ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ११९
स्थावराणां हिमालयः ... (अध्याय १० - श्लोक २५)
ஸ்தாவராணாம் ஹிமாலயஹ ... (அத்யாயம் 10 - ஶ்லோகம் 25)
Sthaavaraanaam Himaalayah ... (Chapter 10 - Shlokam 25)
अर्थ : स्थावरों (अचल वस्तुओं) में मैं हिमालय हूँ ...
भारत में पर्वत दैवी क्षेत्र हैं । हिन्दुओं को विनम्र भक्ति और व्रत अनुशासन के साथ पर्वतारोहण के लाभ पहुँचा रहे हैं । तेजस्वी हिमालय ही इस के पीछे प्रमुख कारण है ।
हिमालय श्री शिवजी का वासस्थल है । नहीं । हिमालय प्रत्यक्ष शिव स्वरुप है । श्री विष्णु के दिव्य क्षेत्र , अम्बा के शक्ति पीठ और अन्य कई पुण्य तीर्थ हिमालय पर भरे पड़े हैं । भारत भर में प्रत्येक पर्वत और चोटी भगवद्स्वरूप माना जाना , उस पर किसी देवालय का निर्माण किया जाना हजारों लाखों भक्त द्वारा नियमित गिरि प्रदक्षिण (परिक्रमा) जाना ये सब के मूल में अपने भीतर गहराई में स्थिर बसा हिमालय है ।
तमिल भाषा में एक प्रचलित बोल है । "काडु वा वा एंद्रुअळैक्किरदु" अर्थात घाट आओ आओ कहकर बुला रहा है । घाट याने स्मशान घाट समझा जाता है । वास्तव में घाट यह घाटी या पर्वत को सूचित करता है । संसार के बन्ध पाश से मुक्त होकर , रागद्वेष आदि को मिटाकर , वैराग्य प्राप्त कर , सन्न्यास भावना से हिमालय की ओर चले जाने की तीव्र इच्छा , स्वप्न को ही ये शब्द प्रकट करते हैं । हिंदुओ के मनस की गहराई में दृढ़ बसी है यह सुप्त आशा । इस आशा को सहस्रों वर्षों से , पीढ़ी दर पीढ़ी , जीवित रखने में हिमालय का ही योगदान है । इस आशा का क्रियान्वयन अपने जीवन में भले न हो , पर यह अटल सत्य है की स्वप्न मात्र जीवित है । जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए हिमालय ही गन्तव्य है । सहस्रों वर्ष पूर्व आदि शंकराचार्य से आज कल के स्वामी चिन्मयानन्द या दयानन्द तक । जो हिमालय तक पहुँच न सका , उसके लिए बेडाघाट , अहोबल , सह्याद्रि , तिरुवन्नामलाई जैसे पर्वत हैं । परन्तु ये सभी हिमालय के ही लघु रूप माने जाते हैं । इस प्रकार , हिन्दू जीवन में आध्यात्मिक प्रतिष्ठान बनाने वाला प्रतीक है हिमालय ।
कम से कम एक बार जिसने हिमालय के सान्निध्य का अनुभव किया हो , वही हिमालय की परम शांति पूर्ण भावना , आध्यात्मिक ललकार और दैवी प्रतिष्ठा युक्त भावना को समझ सकेगा ।
स्थावराणां हिमालयः , स्थावरों में मैं हिमालय हूँ ... कहना है श्री कृष्ण का ।
भारत एक पुण्य भूमि है , देव भूमि है । ऐसे घोषणा करते समय तत्क्षण हमारे आँखो के सामने आने वाला दृश्य हिमालय का है । हिम याने बर्फ । बर्फ का आलय ।
भारत के उत्तर पश्चिमी छोर , अफगानिस्तान की सीमा से उत्तर पूर्वी छोर चीनी - बर्मी सीमा तक एक विशाल छत्र के सामान , नभस्पर्शी , दृढ़ एवं स्थिर रक्षा कवच जैसा खड़ा है हिमालय । उत्तर से बहने वाली शीत वायु को रोक कर भारत को अति - शीत से बचाता है हिमालय । दक्षिण पश्चिमी दिशा से बहने वाली वर्षा युक्त वायु को रोककर , पूर्वी भारत की और लौटाकर , सम्पूर्ण भारत में यथावश्यक वर्षा बरसाने में प्रमुख कारण है हिमालय । भारत के जीव नदियों का उद्गम स्थान है हिमालय । भारत का अधिकतर भूभाग सुजलाम , सुफलाम , शस्य श्यामलाम होने का पूर्ण श्रेय हिमालय को ही जाता है । इस प्रकार भारत की रक्षा , भारत का न अति , न कठोर शीतोष्ण वातावरण , जन जीवन को सुखमय बनाने वाला शीतोष्ण वातावरण , भारत की नैसर्गिक और खाद्य सम्पन्नता में हिमालय का महत्त्व पूर्ण योगदान है ।
