ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १०३
यान्ति देवव्रता देवान् पितॄन यान्ति पितृव्रता: । भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ।। (अध्याय ९ - श्लोक २५)
யாந்தி தேவவ்ரதா தேவான் , பித்ரூன் யாந்தி பித்ருவ்ரதாஹ ... பூதாநி யாந்தி பூதேஜ்யா மத்யாஜினோsபி மாம் ... (அத்யாயம் 9 - ஶ்லோகம் 25)
Yaanti DevaVrataa Devaan Pitroon Yanti PitruVrataah .. Bhootaani Yanti Bhootejyaa Yanti Madyaajino(a)pi Maam ... (Chapter 9 - Shloka 25)
अर्थ : देवता को पूजनेवाले देवत्व को प्राप्त करते हैं । पितृ को पूजने वाले पितृ भाव को प्राप्त करते हैं । भूत प्रेत की पूजन से उन्हीं की प्राप्ति होती है । मुझे पूजने वाला मुझे ही प्राप्त करते हैं ।
हम जिसे चाहते हैं , जिस की इच्छा करते हैं वही हमें प्राप्त होती है । फालतू विषय की इच्छा करो तो फालतू विषय की ही प्राप्ति होती है । ऊँचे विषय को चाहो तो वह मिलता है । तुच्छ इच्छा के लिए जीने वाले कई दिखते हैं ।
इच्छा कैसी जगती है ? अपने स्वभाव के अनुसार जगती है । एक IAS अधिकारी , मंत्री से अपना परिचय करवाने के लिए ऐसी दयनीय अवस्था में मांग रहा था मानो वह IAS अधिकारी नहीं , एक चपरासी है । चपरासी को नीचा दिखाना मेरा उद्देश्य नहीं । मैं ऐसे कई साधारण मनुष्यों को जानता हूँ , जिनकी कोई गरीब याचना नहीं है । इस तुलना की हेतु , हमारी एक सामान्य धारणा को उजागर करना है ।
प्रवृत्ति के विषय में कई सामान्य धारणायें हैं । पिछले वर्ष एक तमिल सिनिमा में एक संवाद था (बाद में उसी शीर्षक का एक फिल्म भी बना) "लाल चमड़ी वाला है तो झूट नहीं बोलता" । अबद्ध है । ऐसे कई विचार सामान्य मानस में बसे हुए हैं । "धनी है तो तुच्छ इच्छाएं रखता नही" । (विमान में और बफे नामसे चलनी वाली पार्टियों में दिखने वाले दृश्य इस विचार के विपरीत है ।) "उच्च शिक्षित व्यक्ति डरता नहीं" । (मैं ऐसे कइयों को समीप से देख रहा हूँ । इतने डरपोक , स्वयं गलत मानते हुए भी विरोध करने का धैर्य जिनमे नहीं । स्वतन्त्रता संग्राम में ऐसे कई उच्च शिक्षितों का सहभाग रहा । स्वतंत्र भारत के ७० वर्षों के इतिहास में सरकार के अन्यायपूर्ण , अवैध कार्य के विरोध में खड़े रहने वाले नगण्य ही हैं ।) "अधिकार प्राप्त व्यक्ति झुकता नहीं । चापलूसी करता नहीं" । उच्च पदासीन अधिकारी राजनेताओं की और राजनेता और मंत्रीगण पार्टी के बॉस की चापलूसी करते हुए कुब्ज रीढ़ के साथ जीने वालों की कमी नहीं ।) "वयो वृद्ध व्यक्ति में बचपना और मूढ़ता होती नहीं" । (बर्मूडास पहनकर , बाल काली स्याही से पोतकर , शरीर पर सेंट और इत्तर लगाकर बच्चों जैसे हरकतें और बातचीत करते हुए ६० , ७० , क्यों ८० वर्ष के आयु वाले भी कितने घूम रहे हैं ।)
संभव है की ये बातें अतीत काल में सत्य थी , परन्तु आज नहीं । आङ्ग्ल रचित शिक्षण , सुख भोग की प्राधान्यता कारण हो सकते है । कोई छोटे आयु का है वयो वृद्ध , उच्च शिक्षित है की कम शिक्षित , ऊँचे पद पर आसन्न या साधारण पद पर , धनवान या दरिद्र , लाल चमड़ी वाला या काली चमड़ी वाला ... ये बातें महत्त्व हीन हैं । उसका स्वभाव पर आधारित उसकी वृत्ति कैसी है , उसके इच्छाएं किस स्तर के हैं यही महत्त्वपूर्ण हैं । जो इच्छा है , अल्प हो या उदात्त , यदि तीव्र हो तो अवश्य प्राप्त होती है ।
क्या वृत्ति को उठाकर उदात्त बना सकते हैं ? क्या स्वभाव का Finetune हो सकता है ? नहीं हो सकता यही मेरा अनुभव है । श्री रजनीश कहते हैं , "अँगूठा चूसते हुए जन्मता है वह श्मशान घाट पहुँचता है अँगूठा चूसते हुए" । याने स्वभाव , वृत्ति और आदतें बदलते नहीं । बदलने की आवश्यकता सूझती नहीं । बदलने की इच्छा होती नहीं । बदलने के प्रयत्न भी होते नहीं ।
