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गीता की कुछ शब्दावली - ८९


गीता की कुछ शब्दावली - ८९


दुःखालयम् अशाश्वतम्  ।  (अध्याय ८ - श्लोक १५)
து:காலயம் அஶாஶ்வதம்  ...  (அத்யாயம் 8 - ஶ்லோகம் 15)
Duhkhaalayam Ashaashvatham  ...  (Chapter 8 - Shloka 15)

अर्थ :  दुःख का आलय है ।  अशाश्वत है ।

इस संसार का इस तरह वर्णित कर रहे हैं श्री कृष्ण । दुःखालयम ... अशाश्वतं ... दुःख का ढेर , शोक का स्थिर निकेत ... सुख जैसे प्रतीत होने वाले अशाश्वत ...

श्री कृष्ण का यह Factual वर्णन है । अपने चारों ओर देखें तो हमें भी यह सत्य प्रतीत होता है । कइयों जीवन में दुःख ठूस ठूस कर भरा दीखता है । केवल शोक , दीर्घ काल तक शोक । मेरे पास के कुछ उदाहरण रखता हूँ । (मैं दुःख के कारण ढूंढने का प्रयास कर नहीं रहा ।)

१ . अ ... सुखी जीवन जी रहा था । नगर में होने वाले शुभ कार्यों को आर्थिक सहायता करता था और श्रम दान भी । नगर में उसकी प्रतिष्ठा थी । अचानक धन नष्ट हुआ और उसकी स्थिति आमूल बदल गयी । आज दिन में पचास रुपये कमाने दर दर भटकता है । पुत्र Encephalitis का रोगी और उसे Fits के दौरे पड़ते हैं । सहोदरों से और पत्नी से रिश्ता बिगड़ी । शोक , शोक , सब दिशाओं में शोक !!!

२ . आ ... आयु १५ में उसका विवाह हुआ । उसी दिन सायंकाल में पति घर से भाग गया । वह जिस परिवार पर आश्रित थी , उस परिवार ने उससे अधिकाधिक परिश्रम निचोड़ा । आयु ७५ में घर से निकाली गयी और थका और रोग पीड़ित शरीर के साथ वृद्धाश्रम में पहुँची !!!

३ . इ ... अनपढ़ स्त्री , जीवन का मध्य काल । दो बच्चों के साथ उसे छोड़कर पति की मृत्यु । उधार लेकर इंजीनियरिंग शिक्षण प्राप्त पुत्र को नौकरी नहीं मिलने से गंभीर आर्थिक परिस्थिति !!!

४ . ई ... उसकी आयु ८५ । उस माता ने अपने पति की मृत्यु देखी । उसका शोक प्रयाण थमा नहीं । उसे एक पुत्र , एक बहु , एक दामाद और एक पौत्र के भी मृत्यु देखना पड़ा । अन्य एक पुत्र और पुत्री गम्भीर रोगों से पीड़ित हैं । एक पुत्र वधु अपने पति को छोड़ मायके चली गयी । उसकी एक पौत्री 'प्यार' का नाम लेकर घर से भाग चली । ओ हो ! मानो उसपर शोक की वर्षा ही हुई हो !!!

५ . उ ... दो वर्ष आयु । रोना रोना बस जैसे उसके जीवन में रोना ही लिखा हो । सामने एक अपार्टमेंट के बेसमेंट में पड़ा रहता है और रोता रहता है । उसी अपार्टमेंट में उसकी माँ स्वच्छता का कार्य करती है । सुबह से शाम तक कार्य में व्यस्त रहती है । रोते बच्चे को उठाकर फुसलाने का भी समय नहीं । बच्चे आसपास उसके दृश्य में भी नहीं !!!

६ . बारह वर्ष की आयु । उसका नाम सुन्दरी । आज प्रातः मेरे घर द्वार पर आयी । अन्धे और अनाथों की संस्था के लिए धन मांगने आयी । ख्रिस्ती संस्था थी तो मैं ने मना किया । थोड़े समय में पुनः आयी और भूख है कहकर भोजन मांगा । भोजन खिलाते हुए उससे बातचीत में उसकी जानकारी लिया । वह आठवीं कक्षा में पद्धति है । पिता नहीं । माता अन्धी । सहायता देने का आश्वासन देकर उसे संस्था में भर्ती कराया । माता तो संस्था में कार्य करती है । बेटी सुन्दरी को जबरन शिक्षण से रोककर , गली गली भटकाकर संस्था के लिए भीख मांगने बेचती है । यदि माना नहीं तो संस्था से निकाल देनेकी धमकी देती है । यह बच्ची बेचारी उस डर से भूखी भटकती है !!!

