Skip to main content

गीता की कुछ शब्दावली - ९१


गीता की कुछ शब्दावली - ९१


सहस्र युग पर्यन्तम् अहर्यद्ब्रह्मणः  ।  (अध्याय ८ - श्लोक १७)
ஸஹஸ்ர யுக பர்யந்தம் அஹர்யத்ப்ரஹ்மணஹ ...  (அத்யாயம் 8 - ஶ்லோகம் 17)
Sahasra Yuga Paryantham Aharyad Brahmanah ...  (Chapter 8 - Shloka 17)

अर्थ :  ब्रह्मा का दिन हमारे एक सहस्र युग और ब्रह्मा की एक रात्री एक सहस्र युग लम्बी है ।

श्री कृष्ण का यह उद्घोष से काल के विषय में हिन्दुओं का ज्ञान उजागर होता है ।  वैदिक काल में भी हिन्दू इस विषय में विस्तृत ज्ञान रखता था ।

हिन्दुओं की काल गणना पद्धति नीचे दी जा रही ।  गीता के चौथे अध्याय में यह विस्तार से चर्चित है ।  आज चर्चित विषय के सन्दर्भ में यह उपयुक्त है ।

हिन्दू काल गणना में सब से छोटा है 'त्रुटि’ और सब से लंबा है ‘कल्प ।'
१०० त्रुटि                          =                 १ तत्पर
६० तत्पर                          =                १ पर
६० पर                              =                १ विलिप्त
६० विलिप्त                       =                १ लिप्त
६० लिप्त                          =                 १ विनाड़ी
६० विनाड़ी                       =                 १ नाड़ी
६० नाड़ी                           =                 १ दिन  (२४ घण्टे)
(३० नाड़ी दिन के और ३० रात्री के)

७ दिन                              =                 १ सप्ताह
                                                           (सप्ताह रवि वार से प्रारम्भ होता है , सोम से नहीं)

अमावस्य के बाद प्रथम दिन प्रथमा से अगली अमावास्या तक (या पूर्णिमा के बाद प्रथमा से पूर्णिमा तक) एक मास होता ।  अर्ध मास एक पक्ष ।  दो पक्ष हैं ।  कृष्ण पक्ष पूर्णिमा से अमावास्या तक और शुक्ल पक्ष अमावास्या से पूर्णिमा तक ।

चैत्र , वैशाख , ज्येष्ठ , आषाढ़ , श्रावण , भाद्रपद , आश्विन , कार्तिक , मार्गशीर्ष , पुष्य , माघ , फाल्गुन , ये चान्द्रमान वर्ष के मास हैं ।  ये मास सौर मास से लगभग एक दिन छोटे हैं ।  इसलिए तीन वर्ष में एक बार , एक अधिक मास जोड़ा जाता है ।  हिन्दू ऋषियों की सूक्ष्म दृष्टी इस में प्रकट होती है ।

संक्रान्त से संक्रान्त यह सौर मास है ।  (लगभग ३० दिन) .

भूमि के सूर्य केन्द्रित वर्तुळाकार भ्रमण पथ के बारह (कोण) भाग किया जाय , तो प्रत्येक कोण एक सौर मास है ।  सूर्य अपने स्थान में स्थिर है ।  परन्तु , भूमि को केंद्र मानकर सूर्य का प्रतीत रेखाकार चलन मार्ग के बारह भाग करना , काल गणना के लिए आसान है ।  बारह सौर मास राशियों के ही नाम से हैं ।  मेष , ऋषभ , मिथुन , कटक , सिहँ , कन्या , तुला , वृश्चिक , धनुर , मकर , कुम्भ और मीन , ये सौर मास हैं ।  सूर्य जब एक एक राशि (भाग) में प्रवेश करता है , तब मास का प्रारम्भ होता है ।  यही संक्रान्त कहलाता है ।  वर्ष का प्रारम्भ मेष संक्रान्त से होता है ।  मकर संक्रान्त जन मानस में अधिक परिचित है ।

वर्ष के दो अयन हैं ।  कटक संक्रान्त से मकर संक्रान्त यह अर्ध वर्ष दक्षिणायन और मकर संक्रान्त से कर्क संक्रान्त यह उत्तरायण है ।  (भूमि से देखी जा रही दृश्य में सूर्य का उत्तर - दक्षिण मार्ग के आधार पर ये अयनों की गणना है ।)

