तो दूर , सन्न्यासी बनने की इच्छा भी स्फुरित होती नहीं ऐसे उन आश्रमों से सम्बंधित प्रमुख अधिकारियों का कहना है । बाहरी सज्जा , बाहरी ढांचा प्रेरक होते नहीं ।
श्री कृष्ण यहाँ एक सत्य वचन कह रहे हैं । इस वचन में शोक भाव नहीं , विरक्त भाव नहीं । बस एक सत्य वचन मात्र है । It is just a factual statement . महात्मा दुर्लभ है ।
भूमि में कोयला खदान कितने हैं ? उनमे भरा पड़ा कोयला कितना है ? हीरों के खदान कितने और उनमे लदे हीरे कितने ? हीरा तो कोयला का ही उन्नत स्वरुप है । हीरे दुर्लभ हैं । कोयला बहुत होते हुए भी , हीरा जो कोयले का ही प्रगत स्वरुप है , दुर्लभ है । कोयले के सभी टुकड़े हीरे बनते नहीं । कोयला कठोर तपश्चर्या के परिणामतः हीरा में परिवर्तित होता है ।
समुद्र में सीप तो बहुत है । परन्तु मोती को पालने वाले सींप दुर्लभ हैं । ऐसा मानते हैं की सिंप समुद्र जलमे तैरता है और आकाश से गिरता हुआ एक बूँद जल को अपने अंदर लेता है और समुद्र की गहराई में वर्षानुवर्ष पड़ा रहता है । कई वर्षों की तपश्चर्या के फलस्वरूप पानी का वह बूँद मोती में परिवर्तित होता है । मोती दुर्लभ है । बहुत अधिक संख्या में सिंप होते हुए भी , चारों ओर जल ही जल होते हुए भी मोती दुर्लभ है । सभी सिंप मोती पालने में सक्षम नहीं । जल के सभी बूँद संस्कारित होकर मोती में परिवर्तित होने में भी अक्षम हैं ।
मनुष्य में संस्कारित , प्रगत अवतार ही महात्मा है । महात्मा कठोर तपश्चर्या का परिणाम है । कई जन्मों तक चलने वाली तपश्चर्या है यह । प्रारंभ में मन में एक आशा खिलती है । विधि बद्ध और नियमित अभ्यास यह दूसरा कदम है । ये प्रयत्न कालान्तर में स्वभाव बनकर स्थिर होते हैं । काल चक्र में आकर्षणों से बचकर , अड़चनों को पार कर , यह स्वभाव महात्मा बनकर निखरता है ।
क्या सभी मनुष्य महात्मा बन सकते हैं ? सत्य युग में यह सम्भव था ऐसे सुनते हैं । समाज में वातावरण , अपने आँखों के सामने विचरते हुए महात्माओं के जीवित उदाहरण इस दिशा में महत्वपूर्ण हैं । आज का संसार आकर्षणों से भरा है । अपने आस पास मनुष्यों की आकांक्षा , चेष्टा भी बहिर्मुखी है , संसार की ओर है , सूख भोग के तलाश में हैं । बाहरी विषयों के बारे में जीतनी चिन्ता है , उतनी आतंरिक विषयों का नहीं । श्री रामकृष्ण मठ , माता अमृतानंद मयी जैसे आश्रम द्वारा संचालित हजारों विद्यालयों में पढ़ने वाले लाखों विद्यार्थी में से एक के मन में , महात्मा बनना तो दूर , सन्न्यासी बनने की इच्छा भी स्फुरित होती नहीं ऐसे उन आश्रमों से सम्बंधित प्रमुख अधिकारियों का कहना है । बाहरी सज्जा , बाहरी ढांचा प्रेरक होते नहीं ।
श्री कृष्ण यहाँ एक सत्य वचन कह रहे हैं । इस वचन में शोक भाव नहीं , विरक्त भाव नहीं । बस एक सत्य वचन मात्र है । It is just a factual statement . महात्मा दुर्लभ है ।
Comments
Post a Comment