ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १३७
त्वं वेदितव्यम् ... (अध्याय ११ - श्लोक १८)
த்வம் வேதிதவ்யம் ... (அத்யாயம் 11 - ஶ்லோகம் 18)
Tvam Veditavyam .. (Chapter 11 - Shlokam 18)अर्थ : जानने योग्य बस आप ही हैं ...
अव्यम् इस संयुक्ताक्षर किसी कर्म सूचक शब्द के पीछे जुड़कर लगता है तो यह अर्थ होता की , "किया जाना चाहिए" .. या "किये जाने योग्य" । कर्तव्य का अर्थ 'कर्म जो किया जाना चाहिए' । दातव्य का अर्थ हुआ 'दिया जाने योग्य' । 'गन्तव्य' याने स्थान जो पहुँची जानी चाहिए । वेदितव्य का अर्थ यह है की 'जानने योग्य' ।
वृक्ष जैसे स्थावर जीव जानते हैं । मिट्टी से सत्त्व को कैसे ग्रहण करना , उस सत्त्व का पुष्प और फल में रूपान्तर कैसे करना आदि ज्ञान इन जीवों को है । परन्तु , 'यह जानने योग्य है' 'इसे मैं जानूँ' आदि समझने का सामर्थ्य इन जीवों में नहीं । समझकर उसे जानने का प्रयत्न भी इनके लिए असम्भव है । इन जीबों को प्राप्त ज्ञान fixed and embedded knowledge है यानी सीमित ज्ञान .. वह भी साथ लाया ज्ञान ।
अन्य प्रकार के प्राणी काल के अनुरूप , बदली परिस्थिति के अनुरूप नए विषयों को जानते हैं । एक कौवा वृक्षों की टहनियों से अपने घोसला बनाते आये हैं । आज कल लोह तार , प्लास्टिक के टुकड़े , रस्सी आदि का भी उपयोग करता है । एक बकरा चारों पैरों पर चलकर घास चरते आयी है । परन्तु आजकल नगरों में सामने के दोनों पैरों को उठाकर दीवार पर टिकाकर , पोस्टर फाड़कर खाती है । यात्री स्थल में एक बन्दर मोटर बाइक की थैली का ज़िप खोलकर अन्दर रखा हुआ खाद्य पदार्थ उठाकर ले जाता है । ये उदाहरण हैं इन प्राणियों द्वारा प्राप्त नए ज्ञान के । परन्तु , यह जानने योग्य है ऐसा प्रज्ञा पूर्वक समझकर , तदनन्तर किये गए प्रयत्न से प्राप्त नहीं हैं । नयी परिस्थिति में जीने के संघर्ष में इन बातों को सीखा । सीखा अवश्य परन्तु ज्ञातव्य या वेदितव्य ऐसा समझ के आधार पर नहीं ।
मनुष्य ही एक मात्र जीव है जिसे यह प्रज्ञापूर्वक समझने का सामर्थ्य प्राप्त है की यह वेदितव्य है । जान कर उसे प्राप्त करने का प्रयत्न में लगने का सामर्थ्य भी उसी में है ।
वेदितव्य क्या है ? आज के किसी युवक से पूँछो तो कहेगा 'कम्प्युटर' । 'आंग्ल भाषा ... वह भी अमेरिकी बोली को ही वेदितव्य कहेगा । कारण पूंछने पर कहेगा , "वही तो पेट भरने में उपयोगी है" । "अरे ! तुम्हारे पाठ्यक्रम में मातृ भाषा क्यूँ नहीं लिया ?" पूँछे तो उत्तर कहेगा , "हिंदी सीखने से पेट भरेगा ?" (अपने देश की दुर्भाग्य स्थिति यह है की हिंदी और अन्य मातृभाषा की कक्षा खाली हैं ।) इस विद्यार्थी में और उस कौवा , बकरी या बन्दर में किञ्चित मात्र भी अन्तर नहीं । बस ! जीने के लिए जो कुछ आवश्यक है वही वेदितव्य है इस के लिए ।
अरे ! पेट भरने के लिए चाहे जो भी सिख लो । परन्तु क्या वह पर्याप्त है ? क्या पेट भरना मात्र जीवन है ? "अब पेट की चिंता नहीं ।" ऐसी अवस्था में और कुछ जानने की आवश्यकता नहीं । जीवन में पूर्णता प्राप्ति हेतु जानने योग्य और कुछ विषय हैं या नहीं ?
यहाँ अर्जुन श्री परमात्मा को वेदितव्य कह रहा है । जिसे जानने पश्चात और कुछ जानने के लीये शेष रह नहीं जाता वही वेदितव्य है । हाँ ! परम तत्त्व ही जानने की अर्हता रखता है । अपने प्रयत्नों के पीछे जो है , संसार के प्रत्येक कार्य का कारण जो है , अपने सामर्थ्यों में जो सामर्थ्य भरता है , उस परम तत्त्व ही वेदितव्य है ।
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