काल का अगला अलख युग है ।  चार युग हैं ।  सत्य युग (कृत युग) के १७ , २८ , ००० वर्ष हैं ।  त्रेता युग के १२ , ९६ , ००० वर्ष हैं ।  द्वापर युग में ८ , ६४ , ००० वर्ष और कलि युग में ४ , ३२ , ००० वर्ष हैं ।  चारों युग मिलकर एक चतुर युग , ४३ , २० , ००० वर्ष का होता है ।

४३ , २० , ००० वर्ष                      =                 १ चतुर युग
७१ चतुर युग                               =                १ मन्वन्तर
१४ मन्वन्तर                                =                 १ कल्प
१ कल्प                                       =                 ब्रह्मा के जीवन का अर्ध दिवस (दिन या रात्री)
७२० कल्प                                  =                 ब्रह्मा का एक वर्ष
१०० ब्रह्म वर्ष                               =                 १ महाकल्प (प्रलय काल )
(३११ , ०४० , ००० , ००० , ००० वर्ष )
(एक ब्रह्मा का अन्त और नए ब्रह्मा का अरम्भ)

काल यह अद्भुत है ।  काल की जानकारी हमें परमात्मन को जानने प्रवृत्त कर सकती है ।  अपना जीवन काल यह छोटा है ।  काल के पूर्ण परिवेश में अति क्षुद्र है ।  काल यह अनादि और अनन्त है ।  काल भी दैवी माना जाता है ।  यमराज काल देव हैं ।  शिव अकाल हैं , काल की भी बंधन से भी परे हैं ।  (ख्रिस्ती पंथ में मतान्तरण हेतु भयभीत करने , फैलाये जाने वाली "आने वाले दिनांक २३ को संसार मिटने वाला है" , जैसी 'किम वदन्तियाँ' अज्ञान मयि है ।  हास्यास्पद है ।)

काल अधिष्ठान है ।  अन्य किसी पर निर्भर नहीं ।  उसी समय , यह देश , जन , परिस्थिति , मानसिक स्थिति सापेक्ष भी ।  किसी के लिए लम्बा लगने वाला काल अन्य किसी के लिए बहुत छोटा हो सकता है ।  एक स्थान पर काल तेज प्रवाहित और अन्य स्थान में धीमे चलने वाला लग सकता है ।  बुध गृह पर दिन तेजी से और शनि गृह पर बहुत धीमा कटेगा ।  मन उत्साह से किसे कार्य में मग्न हो तो काल छोटा लगता है ।  मन उदास हो तो काल बहुत लम्बा लगेगा ।  स्मृति और स्वप्न के संसार में कुछ ही क्षणों में कई वर्ष बीत जाते हैं ।

एक कीट अपने कुछ दिनों के जीवन काल में पूर्ण जीवन , जन्म लेकर , भोजन कमाकर , स्त्री जात से मिलकर , अगली पीढ़ी उत्पन्न कर , मर जाता है ।  मनुष्य ६० , ७० वर्षों में जो कर जाता है , प्राणियाँ कुछ वर्षों के अपने जीवन काल में कर जाते हैं ।

देव लोक में एक दिन या एक रात्री पितृ लोक में एक पक्ष और मनुष्य लोक में एक अयन होता है ।  हमारा उत्तरायण पितृ लोक में शुक्ल पक्ष है और देव लोक में दिन ।  हमारा दक्षिणायन पितृ लोक में कृष्ण पक्ष और देव लोक में रात्री है ।  हमारे लाखों वर्ष ब्रह्म लोक में केवल एक दिन है ।

Comments

Popular posts from this blog

ஜ, ஷ, ஸ, ஹ, க்ஷ, ஸ்ரீ ....

