ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १०६
अपि चेद्सुदुराचारो भजते मामनान्य भाक् । साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग् व्यवसितो हि स: । (अध्याय ९ - श्लोक ३०)
அபி சேத் ஸுதுராசாரோ பஜதே மாம் அநந்ய பாக் .. ஸாதுரேவ ஸ மந்தவ்யஹ ஸம்யக் வ்யவஸிதோ ஹி ஸஹ .. (அத்யாயம் 9 - ஶ்லோகம் 30)
Api Ched Suduraachaaro Bhajate Maam AnanyaBhaak .. Saadhureva Sa Mantavyah SamyagVyavasitho Hi Sah .. (Chapter 9 - Shlokam 30)
अर्थ : दुराचारी भी अनन्य भाव से मुझे भेजने लगा तो वह साधू ही कहा जायेगा , क्यूँ की उसका संकल्प दृढ़ है ।
श्री कृष्ण का एक महत्त्वपूर्ण आश्वासन है यह । हिन्दू धर्म का मूलाधार चिन्तन । ख्रिस्ती या इस्लाम जैसे अब्रहामिक पन्थों में पापियों के लिए निरन्तर नरक कहा गया है । सुधार के अवसर नहीं । (उनके अनुसार पापी की व्याख्या भी हास्यास्पद है । पापी याने वह नहीं जो श्री परमात्मा की सृष्टित मनुष्य , अन्य जीव या प्रकृति पर अपराध करता है । पापी वह है जो येशु या अल्लाह को मानता नहीं ।) हिन्दू धर्म में पापियों के लिये असीम अवसर उपलब्ध है । पापी , महा पापी और दुष्ट दुराचारी भी परिवर्तित हो सकता है ।
श्री परमात्मा जीवन का केन्द्र बनें । दृष्टी उसकी ओर रहे । दिव्यता की और प्रगति के कई पैरियाँ हैं । उसको भूलकर संसार में डूबे रहना अधो - स्थिति है । {दुराचारी इस तल पर है ।} संसार में रहना और उसका स्मरण करना यह पहली पैरी है । उसके ओर से संसार को देखना और अनुभव करना यह अगली पैरी । संसार में उसको देखना यह अगली और संसार को भूलकर केवल उसी को देखना यह मोक्ष स्थिति । (यह साधू की स्थिति है ।)
दुराचारी साधू में परिवर्तित हो जायेगा । अगले श्लोक में श्री कृष्ण कह रहे हैं की वह तत्क्षण महात्मा बन जायेगा । कैसे ? क्या यह सम्भव है ? हाँ । निश्चित ही यह सम्भव है । यदि संकल्प दृढ़ हो तो । सिगरेट या दारू का व्यसन से मुक्त होने की कामना करने वाले धीरे धीरे इसकी मात्रा कम कर कुछ दिनों में छोड़ देने की योजना करते हैं । क्यूँ की इनका सङ्कल्प में दृढ़ता नहीं । सामान्यतः इन्हे अपयश ही प्राप्त होती है । दृढ़ सङ्कल्प वाला बस तत्क्षण उन्हें त्याग देता है और व्यसन से मुक्त हो जाता है । सन्न्यासी बनने की इच्छा रखने वाले यदि तदनुरूप अभ्यास कर सन्न्यासी जीवन के लिए तैयारी करने की योजना बनाते हैं तो उनका सन्न्यासी बनना लगभग असम्भव है । बस ! तत्क्षण वैराग्य और गृह त्याग दृढ़ सङ्कल्प के लक्षण हैं ।
श्री कृष्ण का कहना यह नहीं की "दुराचारी मुझे भेजने लगा तो सदाचारी हो जायेगा" । वे कह रहे हैं की वह साधू या महात्मा हो जायेगा । एक पुराना महल जो सौ वर्षों से उपयोग में नहीं और अन्धेरा में डूबा हुआ है । उसे पुनः प्रकाशित करने में क्या दीर्घ समय और कठोर परिश्रम की आवश्यकता है ? ना । बस एक क्षण भर का समय और एक दिया पर्याप्त है । प्रकाशित करने का संकल्प मात्र दृढ हो । श्री वाल्मीकि इस सन्दर्भ में एक ज्वलन्त उदाहरण हैं ।
श्री परमात्मा जीवन का केन्द्र बनें । दृष्टी उसकी ओर रहे । दिव्यता की और प्रगति के कई पैरियाँ हैं । उसको भूलकर संसार में डूबे रहना अधो - स्थिति है । {दुराचारी इस तल पर है ।} संसार में रहना और उसका स्मरण करना यह पहली पैरी है । उसके ओर से संसार को देखना और अनुभव करना यह अगली पैरी । संसार में उसको देखना यह अगली और संसार को भूलकर केवल उसी को देखना यह मोक्ष स्थिति । (यह साधू की स्थिति है ।)
दुराचारी साधू में परिवर्तित हो जायेगा । अगले श्लोक में श्री कृष्ण कह रहे हैं की वह तत्क्षण महात्मा बन जायेगा । कैसे ? क्या यह सम्भव है ? हाँ । निश्चित ही यह सम्भव है । यदि संकल्प दृढ़ हो तो । सिगरेट या दारू का व्यसन से मुक्त होने की कामना करने वाले धीरे धीरे इसकी मात्रा कम कर कुछ दिनों में छोड़ देने की योजना करते हैं । क्यूँ की इनका सङ्कल्प में दृढ़ता नहीं । सामान्यतः इन्हे अपयश ही प्राप्त होती है । दृढ़ सङ्कल्प वाला बस तत्क्षण उन्हें त्याग देता है और व्यसन से मुक्त हो जाता है । सन्न्यासी बनने की इच्छा रखने वाले यदि तदनुरूप अभ्यास कर सन्न्यासी जीवन के लिए तैयारी करने की योजना बनाते हैं तो उनका सन्न्यासी बनना लगभग असम्भव है । बस ! तत्क्षण वैराग्य और गृह त्याग दृढ़ सङ्कल्प के लक्षण हैं ।
श्री कृष्ण का कहना यह नहीं की "दुराचारी मुझे भेजने लगा तो सदाचारी हो जायेगा" । वे कह रहे हैं की वह साधू या महात्मा हो जायेगा । एक पुराना महल जो सौ वर्षों से उपयोग में नहीं और अन्धेरा में डूबा हुआ है । उसे पुनः प्रकाशित करने में क्या दीर्घ समय और कठोर परिश्रम की आवश्यकता है ? ना । बस एक क्षण भर का समय और एक दिया पर्याप्त है । प्रकाशित करने का संकल्प मात्र दृढ हो । श्री वाल्मीकि इस सन्दर्भ में एक ज्वलन्त उदाहरण हैं ।
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