ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ९०
पुनरावर्तिनः ... (अध्याय ८ - श्लोक १६)
புநராவர்தினஹ ... (அத்யாயம் 8 - ஶ்லோகம் 16)
Punaraavartinah ... (Chapter 8 - Shloka 16)
अर्थ : सब कुछ पुनरावृत्ति है ।
सभी का पुनरावर्तन है । श्री कृष्ण का यह अद्भुत घोषणा है । हो सकता है यह घोषणा की भी गीता में कई बार पुनरावृत्ति हुई हो ।
संसार को देखने की दृष्टी के पीछे दो प्रकार के चिन्तन हो सकते हैं ।
एक चिन्तन जिसके आधार पर संसारी अनुभव सीध रेष के रूप में देखे जा सकते हैं । इस चिन्तन सभी अनुभवों के आदि और अन्त जोड़ देता है । इस के अनुसार अनुभव बस एक वार हैं । "अब की बार छोड़ दिया तो , बस महा नष्ट हो जाएगा" । अतः , अनुभव के साथ उद्वेग और हर्षोल्लास है और अनुभव खो देने पर दुःख , निराशा और मानसिक तनाव जुड़े हुए हैं । लघु दृष्टी , अज्ञान और सम्पूर्णता को देख न पाना इस चिन्तन के लिए कारण है । पाश्चात्य देशों में इस चिन्तन की प्राधान्यता है । आज धीरे धीरे वहाँ के चिन्तक , वैज्ञानिक और आध्यात्मवादी इस चिन्तन के प्रभाव से छूट रहें हैं ।
दूसरा चिन्तन जिस आधार पर संसार देखा जा सकता है वह है , वह वर्तुलाकारी है । सभी का प्रयाण वर्तुलाकार मार्ग पर है । सब कुछ पुनरावर्तन के पात्र हैं । "अब की बार छोड़ दिया तो कोई नष्ट नहीं । पुनः अवसर आएगा" । समय का प्रवाह गोलाकार पथ पर है । अनुभव गोलाकार मार्ग पर पुनः पुनः आते हैं । आदि नहीं अन्त नहीं । जीवन भी गोलाकार है । मृत्यु अन्त या पूर्ण विराम नहीं परन्तु कमा या अर्ध विराम है । पुनः जन्म होकर आगे चलने वाला है । इस चिन्तन के प्रभाव से समाज में शान्ति , धीरज , सहन शक्ति पूर्ण रूप से प्रचलित रहता है । पाश्चात्य देश जिसे क्रान्ति समझते हैं , उस प्रकार की क्रान्ति का अभाव रहता है । जैसा प्राप्त है , वैसा ही स्वीकार करने की वृत्ति रहती है । तनाव रहित जीवन रहता है । पूर्वी देशों में , विशेष रूप से भारत में इस चिन्तन की प्राधान्यता है ।
"सब कुछ पुनरावर्तित हैं" कहते हैं श्री कृष्ण । अपने ही जीवन को हम , पीछे मुड़कर देखें तो इस सत्य को देख पाएंगे । अनुभव की पुनरावृत्ति है । शब्दों की भी पुनरावृत्ति है । यदि कोई मेरे साथ मेरे प्रवचन स्थलों में प्रवास करें तो इसकी अनुभूति करेगा । मुझसे अधिक पढ़ा कोई , अनेक विषयों पर बोलेगा अवश्य , पुनरावृत्ति कम रहेगी , पर रहेगी अवश्य । कीट , कीड़े प्रति दिन जन्म लेते हैं । हिरण्यकशिपु या रावण का जन्म युगों में एक बार होता है । साधारण प्रसंग अनेकदा घटते हैं । विशेष प्रसंग , चमत्कारी प्रसंग कई वर्षों में एक बार घटते हैं । प्रत्येक विषयों का पुनः आवर्तन निश्चित है ।
अपनी स्मृति लघु है । अपना जीवन काल छोटा है । इसलिए हमें इस का ज्ञात होता नहीं ।
इस चिन्तन के ही कारण हिन्दू निरुत्साही है , प्रयत्न शील नहीं है , ऐसा दोष आरोपण किया जाता है । सत्य है या नहीं , हम नहीं जानते । परन्तु यह चिन्तन सत्य है । उसका हिन्दुओं पर बड़ा प्रभाव है , यह भी सत्य है । सत्य के विरुद्ध संघर्ष व्यर्थ ही स्थापित होता ।
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