ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ११७
गिरामस्मि एकमक्षरम् ... (अध्याय १० - श्लोक २५)
கிராமஸ்மி ஏகமக்ஷரம் ... (அத்யாயம் 10 - ஶ்லோகம் 25)
Giraamasmi Ekam Aksharam ... (Chapter 10 - Shlokam 25)
अर्थ : मंत्रों में एकाक्षर ओंकार मैं हूँ ...
ॐ यह एकाक्षर । प्रणव मन्त्र भी कहा जाता । अ , उ और म इन तीन शब्दों का एकत्रित स्वरुप ॐ है । वेदों का सार त्रिपदा गायत्री है । गायत्री का सार ॐ है । अतः ॐ इस मन्त्र में सम्पूर्ण वेद गर्भित है । अतः ॐ ज्ञान का सार है ।
अ यह स्वर नाभि से निकलता है । उ कंठ से और म होठों से । अतः ॐ शब्दों का सार है । सृजन कार्य में शब्द की ही सृष्टि सर्व प्रथम हुई । जानकार जनों का कहना है की ग्रहों के तेज चलन - भ्रमण के कारण सृष्टि में गूंजता महाशब्द ॐ स्वरुप में ही है ।
विज्ञान क्षेत्र में सृष्टि में सभी वस्तुओं का आधार सब से छोटा अंश आकार और वजन युक्त वस्तु माना जाता था । समीप काल में यह मान्यता बदली है । अब वस्तु नहीं , लहरी ऊर्जा ही अति सूक्ष्म अंश मानी जाती है । हिन्दू समाज शताब्तियाँ पूर्व ही इस विचार को माना है । वस्तु और ऊर्जा एक ही तत्त्व के भिन्न प्रकट स्वरुप हैं । परस्पर परिवर्तनीय स्थिति हैं । मन्त्र शक्ति इस नाम से पहचानी जानी वाली यह शक्ति का प्रयोग कर हमारे पूर्वज मंत्रों के उच्चार से अग्नि और वर्षा की उत्पत्ति करने का सामर्थ्य रखते थे ।
ॐ यह निर्विकल्प निराकार परब्रह्म तत्त्व का प्रतीक है । भारत में उपजे सभी सम्प्रदाय और उपासना मार्ग में ॐ स्वीकार्य है । अतः इस मन्त्र को ऐक्य मन्त्र या एकात्म मन्त्र कह सकते हैं ।
ॐ का उच्चार (जाप) और ॐ इस शब्द पर ध्यान अपने शरीर , मन और बुद्धि पर महत्त्व पूर्ण प्रभाव उत्पन्न करते हैं ।
मंत्रों में मैं एकाक्षर ॐ हूँ ।
Comments
Post a Comment