ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १६३
यस्मान्नोद्विजते लोकः लोकान्नोद्विजते च यः । (अध्याय १२ - श्लोक १५)
யஸ்மான்நோத்விஜதே லோகஹ் லோகான்நோத்விஜதே ச யஹ் ... (அத்யாயம் 12 - ஶ்லோகம் 15)
Yasmaannodwijate Lokah .. Lokaannodwijate Cha Yah .. (Chapter 12 - Shlokam 15)
अर्थ : जो अन्य जनों को उद्विग्न करता नहीं और जो अन्य जनों से उद्विग्न होता भी नहीं ।
उत्तेजित करना , भावना भड़काना इसे एक सुलभ मार्ग समझकर अपने घरों में , समुदाय में , सामजिक संगठनों में , अत्याधिक उपयोग किया जा रहा है । कोई कार्य करवाना हो या किसी कार्य को करने से रोकना हो भावना भड़काना ही मार्ग समझा जा रहा है । "अरे ! तुम से होगा नहीं" ; "उसको देखो । तुम से अधिक मार्क लिया है" ; जैसे बातें बच्चों से करना । वाद विवाद में , "तुम मर्द हो तो ..." "यदि एक बाप से जन्मा हो तो .." जैसे शब्दों का प्रयोग । समुदाय में , "अपने कुल के लिए , अपनी जाती के लिए यह कलङ्क है " ; "समाज में मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे ...' जैसे उत्तेजनायें । "देश खतरे में है" "धर्म (सम्प्रदाय) खतरे में है "जैसे भावात्मक नारे लगाकर देशभक्ति और धर्म की प्रीती जगा सकते हैं ऐसा बहुतों को लगता है ।
स्वयं भी उत्तेजित न हो । औरों को उत्तेजित ना करें । भड़काना आसान है । बुद्धि को , चिंतन को छेड़ना कठिन मार्ग है । उद्विग्न होकर कार्य करने वाला अनुचित मार्ग अपनायेगा । हिंसा में उतरेगा । कामचोरी का प्रयत्न करेगा । यह निश्चय नहीं की दीर्घ काल तक , कार्य की सम्पन्नता पर्यन्त कार्य में लगा रहेगा । स्व चिन्तन रहित जीवन जगेगा । नेता , नट , राजनैतिक पक्ष , जाती आदि का निरन्तर गुलाम बनेगा ।
'हाय कमान की आज्ञा' ; 'अम्मा से आयी सूचना' ; 'नेता की अपेक्षा' आदि शब्दों में मदहोश होकर नेता की , उसके परिवारजनों की , उसके घर में पाला जा रहा कुत्ता की भी आजीवन गुलामी करते राजनैतिक कार्यकर्ता ; फिल्मी नटों के पीछे लगकर उनके जन्म दिन मनाते हुए , उनके पोस्टर लगाते हुए , समय बिताने वाले रसिक जन ; ना धर्म को जानने की इच्छा , न ही धर्म के पथ पर चलने का संकल्प , परन्तु आधुनिक 'ग़ुरू के विशाल सभा में उपस्थिति में संतुष्ट , उक्त गुरु का मुख , हस्त और पद के चित्रों की पूजा करते हुए स्वयं को आध्यात्मिक घोषणा करने वाले शिष्य गण। . आदि इस विषय में प्रखर उदाहरण हैं ।
अपने पूर्व प्रधान मन्त्री श्रीमती इन्दिरा अपने निजी रक्षक द्वारा मारी गयी । उनके पुत्र श्री राजीव जो अगले प्रधान मन्त्री बने अपने नियन्त्रण में चल रहे आकाशवाणी और दूरदर्शन के माध्यम से प्रचार करवाया की मारने वाले रक्षक सिख हैं । काँग्रेस के कार्यकर्ता गुंडों के साथ मिलकर सिखों को उनके घर में घुसकर मारऔर हजारों सिखों की निर्मम हत्या किया । देश का प्रत्येक नागरिक का रक्षण का कर्तव्य जिस प्रधान मन्त्री के हाथों में है उसने इस हिंसा को रोका तो नहीं , ऊपर यह कहकर इसे सही स्थापित करने का प्रयत्न किया की "एक विशाल वृक्ष गिरता है तो आसपास के छोटे पौधों का नाश तो होगा ही ।" उदाहरण है लोकों को उत्तेजित करने वाला नेतृत्त्व का ।
