ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १३९
सुरसंगा केचितभीताः प्राञ्जलयो ... (अध्याय ११ - श्लोक २१)
ஸுர ஸங்கா கேசித் பீதாஹ் ப்ராஞ்ஜலயோ ... (அத்யாயம் 11 - ஶ்லோகம் 21)
SuraSangaa Kechit Bheetaah Praanjalayo ... (Chapter 11 - Shlokam 21)अर्थ : देव गण में कुछ भयभीत होकर हाथ जोडकर आपको नमस्कार कर रहे हैं ।
अर्जुन श्री परमात्मा का उग्र रूप का वर्णन कर रहा है । मनुष्य डर सकता है । मृत्यु और विनाश का दर्शन पाकर कांप सकता है । इसमें कोई आश्चर्य नहीं । देवता क्यूँ डरें ? भयभीत क्यों होवें ?
देवता स्वर्ग वासी हैं । स्वर्ग सुखों का भण्डार है । सुख याने केवल सुख नहीं । उत्तमोत्तम सुख । सभी विषयों में उच्च कोटि सुख । दुःख का लवलेश भी मिश्रण के विना सुख । देव ऐसे सुख भोगने में लीं हैं ।
सुख आये तो साथ ही साथ भय भी आ जाता है । सुख और भय जुड़वे हैं । कभी न बिछड़ने वाले जुड़वे । सुख समाप्त होने का भय । सुख भोगने की क्षमता लुप्त हो जाने का भय । सुख जिस अधिकार या योग्यता से प्राप्त है , वही छीने जाने का भय । स्पर्धा का भय । सुख भोगने की भी आवश्यकता नहीं । सुख की लालसा जग जाए तो पर्याप्त है । भय का जन्म हो जाएगा ।
अर्जुन कहता है की "देव गण भयभीत होकर , हाथ जोड़कर श्री परमात्मा का वन्दन कर रहे हैं । श्री परमात्मा ही सुखों का स्रोत हैं , उनकी कृपा से ही सुख भोग के अधिकार और अर्हता प्राप्त होती है । देवता गण इस सत्य को जानते हैं और समझते हैं , इसी लिए हाथ जोड़कर श्री परमात्मा को भज रहे हैं । अपने मृत्यु लोक की भाषा में ऐसा समझ सकते हैं । "एक सरकारी नौकर जो भ्रष्ट है , घूस खाता है और उस अनैतिक पैसा के आधार पर सुख भोग मय जीवन जीता है , वह अपने अधिकारियों से डरता है , झुकता है , हाँ जी हाँ जी करता है , चापलूसी करता है ।" कुछ ऐसी ही स्थिति है देवताओं की ।
देव गण हैं तो निश्चित ही धर्म के पक्ष में खड़े रहेंगे , दृढ़ता से धर्म के पक्ष धरेंगे , ऐसी धारणा हमने बना लिया तो वह हमारा अज्ञान होगा । श्री राम रावण युद्ध में अस्सी दिन तक , याने यह सुनिश्चित होने के पश्चात की श्री राम ही विजयी होंगे , देवता गण आकाश में एकत्रित होते थे और किसी का भी नाम लिए विना केवल "जय हो" "जय हो" का घोष लगाते थे । अस्सी दिन बीत जाने के पश्चात , रावण के सभी श्रेष्ट योद्धा मारे जाने के पश्चात , अब रावण का विजयी होना असम्भव यह सुनिश्चित होने के पश्चात ही देवता गण के ध्यान में आया की श्री राम भूमि पर खड़े युद्ध हैं , उनके पास रथ नहीं । देवता गण नीचे उतरते हैं और श्री राम के लिए रथ की व्यवस्था करते हैं ।
यही सुख भोग की इच्छा के कारण देवता गण अनैतिक कार्यों हैं , पकड़े जाते और शाप भुगतते हैं ।
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