भारत के उत्तर पश्चिमी छोर , अफगानिस्तान की सीमा से उत्तर पूर्वी छोर चीनी - बर्मी सीमा तक एक विशाल छत्र के सामान , नभस्पर्शी , दृढ़ एवं स्थिर रक्षा कवच जैसा खड़ा है हिमालय । उत्तर से बहने वाली शीत वायु को रोक कर भारत को अति - शीत से बचाता है हिमालय । दक्षिण पश्चिमी दिशा से बहने वाली वर्षा युक्त वायु को रोककर , पूर्वी भारत की और लौटाकर , सम्पूर्ण भारत में यथावश्यक वर्षा बरसाने में प्रमुख कारण है हिमालय । भारत के जीव नदियों का उद्गम स्थान है हिमालय । भारत का अधिकतर भूभाग सुजलाम , सुफलाम , शस्य श्यामलाम होने का पूर्ण श्रेय हिमालय को ही जाता है । इस प्रकार भारत की रक्षा , भारत का न अति , न कठोर शीतोष्ण वातावरण , जन जीवन को सुखमय बनाने वाला शीतोष्ण वातावरण , भारत की नैसर्गिक और खाद्य सम्पन्नता में हिमालय का महत्त्व पूर्ण योगदान है ।
भारत में पर्वत दैवी क्षेत्र हैं । हिन्दुओं को विनम्र भक्ति और व्रत अनुशासन के साथ पर्वतारोहण के लाभ पहुँचा रहे हैं । तेजस्वी हिमालय ही इस के पीछे प्रमुख कारण है ।
हिमालय श्री शिवजी का वासस्थल है । नहीं । हिमालय प्रत्यक्ष शिव स्वरुप है । श्री विष्णु के दिव्य क्षेत्र , अम्बा के शक्ति पीठ और अन्य कई पुण्य तीर्थ हिमालय पर भरे पड़े हैं । भारत भर में प्रत्येक पर्वत और चोटी भगवद्स्वरूप माना जाना , उस पर किसी देवालय का निर्माण किया जाना हजारों लाखों भक्त द्वारा नियमित गिरि प्रदक्षिण (परिक्रमा) जाना ये सब के मूल में अपने भीतर गहराई में स्थिर बसा हिमालय है ।
तमिल भाषा में एक प्रचलित बोल है । "काडु वा वा एंद्रुअळैक्किरदु" अर्थात घाट आओ आओ कहकर बुला रहा है । घाट याने स्मशान घाट समझा जाता है । वास्तव में घाट यह घाटी या पर्वत को सूचित करता है । संसार के बन्ध पाश से मुक्त होकर , रागद्वेष आदि को मिटाकर , वैराग्य प्राप्त कर , सन्न्यास भावना से हिमालय की ओर चले जाने की तीव्र इच्छा , स्वप्न को ही ये शब्द प्रकट करते हैं । हिंदुओ के मनस की गहराई में दृढ़ बसी है यह सुप्त आशा । इस आशा को सहस्रों वर्षों से , पीढ़ी दर पीढ़ी , जीवित रखने में हिमालय का ही योगदान है । इस आशा का क्रियान्वयन अपने जीवन में भले न हो , पर यह अटल सत्य है की स्वप्न मात्र जीवित है । जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए हिमालय ही गन्तव्य है । सहस्रों वर्ष पूर्व आदि शंकराचार्य से आज कल के स्वामी चिन्मयानन्द या दयानन्द तक । जो हिमालय तक पहुँच न सका , उसके लिए बेडाघाट , अहोबल , सह्याद्रि , तिरुवन्नामलाई जैसे पर्वत हैं । परन्तु ये सभी हिमालय के ही लघु रूप माने जाते हैं । इस प्रकार , हिन्दू जीवन में आध्यात्मिक प्रतिष्ठान बनाने वाला प्रतीक है हिमालय ।
कम से कम एक बार जिसने हिमालय के सान्निध्य का अनुभव किया हो , वही हिमालय की परम शांति पूर्ण भावना , आध्यात्मिक ललकार और दैवी प्रतिष्ठा युक्त भावना को समझ सकेगा ।
स्थावराणां हिमालयः , स्थावरों में मैं हिमालय हूँ ... कहना है श्री कृष्ण का ।
Comments
Post a Comment