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गीता की कुछ शब्दावली - १७३


गीता की कुछ शब्दावली - १७३


जन्म मृत्यु जरा व्याधि दुःख दोषानुदर्शनम् ।।  (अध्याय १३ - श्लोक ८)
ஜன்ம ம்ருத்யு ஜரா வியாதி து:க தோஷாநுதர்ஶனம் .. (அத்யாயம் 13 - ஶ்லோகம் 8)
Janma Mrutyu Jaraa Vyaadhi Duhkha DoshaanuDarshanam ..  (Chapter 13 - Shloka 8)

अर्थ :  जन्म , मृत्यु , वृद्धावस्था और व्याधि आदि में दुःख और दोषों का वारंवार दर्शन ।

जन्म , मृत्यु , ज़रा या वृद्धावस्था और व्याधि के दुःख और दोषों का चिन्तन और दर्शन करना  ..

जन्म दुःखदायी है ।  माँ के कोख में नौ महीने निवास , उल्टा लटककर , जल में डूबे , दुर्गन्ध और घुटन का अनुभव करते हुए ..  जन्म लेते समय जननी को भी दुःख और वेदना ..  माँ की मृत्यु की सम्भावना ..

मृत्यु भी दुःखदायी ..  शारीरिक वेदना तो है ही , ऊपर से प्यारों से बिछड़ने का दुःख , मन लगाकर जीवन भर एकत्रित किये हुए सभी वस्तुओं को छोड़ जाने का दुःख .. पत्नी , बच्चे , घर , गाडी , बैंक में जमी राशि , सम्पत्ति , बड़े परिश्रम से कमाई हुई सामाजिक प्रतिष्ठा , पद और कीर्ति आदि को छोड़ जाने की पीड़ा अवर्णनीय ..

ज़रा दुःखदायी है ..  शिथिल हाथ पैर .. अक्षम इन्द्रिय .. शरीर में थकान आदि तो हैं ..  परन्तु सर्वाधिक दुःख 'आत्म निर्भरता' नामक मद का चूर चूर होना है ..  'मैं अपने आप कर लूंगा' यह विशवास से उत्पन्न अहँकार का नाश बड़ी पीड़ा दाई है ..  चलना , भोजन करना , वस्त्र पहनना जैसे साधारण दैनिक कार्य के लिए भी अन्यों पैर निर्भरता वृद्धावस्था में बड़ी दुःख दाई है ..  अपने प्यारे बंधू मित्र सभी अपनी संसारी आवश्यकता जुटाने में व्यस्त रहने के कारण , 'किसी को मेरी आवश्यकता नहीं' यह भावना उत्पन्न हो जाए तो अधिक पीड़ा ..

व्याधि ज़रा जैसी ही है ।  अन्यों पर निर्भरता और बंधू मित्रों से निर्माण होने वाली दूरी , व्याधि के दुःख हैं ..

सामान्य मनुष्य अपना जीवन काल मोह में , आशा से उत्पन्न निद्रावस्था में बिता देता है ।  अन्यों को मिलने वाले अनुभव स्वयं को भी हो सकते हैं यह विचार उसे आता ही नहीं ।  अपने आस पास अन्य जनों को मरते देखता है ।  स्वयं वह भी मृत्यु द्वार की ओर लगी कतार में ही खड़ा है यह उसे सूझता ही नहीं ।  वृद्धों को और व्याधिस्त को मिलने जाता है ।  उनकी वेदना पर द्रवित होता है ।  उनको छोटे छोटे सहायता कर देता है ।  परन्तु उसमे यह विचार कभी नहीं आता की , "घडी के हर 'टिक टिक' मुझे भी वृद्धावस्था की और धकेल रहा है .."  या "मेरे शरीर में भी प्रकट हुए बिना सुप्तावस्था में व्याधि का होना सम्भव है .."  महाभारत में यक्ष प्रश्न में एक प्रश्न यह था की , "संसार में अधिक आश्चर्य मय विषय क्या है ?"  युधिष्ठिर कहते हैं की , "मनुष्य प्रति दिन अपने आस पास जीवों को मरते देखता है ।  परन्तु ऐसा जीता है जैसे वह स्वयं अमरत्त्व का वरदान लेकर आया हो .."

श्री कबीर के जीवन में एक प्रसंग है ।  एक दिन उनका पडोसी उनको मिलने आया और कहा , "मैं सर्वदा दुःख और चिंता ग्रस्त रहता हूँ ।  आप सर्वदा सन्तुष्ट और आनन्द मय दिखते हैं ।  क्या आपके आनंद का रहस्य मुझे बता सकोगे ?"  श्री कबीर चिन्तित दिखे ।  "चिन्तित लग रहे हो ।  कोई बुरा समाचार है ?" पडोसी ने पूँछा ।  "आप को पहले ही आना चाहिए था ।  अब मैं आपको उस रहस्य बता भी दूँ तो कोई प्रयोजन नहीं ।  आप उसे क्रियान्वित कर नहीं पाओगे ।" श्री कबीर ने उत्तर में कहा ।  "क्यों ?  मैं भरपूर प्रयत्न करूंगा ।"  "बात वह नहीं ।  आपके पास समय नहीं ।  आपके जीवनकाल में केवल एक सप्ताह बचा है ।"  पडोसी स्तब्ध हो गया जैसे मानो उसपर बिजली गिर गयी हो ।  एक सप्ताह बाद श्री कबीर उससे मिले ।  "गत सप्ताह कैसे रहा ?"  मंद स्मित के साथ पडोसी ने उत्तर दिया ।  "पहले दो तीन दिन मैं भयभीत था ।  धीरे धीरे भय निकल गया और मैं जीवन का इस सत्य को स्वीकारने लगा ।  मैं सभी से अच्छा बनने का प्रयत्न करने लगा ।  अन्यों पर लगे ऋण वापस करने लगा ।  यथा संभव अन्यों की सहायता करने लगा ।  क्रोध , वाद विवाद , आदि छोड़कर सदा हॅसमुख रहने का प्रयत्न किया ।  मृत्यु का दर्शन तो प्रति क्षण मेरे आँखो के सामने ही रहा ।  मेरे मन में शान्ति , सन्तुष्टि और आनन्द उभरने लगे ।  आप ने सही कहा ।  मुझे आपके पास पहले ही आना चाहिए था ।"  "सत्य !  हो सकता है आप आज मरोगे नहीं ।  परन्तु मृत्यु तो निश्चित है ।  किसी भी दिन , किसी भी क्षण आ सकता है ।  उसका भान मन में सदैव रहे ।  उसका दर्शन नित्य आँखों के सामने रहे ।  यही आनन्द का रहस्य है ।" श्री कबीर ने कहा ..

मृत्यु का चिन्तन न्यून भाव नहीं ।  इस चिन्तन को मना करना वैसा हो सकता है ।  दर्शन दुःख का , मृत्यु , ज़रा , व्याधि आदि में संलग्न दुःख और दोष का दर्शन मन में संतुष्टि और आनन्द को जगाते हैं ।  मन के मलों को मिटाकर मन को स्वच्छ बनाते हैं ।  स्वच्छ , निर्मल मन ही श्री परमात्मा के निवास के लिए योग्य स्थान है ।

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