चिन्तन का छेड़े जाना आवश्यक है । पढ़ें , अध्ययन करें , प्रश्न पूछें , चर्चा करें , अपने चारों ओर घटने वाले घटनाओं की ओर गौर करें , और इन सभी प्रयत्नों के माध्यम से चिन्तन का अभ्यास करें । सही और गलत क्या हैं , कर्तव्यं और अकर्तव्यं क्या है इन्हें जानने वाली बुद्धि को प्रखर बनायें । यह प्रयत्न है अति कठिन । लम्बा समय लगने वाला प्रयत्न है । अधिक परिश्रम का मांग करने वाला प्रयत्न है । परन्तु यही युक्त प्रयत्न है ।
न अन्यों को उत्तोजित करो । न स्वयं अन्यों से उत्तेजित हो जाओ । अपने प्रिय भक्त से यही अपेक्षा है श्री कृष्ण का ।
स्वयं भी उत्तेजित न हो । औरों को उत्तेजित ना करें । भड़काना आसान है । बुद्धि को , चिंतन को छेड़ना कठिन मार्ग है । उद्विग्न होकर कार्य करने वाला अनुचित मार्ग अपनायेगा । हिंसा में उतरेगा । कामचोरी का प्रयत्न करेगा । यह निश्चय नहीं की दीर्घ काल तक , कार्य की सम्पन्नता पर्यन्त कार्य में लगा रहेगा । स्व चिन्तन रहित जीवन जगेगा । नेता , नट , राजनैतिक पक्ष , जाती आदि का निरन्तर गुलाम बनेगा ।
'हाय कमान की आज्ञा' ; 'अम्मा से आयी सूचना' ; 'नेता की अपेक्षा' आदि शब्दों में मदहोश होकर नेता की , उसके परिवारजनों की , उसके घर में पाला जा रहा कुत्ता की भी आजीवन गुलामी करते राजनैतिक कार्यकर्ता ; फिल्मी नटों के पीछे लगकर उनके जन्म दिन मनाते हुए , उनके पोस्टर लगाते हुए , समय बिताने वाले रसिक जन ; ना धर्म को जानने की इच्छा , न ही धर्म के पथ पर चलने का संकल्प , परन्तु आधुनिक 'ग़ुरू के विशाल सभा में उपस्थिति में संतुष्ट , उक्त गुरु का मुख , हस्त और पद के चित्रों की पूजा करते हुए स्वयं को आध्यात्मिक घोषणा करने वाले शिष्य गण। . आदि इस विषय में प्रखर उदाहरण हैं ।
अपने पूर्व प्रधान मन्त्री श्रीमती इन्दिरा अपने निजी रक्षक द्वारा मारी गयी । उनके पुत्र श्री राजीव जो अगले प्रधान मन्त्री बने अपने नियन्त्रण में चल रहे आकाशवाणी और दूरदर्शन के माध्यम से प्रचार करवाया की मारने वाले रक्षक सिख हैं । काँग्रेस के कार्यकर्ता गुंडों के साथ मिलकर सिखों को उनके घर में घुसकर मारऔर हजारों सिखों की निर्मम हत्या किया । देश का प्रत्येक नागरिक का रक्षण का कर्तव्य जिस प्रधान मन्त्री के हाथों में है उसने इस हिंसा को रोका तो नहीं , ऊपर यह कहकर इसे सही स्थापित करने का प्रयत्न किया की "एक विशाल वृक्ष गिरता है तो आसपास के छोटे पौधों का नाश तो होगा ही ।" उदाहरण है लोकों को उत्तेजित करने वाला नेतृत्त्व का ।
चिन्तन का छेड़े जाना आवश्यक है । पढ़ें , अध्ययन करें , प्रश्न पूछें , चर्चा करें , अपने चारों ओर घटने वाले घटनाओं की ओर गौर करें , और इन सभी प्रयत्नों के माध्यम से चिन्तन का अभ्यास करें । सही और गलत क्या हैं , कर्तव्यं और अकर्तव्यं क्या है इन्हें जानने वाली बुद्धि को प्रखर बनायें । यह प्रयत्न है अति कठिन । लम्बा समय लगने वाला प्रयत्न है । अधिक परिश्रम का मांग करने वाला प्रयत्न है । परन्तु यही युक्त प्रयत्न है ।
न अन्यों को उत्तोजित करो । न स्वयं अन्यों से उत्तेजित हो जाओ । अपने प्रिय भक्त से यही अपेक्षा है श्री कृष्ण का ।
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