ॐ ஜ , ஷ , ஸ , ஹ , ஶ , க்ஷ , ஸ்ரீ என்ற எழுத்துக்களை வடமொழி எழுத்துக்கள் என்கிறான் ஒருவன். ஸம்ஸ்க்ருத எழுத்து என்கிறான் ஒருவன் . மூடர்கள் .  அறியாமையில் பேசுகின்றனர் . தவறான நோக்கத்துடன், நம்முள் பேதத்தை ஏற்படுத்திட எவனோ புதைத்துச் சென்ற விஷத்தை , அது விஷம் என்று கூட அறியாமல் பேசுகின்றனர் . வட என்பது திஶை . திஶைக்கு மொழி கிடையாது . (இசைக்கும் மொழி கிடையாது . கவிதைக்குதான் மொழி . தமிழிசை மன்றம் என்பதெல்லாம் அபத்தம் .) தமிழகத்திற்கு வடக்கில் பாரத தேஶத்தின் அத்தனை ப்ராந்தங்களும் (கேரளம் தவிர்த்து) உள்ளன . தெலுங்கு , மராடீ , போஜ்புரி , குஜராதீ ... அனைத்து மொழிகளும் வட திஶையில் பேசப்படும் மொழிகள் .  இவை எல்லாம் வடமொழிகள் . (கன்யாகுமரி ஆளுக்கு சென்னை பாஷை கூட வடமொழிதான்) . இந்த எல்லா மொழிகளிலும் இந்த ஶப்தங்களுக்கு எழுத்துக்கள் உண்டு .   தெலுங்கில் జ  , స  , హ .. . என்றும் ,   கன்னடத்தில்   ಜ , ಸ , ಹ , ಕ್ಷ .. என்றும் , மராடீயில் . ज , स , ह , श , क्ष,.. என்றும் குஜராதியில்     જ , સ , હા , ક્ષ  , என்றும் ,   ப...

கீதையில் சில சொற்றொடர்கள் - 31

ॐ கீதையில் சில சொற்றொடர்கள் - 31 चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुण कर्म विभागशः  ... (अध्याय ४ - श्लोक १३) சாதுர்வர்ண்யம் மயா ஸ்ருஷ்டம் குண கர்ம விபாகஶஹ்  ...  (அத்யாயம் 4 - ஶ்லோகம் 13) Chatur VarNyam Mayaa Srushtam GuNa Karma Vibhaagashah ... (Chapter 4 - Shlokam 13) அர்தம் :   சாதுர் வர்ண்யம் மயா ஸ்ருஷ்டம்... குண கர்ம விபாகஶ :   குணம் மற்றும் கர்மங்களின் அடிப்படையில் நான்கு வர்ணங்கள் என்னலே படைக்கப் பட்டது. சாதுர் வர்ண்யம் மயா ஸ்ருஷ்டம்... குண கர்ம விபாகஶ :  சதுர் வர்ணங்களை, நான்கு வர்ணங்களை நான்தான் ஸ்ருஷ்டித்தேன், என்கிறார் ஸ்ரீ க்ருஷ்ணன்.  இதில் என்ன ஆஶ்சர்யம் ??  ப்ரக்ருதியில் உள்ள அனைத்துமே அவர் படைத்தவை என்னும்போது, சதுர் வர்ணங்களையும் அவர்தானே படைத்திருக்க வேண்டும் ??  கீதையின் இந்த வாக்யம் நாஸ்திகவாதிகள், கம்யூனிஸ்ட்கள், கடவுள் மறுப்பு இயக்கத்தினர் என்று கடவுளை ஏற்காதவர்களையும் நெளிய வைக்கிறது.  கடவுளே படைத்திருக்கிறார் என்றால் அதை அழித்தொழிக்க முடியாது என்று கருதுகிறார்களா ??  இவர்கள் அனைவரும் ஜாதி அம...

Chapter IV (1 - 20)

\   ADHYAAY IV   GYANA KARMA SANYASA YOGAM Introduction This chapter named ‘Gnyana Karma Sanyasa Yog’ is a special one, as this is where Shri Krishna reveals the secrets of Avatara to Arjuna. We, as human have a natural weakness.  When a great thought is placed before us, instead of analysing the thought, understanding it and trying to put it into practise, almost all of us start worshipping the person who revealed the thought.  Worship of the Cross and the idols of Buddha can be quoted as examples.  One of the reasons for this may be that we deem him to be the originator of the thought.  Truths are eternal and can only be revealed and not invented.  You ask any educated person about ahimsa or non-violence.  You should not be surprised if he instantly come up with the answer, “Gandhi”.  You try to clarify that ‘almost two thousand years ago Shri Mahaveer based his life and religion solely on the principle of Ahimsa’ and ‘hundr...