ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ११६
रुद्राणां शङ्करश्चास्मि ... (अध्याय १० - श्लोक २३)
ருத்ராணாம் ஶங்கரஶ்சாஸ்மி ... (அத்யாயம் 10 - ஶ்லோகம் 23)
Rudraanaam Shankaraschaasmi ... (Chapter 10 - Shlokam 23)
अर्थ : रुद्रों में मैं शंकर हूँ ।
श्री कृष्ण कह रहे हैं , "रुद्रों में मैं शङ्कर हूँ" ... रूद्र कौन ? शङ्कर कौन ? जानने के पहले महत्त्व पूर्ण एक विषय है । हम सामान्य जनों के लिए रूद्र , शङ्कर सब एक ही हैं ।
श्री कृष्ण यहाँ कह रहे हैं , "मैं शङ्कर हूँ" । यह नहीं कह रहे की शङ्कर मेरा चेला है , या सहायक है या शङ्कर छोटे हैं जैसे कुछ कृष्ण भक्ति संगठन कह रहे हैं । ये शिवजी को "Demi God" या छोटे देव कहते हैं ।
अद्वैत जोड़ता है । कहता है 'सब एक है' । एक को देखने प्रवृत्त करता है । अन्य विचार तोड़ते हैं । उसका नाम न रखो । उसके मन्दिर न जाओ । उसके पुस्तक न पढ़ो - ऐसे कहकर भेद उत्पन्न करते हैं ।मैं गीता प्रचार में तमिळ नाड में ग्राम ग्राम गया । शिवकाशी के पास एक ग्राम में तीन दिन एक वैष्णव के घर रुका हुआ था । तीसरे दिन उसने एक प्रश्न पूछा । "आप भस्म लगाते हो और गीता पर बोलते हो ?" मानो यह प्रश्न उसके मन को तीन दिन से खदेड़ रहा था । मैं ने कहा , "मेरे लिए वेद ही सर्वोपरि है । और वेद में केवल भस्म का उल्लेख है । बाकी सब बाद में आये हैं" । भस्म याने मात्र शिवजी नहीं । भस्म तो आध्यात्मिक चिन्ह है । भस्म विविधता इस देश को जोड़ता सेतु है । रामस्य ईश्वरः रामेश्वरः - राम यस्य ईश्वरः सः रामेश्वरः । यह हमारी परम्परा रही है ।
अद्वैत ही समाज में सौहार्दपूर्ण वातावरण निर्माण करने का सामर्थ्य रखता है । परस्पर एक दूसरे व्यक्ति को , एक दूसरे समाज को , मनुष्य को सृष्टि से , व्यक्ति को सम्पूर्ण संसार से बांधता है । शैव , वैष्णव आदि आराधना के मार्ग हैं । अपने लिए अनुकूल मार्ग चुने और उस मार्ग पर निष्ठा से चले , यह उपासना में अपेक्षित है । परन्तु अधिष्ठान विचार अद्वैत का हो ।
इस संदर्भ में हमें भास् होती है आदि शङ्कर कितना महान हुआ । २,५०० वर्ष पूर्व , केरल के एक छोटे ग्राम में अवतरित यह व्यक्ति अद्वैत सन्देश लेकर भारत में एक क्रांतिकारी परिवर्तन निर्माण कर दिया । वेदो पर और उपनिषदों पर भाष्य लिखा तो गीता और श्री विष्णु सहस्रनाम पर भी भाष्य लिखा । शिवजी , गणेशजी पर पञ्चक , अष्टक लिखा तो श्री कृष्ण पर , श्री विष्णु भी अति सुन्दर श्लोक लिखे । आदि शङ्कर के अनुयायी शिवरात्री और देवी नवरात्री अनुष्ठित करते हैं उतने ही उत्साह और श्रद्धा से श्री राम नवमी और श्री कृष्णाष्टमी भी मनाते आये हैं।
गीता अद्वैत का ही सार है । इस की पुष्टि में श्री कृष्ण का यह उद्घोष अद्भुत है । रुद्रों में मैं श्री शङ्कर हूँ ।
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