ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १४०
स्वस्तीस्त्यक्त्वा महर्षी: ... (अध्याय ११ - श्लोक २१)
ஸ்வஸ்தீத்யுக்த்வா மஹர்ஷீஹி ... (அத்யாயம் 11 - ஶ்லோகம் 21)
Swasteestyuktvaa Maharsheeh ... (Chapter 11 - Shlokam 21)अर्थ : महर्षी गण 'मङ्गल हो' ऐसा स्वस्ति वचन कह रहे हैं ।
अर्जुन द्वारा दिया जा रहा वर्णन को गौर से पढ़िए । नर असहाय है , श्री परमात्मा के खुले मुख में प्रविष्ट हो रहा है और जबड़ों से चबाया जाकर चूर्ण हो रहा है । देवता गण भयभीत हुए हैं , और अपने हाथ जोड़कर श्री परमात्मा की स्तुति कर रहे हैं । एक तीसरा वर्ग भी वहाँ है । वह है महाऋषियों का वर्ग । वे हर्षित हैं । स्वस्ति वचन गा रहे हैं । मंगल घोष कर रहे हैं । और श्री परमात्मा की स्तुति कर रहे हैं ।
ऋषी , मह्रिषी भारत की विशेषता हैं । हिन्दू समाज के गौरव मय पूर्वज हैं । मनुष्यों में प्रज्वलित माणिक्य हैं । ज्ञान के शिखर हैं । धर्म के दृढ़ आधार स्तम्भ हैं । तपस के गम्भीर मेरु हैं । गुणों के प्रखर आदर्श हैं । उनमे स्वार्थ , अज्ञान , अवगुण के अभाव होने के कारण उन्हें राजा , महाराजा और चक्रवर्ती या अन्य किसी के भी प्रति भय नहीं । महर्षि और उनके अभिप्राय राजा महाराजाओं की सभा में आदर के पात्र रही । इतना असीम आदर , अधिकार और प्रभाव प्राप्त ऋषि महाऋषि इन्हें अपने सर पर चढ़ने की अनुमति नहीं दी । स्वयं को मदान्वित होने की अनुमति कभी नहीं दिया ।
ऋषी मह्रिषी सन्न्यासी नहीं । वे गृहस्थ रहे । इनके नाम इनके पत्नियों के नाम के साथ ही लिए जाते हैं । वशिष्ट - अरुन्धती , अत्रि - अनसूया , गौतम - अहल्या , अगस्त्य - लोपामुद्रा आदि ।
ऋषी महाऋषियों ने ही भारत में हिन्दू जनों के धर्म केन्द्रित जीवन का दृढ़ नींव रचाया । हिंदुओ की ज्ञान तृष्णा , भारत की अनरत , अटूट ज्ञान परम्परा के लिए यहाँ जन्म लेकर प्रेरक जीवन जगने वाले लाखों ऋषी महऋषी ही कारणीभूत हैं ।
ऋषी महऋषी सहस्रों वर्ष पूर्व जीकर गये । उनके अप्रतीम तेजस्वी जीवन का प्रभाव भारत में आज तक जीवित है । इस्लामीकरण , ख्रिस्तिकरण , पाश्चात्यकरण , भोगवाद के आन्धियों में नष्ट भ्रष्ट हुआ नहीं तो इसका पूर्ण श्रेय इन ऋषी महऋषियों को ही जाता है । कांची शङ्कर पीठ के श्री परमाचार्य कहते थे ... अपने पूर्वजों ने साईकिल के पैडल खूब चला दिया । उस आधार पर आज साईकिल चल रही है । परन्तु अधिक दूर और अधिक काल तक नहीं चलेगी । हमें भी पैडल चलाना होगा । तभी आगामी युगों के लिये हम चलती हुई साईकिल छोड़ जा सकते हैं । भारत में पुनः ऋषी महऋषी उत्पन्न होने चाहिए । ज्ञान , तपस , चारित्र्य और धर्म की परम्परा पुनरुज्ज्वलित होनी चाहिये । वह ज्वलन्त प्रकाश विश्व भर फैलना चाहिए । विश्व को ग्रस रहे अन्धकार को मिटाना चाहिये ।
Comments
Post a Comment