ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १४७
तत् क्षामये .. पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायाः .. (अध्याय ११ - श्लोक ४२ , ४४)
தத் க்ஷாமயே அஹம் ... பிதேவ புத்ரஸ்ய ஸகேவ ஸக்யுஹு ப்ரியஹ பிரியாயாஹ ... (அத்யாயம் 11 - ஶ்லோகம் 42 , 44)
TatKshaamaye Aham .. Piteva Putrasya Sakheva Sakhyuh Priyah Priyaayah ... (Chapter 11 - Shlokam 42 , 44)अर्थ : पिता पुत्र को , सखा सखा को , प्रिय प्रेयसी को जैसे क्षमा कर देता है वैसे मुझे क्षमा कर देना ।
क्षमा ... याचना भी विशेष । क्षमा प्रदान करना भी विशेष । यहाँ अर्जुन श्री कृष्ण से क्षमा याचना कर रहा है , यह विशेष । अर्जुन और श्री कृष्ण बाल्य काल से स्नेही रहे । ममेरा भाई - फुफेरा भाई यह आपसी नाता है । छुटपन से एक साथ विहार , भोजन , शैया पर समय बिताये हैं । यहाँ युद्ध क्षेत्र में श्री कृष्ण अर्जुन की आज्ञा पालन करने वाला सेवक है । इस पृष्ट भूमि में अर्जुन का श्री कृष्ण के समक्ष क्षमा याचना करना अति विशेष है । गीता सुनते सुनते अर्जुन श्री कृष्ण के परमात्म स्वरुप पहचान लेता है । "इसका दिव्य स्वरुप को जाने विना , मैं आज तक इससे अरे - तुरे की भाषा बोलता आया हूँ । प्रमाद किया हूँ । हंसी मजाक किया हूँ ।" यह सोच है अर्जुन का । श्री कृष्ण की दैवी महिमा जानने के पूर्व की बात हो तो भी अर्जुन के मन में पश्चाताप जागता है । इसी लिए क्षमा याचना कर रहा है । एक श्रेष्ट पुरुष अपने से छोटे को जैसे क्षमा कर देता है , स्नेह प्रेम के आधार पर उसके बचपना युक्त गलतियों की अनदेखा करता है , क्षमा कर देता है , वैसा ही मुझे क्षमा कर दो ।" अर्जुन का विज्ञापन यही है ।
अपने से आयु में , योग्यता में , गुण में , महिमा में , विद्या में बड़े व्यक्ति के समक्ष क्षमा याचना करना किसी छोटे के लिए आसान है । श्री कृष्ण अपना सखा है , बंधू है , आज अपना आज्ञाधारी सेवक है आदि इन बातों को भूलकर उससे क्षमा याचना करना अर्जुन की श्रेष्ठता है , इसमें कोई सन्देह नहीं । श्री कृष्ण का दिव्य परमात्म स्वरुप की अनुभूति हो जाने से अर्जुन के लिए यह सम्भव हो सका । अपने से आयु , गुण , महिमा , विद्या , योग्यता , आदि विषयों में छोटे से क्षमा याचना करना किसी महात्मा के लिये ही सम्भव होगा ।
क्षमा प्रदान करना भी उसी प्रकार है । एक श्रेष्ट व्यक्ति किसी छोटे को क्षमा कर सकता है । परन्तु एक छोटा अपने से बड़े को , अपने से श्रेष्ट व्यक्ति को क्षमा करना बहुत कठिन है ।
क्षमा याचना करना , और क्षमा प्रदान करना दोनों के लिये एक बाधा है । वह है अहंकार । जिसने अहंकार मिटा दिया हो , उस के लिए क्षमा याचना करना और क्षमा प्रदान करना दोनों ही आसान है ।
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