ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १७१
मतं मम .. (अध्याय १३ - श्लोक २)
மதம் மம .. (அத்யாயம் 13 - ஶ்லோகம் 2)
Matam Mama .. (Chapter 13 - Shlokam 2)
अर्थ : मेरे मत में ...
पुनः एक वार श्री कृष्ण के मुख से ये शब्द निकल रहे हैं । "यह मेरा मत है ..." निश्चित घोषणा करने का श्री कृष्ण को अधिकार है । वे यदि ऐसा करते तो पांडवों की ओर से कोई विरोध उठेगा नहीं , यह भी निश्चित है । फिर भी श्री कृष्ण सर्वदा यही कहते , "यह मेरा अभिप्राय है ..." इस अद्भुत संवाद गीता की समाप्ति श्री कृष्ण इसी प्रकार कर रहे हैं । "तुम मेरे इष्ट हो । इसलिये मैं ने विस्तार से बोला । अब तुम्हारी इच्छा जैसी हो वैसे ही करना .." 'यथेछसि तथा कुरु ..' श्री कृष्ण का उन्नत व्यक्तिमत्त्व इस से प्रकट होता है । इसी व्यक्ति सहज स्वाभाविक नेतृत्त्व के शिखर पर पहुंचते हैं ।
आज कल लोक तंत्र की बड़ी चर्चा है । आज जनतंत्र के नाम से जो व्यवस्था चल रही है , वह निष्पक्ष चिन्तन और नैसर्गिक विकास का परिणाम नहीं है । वह यूरोपीय देशों में पोपशाही और राजाशाही के विरुद्ध प्रतिक्रियात्मक व्यवस्था है । लोकतन्त्र तो जनता की मानसिकता का प्रकट स्वरुप है । "मैं जो कहता हूँ , वही सत्य है .." "उसके विरुद्ध प्रश्न उठाने की अनुमति है नहीं .." "मेरा मार्ग ही सही है .." "मेरा भगवान ही एकमेव भगवान है । अन्य भगवान स्वरुप को पूजने वाले नरक में ढकेले जाएंगे । उसके पूर्व हम ही उनकी ह्त्या कर देंगे .." यह मानसिकता हो तो वह जनतन्त्र हो नहीं सकता , चाहे वहाँ चुनाव और संसद भवन क्यों न हो ..
"तुम जो कह रहे हो , वह भी सत्य हो सकता है .." "तुम अपना पथ चुन सकते हो .." "प्रश्न पूंछना और संदेह की निवृत्ति के प्रयत्न करना , ज्ञान प्राप्ति के लिये आधार है .." ऐसी मानसिकता ही लोक तंत्र का आधार है । ऐसी मानसकता हो , तो राज्य व्यवस्था राजाशाही भी क्यों न हो , वह लोकतंत्र ही है ।
आज कल लोक तंत्र की बड़ी चर्चा है । आज जनतंत्र के नाम से जो व्यवस्था चल रही है , वह निष्पक्ष चिन्तन और नैसर्गिक विकास का परिणाम नहीं है । वह यूरोपीय देशों में पोपशाही और राजाशाही के विरुद्ध प्रतिक्रियात्मक व्यवस्था है । लोकतन्त्र तो जनता की मानसिकता का प्रकट स्वरुप है । "मैं जो कहता हूँ , वही सत्य है .." "उसके विरुद्ध प्रश्न उठाने की अनुमति है नहीं .." "मेरा मार्ग ही सही है .." "मेरा भगवान ही एकमेव भगवान है । अन्य भगवान स्वरुप को पूजने वाले नरक में ढकेले जाएंगे । उसके पूर्व हम ही उनकी ह्त्या कर देंगे .." यह मानसिकता हो तो वह जनतन्त्र हो नहीं सकता , चाहे वहाँ चुनाव और संसद भवन क्यों न हो ..
"तुम जो कह रहे हो , वह भी सत्य हो सकता है .." "तुम अपना पथ चुन सकते हो .." "प्रश्न पूंछना और संदेह की निवृत्ति के प्रयत्न करना , ज्ञान प्राप्ति के लिये आधार है .." ऐसी मानसिकता ही लोक तंत्र का आधार है । ऐसी मानसकता हो , तो राज्य व्यवस्था राजाशाही भी क्यों न हो , वह लोकतंत्र ही है ।
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