क्या स्वभाव में परिवर्तन असंभव है ? सम्भव है । लाखों करोड़ों में एक । कठोर प्रयत्न के फलस्वरूप संभव है । अपने आप को देखना , अपने कर्म , वाक् और विचार को परखना , अपने आप को जानना , सत्संग आदि प्रयत्न , अविरत प्रयत्न से स्वभाव बदला जा सकता है । अपनी इच्छा वृत्ति के finetune हो सकता है । इस जन्म में नहीं तो आगत जन्मों में ।
इच्छा कैसी जगती है ? अपने स्वभाव के अनुसार जगती है । एक IAS अधिकारी , मंत्री से अपना परिचय करवाने के लिए ऐसी दयनीय अवस्था में मांग रहा था मानो वह IAS अधिकारी नहीं , एक चपरासी है । चपरासी को नीचा दिखाना मेरा उद्देश्य नहीं । मैं ऐसे कई साधारण मनुष्यों को जानता हूँ , जिनकी कोई गरीब याचना नहीं है । इस तुलना की हेतु , हमारी एक सामान्य धारणा को उजागर करना है ।
प्रवृत्ति के विषय में कई सामान्य धारणायें हैं । पिछले वर्ष एक तमिल सिनिमा में एक संवाद था (बाद में उसी शीर्षक का एक फिल्म भी बना) "लाल चमड़ी वाला है तो झूट नहीं बोलता" । अबद्ध है । ऐसे कई विचार सामान्य मानस में बसे हुए हैं । "धनी है तो तुच्छ इच्छाएं रखता नही" । (विमान में और बफे नामसे चलनी वाली पार्टियों में दिखने वाले दृश्य इस विचार के विपरीत है ।) "उच्च शिक्षित व्यक्ति डरता नहीं" । (मैं ऐसे कइयों को समीप से देख रहा हूँ । इतने डरपोक , स्वयं गलत मानते हुए भी विरोध करने का धैर्य जिनमे नहीं । स्वतन्त्रता संग्राम में ऐसे कई उच्च शिक्षितों का सहभाग रहा । स्वतंत्र भारत के ७० वर्षों के इतिहास में सरकार के अन्यायपूर्ण , अवैध कार्य के विरोध में खड़े रहने वाले नगण्य ही हैं ।) "अधिकार प्राप्त व्यक्ति झुकता नहीं । चापलूसी करता नहीं" । उच्च पदासीन अधिकारी राजनेताओं की और राजनेता और मंत्रीगण पार्टी के बॉस की चापलूसी करते हुए कुब्ज रीढ़ के साथ जीने वालों की कमी नहीं ।) "वयो वृद्ध व्यक्ति में बचपना और मूढ़ता होती नहीं" । (बर्मूडास पहनकर , बाल काली स्याही से पोतकर , शरीर पर सेंट और इत्तर लगाकर बच्चों जैसे हरकतें और बातचीत करते हुए ६० , ७० , क्यों ८० वर्ष के आयु वाले भी कितने घूम रहे हैं ।)
संभव है की ये बातें अतीत काल में सत्य थी , परन्तु आज नहीं । आङ्ग्ल रचित शिक्षण , सुख भोग की प्राधान्यता कारण हो सकते है । कोई छोटे आयु का है वयो वृद्ध , उच्च शिक्षित है की कम शिक्षित , ऊँचे पद पर आसन्न या साधारण पद पर , धनवान या दरिद्र , लाल चमड़ी वाला या काली चमड़ी वाला ... ये बातें महत्त्व हीन हैं । उसका स्वभाव पर आधारित उसकी वृत्ति कैसी है , उसके इच्छाएं किस स्तर के हैं यही महत्त्वपूर्ण हैं । जो इच्छा है , अल्प हो या उदात्त , यदि तीव्र हो तो अवश्य प्राप्त होती है ।
क्या वृत्ति को उठाकर उदात्त बना सकते हैं ? क्या स्वभाव का Finetune हो सकता है ? नहीं हो सकता यही मेरा अनुभव है । श्री रजनीश कहते हैं , "अँगूठा चूसते हुए जन्मता है वह श्मशान घाट पहुँचता है अँगूठा चूसते हुए" । याने स्वभाव , वृत्ति और आदतें बदलते नहीं । बदलने की आवश्यकता सूझती नहीं । बदलने की इच्छा होती नहीं । बदलने के प्रयत्न भी होते नहीं ।
क्या स्वभाव में परिवर्तन असंभव है ? सम्भव है । लाखों करोड़ों में एक । कठोर प्रयत्न के फलस्वरूप संभव है । अपने आप को देखना , अपने कर्म , वाक् और विचार को परखना , अपने आप को जानना , सत्संग आदि प्रयत्न , अविरत प्रयत्न से स्वभाव बदला जा सकता है । अपनी इच्छा वृत्ति के finetune हो सकता है । इस जन्म में नहीं तो आगत जन्मों में ।
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