कई वर्षों पूर्व मैं जिस गल्ली में रहता था , वहाँ आज लगभग तीस में आधे परिवार शोक के साये में घिरे हैं । उच्च शिक्षित पुत्र , वायु सेना में नौकरी , कुछ ही दिनों में एक अपघटना में रीढ़ की हड्डी टूटी और बचा हुआ जीवन बिस्तर पर । नैराश्य में पिता की मृत्यु । ४० वर्ष की आयु , उसके पति को एक विचित्र रोग , ४५ वर्ष में वह अस्सी वर्ष का वृद्ध जैसा हो गया । उसके ८५ वर्ष आयु में पिता और १५ वर्ष आयु में पुत्र हैं । एक अन्य परिवार में माँ के हाथ ३ पुत्रियाँ सौंपकर मरण पाने वाला पुरुष । एक और परिवार में , अपने ६ बहनों से झगड़ा कर , पितृ संपत्ति हड़पने वाला भाई आज पागल होकर अकेला जी रहा । नित्य उधार में फंसा एक परिवार । पागल माँ , उसके दो पुत्र , घर में कई वर्षों तक दुःखी वातावरण । दोनों पुत्र पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी में बैठे । माँ की मृत्यु हुई और पुत्रों का विवाह भी । ऐसा लगा की परिवार अच्छी पटरी पर चढ़ गयी । कुछ ही वर्षों में उस परिवार में एक पुत्र और एक बहु रोगग्रस्त हुए और संसार से चल बसे । अन्य एक परिवार में पुत्री को जन्म देकर माँ पार्श्वाघात से रोग शय्या में लिट् गयी और पुत्री के पन्द्रहवे आयु तक जीवित रही । अन्य एक परिवार में , पुत्री , सुलक्षणा , विवाह निश्चित होकर शादी के लिए तैयार थी । विवाह के पहले विचित्र रोग से उसके हाथ पैर शिथिल हो गए । एक परिवार में यशस्वी व्यापारी अपने सत्तरवें आयु में पुत्र के हाथ व्यापार का भार सौंपा । कुछ ही महीनों में एक अपघात में पुत्र की मृत्यु हुई । एक गली में इतना शोक तो पूरे संसार में कितना होगा !!!

परिवार के लिए आधार स्तम्भ की अचानक मृत्यु के कारण डगमगाते परिवार , उधार नामक पाश जाल में फंसे व्यक्ति , रोग पीड़ित व्यक्ति , पुनः पुनः अपयश का ही सामना करने वाले व्यक्ति , कोर्ट , कचेरी में फंसकर , बाहर निकलने का मार्ग खोकर भटकने वाले व्यक्ति , सदा अपमान और खिल्ली का सामना करने वाले व्यक्ति , बंधुओं के अवगुणों के कारण कष्ट और दुःख झेलते व्यक्ति , रिश्तों को खोकर अकेले भटकने वाले व्यक्ति , द्रोह , विशवास घात , ठगा जाना , बाप रे बाप ! कितना शोक है संसार में !!!

आज सुखी प्रतीत होने वाले व्यक्ति के लिए आगामी कल क्या क्या शोक एकत्रित कर रखा है , कौन जाने ? वैसे ही उसका बीता कल उसके लिए कैसा था यह भी हमें ज्ञात नहीं ।

एक मित्र का कहना है , "सुख वेश्या जैसी है । उसका साथ निरन्तर नहीं है । दुःख तो अपनी पत्नी जैसे निरन्तर हमारे साथ है । हम ही हमारे नित्य साथी को मना कर उसके पीछे भाग रहे हैं" ।

अन्य एक मित्र का कहना है , "सर्व दूर छाए घने बादल जैसा है दुःख । क्षण भर के लिए चमक कर ओझल होने वाली बिजली के समान है सुख" ।

एक सन्न्यासी के साथ प्रवास का सन्दर्भ मिला । उन्हों ने एक प्रश्न पूछा । "क्या मनुष्य के लिए दुःख रहित जीवन सम्भव है ? है तो कैसे ?" "दुःख न मानकर , केवल अनुभव के नाते ले सकें तो यह सम्भव है" । मैं ने उत्तर दिया ।

क्या अन्यों के दुःख की ओर देखना सही है ?

अन्यों के शोक मिटाना क्या हमारे वश में है ? उस दिशा में , क्या हमारे कुछ Effective प्रयत्न सम्भव है ?
दुःख क्या है ? ऐसे भी व्यक्ति मिलते हैं जो अनेक प्रकार के दुःखी घेराव के बावजूद हर्षित और उत्साही मनःस्थिति रखते हैं ।

अन्यों के दुःख देखकर कई बार तो मन विचलित होता है । कुछ अन्य अवसरों में लाचार होकर , "हम से तो कुछ नहीं होगा" ऐसा सोचकर निराश होता है । कभी ऐसा विचार आता है की अन्यों के दुःख देखना ही एक प्रकार का अहंकार है । अन्य अवसर में स्वयं शोक ग्रस्त हो तो ही संसार में शोक दीखता है , ऐसा अपने आप को समझाता है । यह सत्य भी है ।
सुख में दुःख छुपा है और दुःख में सुख । जो छुपा है , वह हमारे लिए अदृश्य होने के कारण , हम सुख के प्रसंगों में उछल कूदते है । मद युक्त होते हैं और अन्यों को रौन्धते हैं । दुःख के प्रसंगों में ठीक विपरीत अपने अन्दर डूबते हैं । रिश्ते नाते तोड़ लेते हैं । आत्म ह्त्या जैसे अपघाती निर्णय लेते हैं ।

रोग , मृत्यु , आर्थिक कष्ट तो सामान्य हैं । प्रत्येक मनुष्य को इनकी सामना करना पड़ता है । किसी भी परिस्थिति में यदि हम सन्तोष और आनन्द के साथ रहे सकें तो पर्याप्त है । हमारी सन्तुष्ट मानसिकता अन्यों को प्रभावित करे तो और भला । अल्प समय के लिए ही सही , उन्हें सुख का अनुभव होगा । हम से तो बस यही सम्भव है । अन्यों के दुःख मिटाने के संकल्प लेकर प्रयत्न करना व्यर्थ है । अपनी योग्यता से बाहर है ।

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