ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ७१
बलं बलवताम् चाहम् कामराग विवर्जितम् । (अध्याय ७ - श्लोक ११)
பலம் பலவதாம் சாஹம் காம ராக விவர்ஜிதம் ... (அத்யாயம் 7 - ஶ்லோகம் 11)
Balam Balavataam Chaaham Kaama Raaga Vivarjitham ... (Chapter 7 - Shloka 11)
काम और राग के बिना जो बल है , वह मैं ही हूँ ।
बलवानों में बल मैं हूँ , श्री कृष्ण कह रहे हैं । बल परन्तु काम - राग के बिना । राक्षसों का बल नहीं । रावण का बल नहीं । माइक टाइसन का बल नहीं । मार्केट में हफ़्ता वसूल करने वाला गुंडे का बल नहीं । रेग्गिंग इस नाम से नये विद्यार्थी पर कठोर और अपमान जनक हिंसा करने वाले मेडिकल और इंजिनीरिंग छात्रों का बल नहीं । मुस्लिम आतंकी के हाथ बसे बन्दूक और बम्ब का बल नहीं । असहाय , अबला नारी अत्याचार और बलात्कार करने वाला पुरुष का बल नहीं । राज सत्ता का आतंक दिखाकर गरीब जनों से वसूली करने वाला कंस का बल नहीं । अपने स्वार्थ के लिए , सूखा भोग के लालसा में जनों पर अत्याचार करने वाला तानाशाही शासक का बल नहीं ।
श्री कृष्ण के वचन को ठीक समझे हम । इस वाक्य का पूर्वार्ध को पढ़कर अर्धवट समझ लें तो हानी होगी । ये ही व्यक्ति , 'दिल्लीश्वरो वा जगदीश्वरो वा' ऐसा कह सकता है । ये ही व्यक्ति १८५७ में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में किसी हिन्दू राजा को अपना नेता न चुनकर , अधर्म , क्रूरता और तानाशाही के प्रतीक मुग़ल शासकों का वारिस ज़फर शाह को अपना नेता चुनकर , उसके नेतृत्व में एक धर्म युद्ध लढने का प्रयत्न किया जिसे असफल होना ही था और हुआ । ये ही हैं वे जो चम्बल डाकू , चंदन तस्कर वीरप्पन , आदि को सराहते हैं यह कहकर की वे भी काली के पूजक हैं और गरीबों की सहायता करते हैं । या ही वे लोग हैं जो तानाशाही इमरजेंसी पर्व को भी स्वीकारते और श्रीमती इंदिरा फ़िरोज़ खान की प्रशंसा करते हुए कहते की देश में समय बद्धता और अनुशासन लागू हुआ ।
गीता में अन्य स्थान पर श्री कृष्ण ने घोषणा किया की , "नराणाम नराधिप । नरों में मैं राजा हूँ ।" इसमें सन्देह नहीं की राजा द्वारा विदित नियम का पालन प्रजा को करना है । परन्तु , अधर्मी , स्वार्थी , अत्याचारी राजा विरोध का पात्र है । मिटाया जाना चाहिए । रावण तो जलाया जाना चाहिए । वह वेद पाठ किया हुआ ब्राह्मण है और दैवी संगीत का उपासक हुआ तो क्या ? काम में लिप्त उसका बल है ।
इस शब्दावली द्वारा श्री कृष्ण बल के लिए एक हेतु प्रस्तुत कर रहे हैं । बल संचय में लगे साधकों को एक दिशा दे रहे हैं । बल का संचय करो । बल की उपासना करो । क्यों ? धर्म रक्षण के लिए । बलहीनों की रक्षण के लिए । अधर्म के विरुद्ध युद्ध के लिए । अत्याचारी और अन्यायी के नाश के लिए । संयम के अभाव में बल , स्वार्थी का बल , काम - राग युक्त बल राक्षसी है । संयम और शील युक्त बल , धर्म रक्षण में लगा बल , बलहीन की रक्षा में लगा बल , (गो - ब्राह्मण परिपालन , यही राजा का प्रधान कर्तव्य कहा गया है ।) अधर्म के विरुद्ध प्रयोग होता बल , यह दैवी है । ना । परमात्मा का ही स्वरुप है ।
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