ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ९२
अव्यक्ताद्व्यक्त यः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे ... रात्र्यागमे प्रलीयन्ते । (अध्याय ८ - श्लोक १८)
அவ்யக்தாத் வ்யக்த யஹ ஸர்வாஹ ப்ரபவந்தி அஹராகமே ... ராத்ர்யாகமே ப்ரலீயந்தி (அத்யாயம் 8 - ஶ்லோகம் 18)
Avyaktaad Vuakta Yah Sarvaah Prabhavanti Aharaagame ... Raathryaagame Praleeyante ... (Chapter 8 - Shloka 18)
अर्थ : ब्रह्मा का दिन प्रारम्भ होता है जब , हम सभी जीव अव्यक्त स्थिति से व्यक्त होते हैं । सृजित होकर प्रकट होते हैं । ब्रह्मा की रात्री में सभी पुनः लयमग्न हो जाते हैं । सुप्त स्थिति में लौट जाते हैं ।
इस वाक्य में व्यक्त भाव को तीन स्तर में समझ लें ।
एक :- अपने रात्री और दिन । दिन प्रारम्भ होने पर हम सभी जागते है । निद्रा में लीन थे । अपने आप में डूबे थे । अकेले , सुप्त स्थिति में थे । देह भान नहीं था । संसार और अन्य जीवों का भान नहीं था । निद्रा एक प्रकार से मृत्यु समान स्थिति है । हिन्दी में नींद से बाहर आने को निर्दिष्ट करने वाला शब्द है जाग्रण । बेहोश अवस्था से होश में आना । देह की प्रज्ञा , संसार की प्रज्ञा , 'अहंकार युक्त मैं की प्रज्ञा खोये स्थिति से प्राज्ञ स्थिति में आना । सुप्त स्थिति से व्यक्त होना । रात्री आते ही हम सब पुनः निद्रा में लीन हो जाते हैं । प्रज्ञा खोयी स्थिति में लौट जाते हैं ।
दो :- मृत्यु एवं पुनर्जन्म । मृत्यु के आते ही , हम सुप्त स्थिति में पहुँचते हैं । अव्यक्त होते हैं । पुनर्जन्म से पुनः व्यक्त होते हैं । मृत्यु अपने दैनिक निद्रा के समान है । मृत्यु के पश्चात , सुप्त स्थिति में देह भान नहीं होता । (देह ही नहीं होता ।) संसार का भान नहीं होता । (इन्द्रियों के बिना संसार की प्रज्ञा असम्भव है ।)
तीन : - सृष्टि - लय । ब्रह्मा के दिन में सृष्टि होती है । लय में तल्लीन सभी जीव पुनः प्रकट होते हैं । व्यक्त होते हैं । ब्रह्मा की रात्री में पुनः लय हो जाते हैं ।
इन तीनों अवस्थाओं में वही जीव व्यक्त होते हैं । अव्यक्त होते हैं ।
तीन : - सृष्टि - लय । ब्रह्मा के दिन में सृष्टि होती है । लय में तल्लीन सभी जीव पुनः प्रकट होते हैं । व्यक्त होते हैं । ब्रह्मा की रात्री में पुनः लय हो जाते हैं ।
इन तीनों अवस्थाओं में वही जीव व्यक्त होते हैं । अव्यक्त होते हैं ।
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